ट्रेकिंग-हाईकिंग, प्राचीन इतिहास एवं वन्य रोमांच का आनंद लेना है तो चलिए सिंघाधुरवा
आपकी रुचि अगर ट्रेकिंग हाईकिंग के साथ प्रकृति सौंदर्य एवं इतिहासिक स्थल दर्शन में है तो हम आपको ऐसे स्थान पर ले चलते हैं जहाँ नदी, नाले, पहाड़, झरने जैव विविधता, पशु पक्षी, हरियाली एवं इतिहास तथा ग्रामीण संस्कृति से जुड़े किस्से कहानी आदि सारी चीजें मिलेंगी। चलिए आपको ले चलते हैं छत्तीसगढ़ के बार नवापारा अभयारण्य स्थित सिंघाधुरवा, यह पर्यटन घुमक्कड़ी के लिए आदर्श स्थल है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 82 किमी की दूरी पर प्रसिद्ध प्राचीन स्थल सिरपुर स्थित है। यहाँ से बारह किमी की दूरी पर जंगल से लगा हुआ, सुकलई नदी के पास बोरिद ग्राम है, बस यहीं से सिंघाधुरुवा जाने के लिए रास्ता है। इसके अतिरिक्त समीपस्थ ग्राम अंवरई से भी इस स्थल पर पहुंचा जा सकता है, पर ट्रेकिंग, हाईकिंग का मजा बोरिद से जाने पर ही आएगा।
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धसकुड़ का झरना : जब हम सिरपुर से बोरिद जाते हैं तो रास्ते में बोरिद ग्राम से लगा हुआ धसकुड़ नामक झरना है, बारिश के दिनों में यह अपने पूर्ण यौवन पर होता है, कच्ची सड़क से इसकी दूरी लगभग आधा किमी है, जो पैदल चलकर तय करनी होती है, पर जब आप इस झरने तक पहुंचते हैं तो सारी थकान दूर हो जाती है, इसके स्वच्छ जल में तैरती हुई मछलियाँ मन को मोह लेती हैं।
बोरिद ग्राम पहुंचकर यहाँ से हम किसी ग्रामीण को गाईड के रुप में साथ ले सकते हैं, अन्यथा जंगल में रास्ता भटक जाने का खतरा भी है। ग्रामीण कहते हैं कि जंगल में एक भूलन जड़ी होती है, जिस पर पैर पड़ने से व्यक्ति रास्ता भूल जाता है। इसलिए गाईड रखना जरुरी हो जाता है।
किसबिन डेरा : हम बोरिद से सुकलई नदी पार कर जंगल में प्रवेश करते हैं, कुछ दूर तक बांस के झुरमुठों के बाद सघन वन प्रारंभ हो जाता है। लगभग सात किमी चलने एवं सुकलई नाले को तीन बार पार करने के बाद किसबिन डेरा नामक स्थल पर पहुंचते हैं। यहीं से दांए तरफ़ सिंगाधूरवा एवं बांए तरफ़ छेरी गोधनी (नागार्जुन गुफ़ा) को रास्ता जाता है। हम सिंघाधुरवा चलते हैं, किसबिन का अर्थ स्थानीय भाषा में नगरवधु होता है। सिरपुर जब राजधानी तो शहर के लोगों के नाच गान मनोरंजन के लिए इस स्थल को बसाया गया था, यहाँ उसके अवशेष दिखाई देते हैं।
सिंघाधुरवा का किला : यहीं हम सिंघाधुरवा की पहाड़ी पर चढ़ते हैं। कांसा पठार एवं रमिहा पठार के बीच में हटवारा पठार स्थित है। इसी पठार को सिंघा धुरवा कहा जाता है। मान्यता है कि जंगल में स्थित पठार पर वन देवी चांदा दाई का वास है। यहाँ की भौगौलिक स्थिति से प्रतीत होता है कि यह कोई राजधानी रही होगी। जो वर्तमान में प्रकाश में नहीं आई है। कुछ विद्वान इतिहासकार इसे शरभपुर मानते हैं, राजा शरभराज ने इस स्थान से राजधानी हटाकर चौथी-पांचवी शताब्दी में वर्तमान सिरपुर को बसाया।
चोरहा राजा : ग्रामीण इसे चोरहा राजा का किला मानते हैं, उनकी किंवदन्ति के अनुसार यह कोई राबिन हुड जैसा ही चरित्र है। यह राजा अमीरों को लूटकर उनका माल-असबास और धन गरीबों में बांटता था। अर्थात राबिन हुड जैसा ही कोई पात्र था। “चोरहा राजा” की सबसे बड़ी विशेषता थी कि वह पाँव-पाँव जाता था और पाँव-पाँव ही लौटता था। उसके पैरों के चिन्ह आते हुए के तो दिखते थे परन्तु लौटते हुए के पद चिन्ह नजर नहीं आते थे। वह इतना सिद्धहस्त था कि अपने पैरों के पड़े हुए चिन्हों पर उल्टा लौटता था, जिसके कारण उसके लौटते हुए के पदचिन्ह नजर नहीं आते थे और पकड़ा नहीं जाता था।
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शरभपुर का इतिहास : इस स्थल के विषय में और अधिक जानने के लिए इतिहास की ओर मुड़ना होगा। वर्तमान छत्तीसगढ याने प्राचीन दक्षिण कोसल के इतिहास में शरभपुरीय वंश का जिक्र आता है। शरभपुरियों की 8 पीढियों ने 11 दशकों तक शासन किया था। इन्होने अपने अधिकांश ताम्रपत्र शरभपुर से जारी किए हैं। जाहिर है कि शरभपुर इनकी राजधानी रही होगी।शासक नरेन्द्र का तामपत्र : शरभपुरीय वंश के शासक नरेन्द्र का ताम्रपत्र पीपरदुला (सारंगढ) से प्राप्त होता है जिससे ज्ञात होता है कि वह शरभ राज का पुत्र था। यह दान पत्र शरभपुर से जारी किया गया है।
जब हम पहाड़ी पर पहुंचते हैं तो पत्थर का लगभग 8-9 फ़ुट ऊंचा सिंह द्वार दिखाई देता है जो इस स्थल के दुर्ग होने की प्रथम पहचान है, जिसके सिरदल कमल पुष्पाकंन है। इससे स्पष्ट होता है किले को बनवाने वाला भागवत धर्म का अनुयायी था। पठार पर पहुंचने पर किले की सुरक्षा दीवार दिखाई देती है। इसके साथ ही भवनों के भग्नावशेषों के साथ गृहस्थी में दैनिक उपयोग की वस्तु चक्की एवं अन्य भग्न प्रतिमाएं भी मिलती हैं।
पठार की उत्तर दिशा में एक छोटा भग्न द्वार है जो खाई में उतरता है। इसके स्तम्भ वर्तमान में भी खड़े हुए हैं। स्थानीय आदिवासी समाज इस स्थान पर नवरात्रि में ज्योतिकलश स्थापना के साथ पूजन का कार्यक्रम आयोजित करता है। तब इस वीरान जंगल में कुछ दिनों के रौनक हो जाती है, दर्शनार्थी पहुंचते हैं एवं रात को भी सेवादार रहते हैं।
सावधानी बतरते हुए रात को इस स्थान पर सामुहिक कैम्पिंग की जा सकती है, क्योंकि बार नवापारा के जंगल में तेंदूओं की भरमार है एवं रीछों की भी कमी नहीं है, पर यह रोमांचकारी अनुभव होगा। यहाँ विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी देखाई देते हैं, बर्ड वाचिंग करने वालों के स्वर्ग जैसा ही है। आईए फ़िर, देखते हैं चोरहा राजा की राजधानी एवं वन प्रांतर के रोमांच का आनंद लेते हैं……
नोट : कृपया आलेख चोरी न करें, हक से मांगे। 🙂
कैसे पहुंचे?
स्थान – सिंघाधुरवा, गुगल पता – 21°25’34.2″N 82°18’09.2″E
समीपस्थ विमानतल – रायपुर
समीपस्थ रेल्वे स्टेशन – रायपुर
रायपुर से दूरी – 102 किमी
साधन – टैक्सी एवं सार्वजनिक बस सेवा
ठहने का स्थान – बोरिद में होम स्टे और सिरपुर में व्हेनसांग रिसोर्ट
बेहतर मौसम – अक्टुबर से जून तक
रोमांचक यात्रा सिंघाधुरवा की आपके लेखन शैली की कोई बराबरी नहीं है जी, एकाध यात्रा में हम भी चलें।
बहुत रुचिकर उत्साह वर्धक आलेख।
आपके शब्दों से हमने भी स्थान देख लिया ।
Sir ji भूलन जड़ी bhi dekhi ya nahi. Bahut hi badhiya jaankari Di hai aapne.