श्री लंका अपनी जमीन या समुद्र का इस्तेमाल भारत के सुरक्षा हितों के खिलाफ नहीं होने देगा : दिसानायके
कोलंबो, 9 अप्रैल 2025: श्रीलंका ने एक बार फिर भारत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। श्रीलंकाई राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने हाल ही में कहा कि उनकी सरकार अपनी जमीन या समुद्र का इस्तेमाल भारत के सुरक्षा हितों के खिलाफ किसी भी विदेशी शक्ति द्वारा नहीं होने देगी। इस बयान को क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव के संदर्भ में देखा जा रहा है, जो भारत के लिए रणनीतिक चिंता का विषय बना हुआ है।
यह घोषणा ऐसे समय में आई है जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रीलंका यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा और ऊर्जा सहयोग को मजबूत करने वाले समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कोलंबो में कहा, “राष्ट्रपति दिसानायके ने स्पष्ट रूप से आश्वासन दिया कि श्रीलंका की धरती का उपयोग भारत के हितों के खिलाफ नहीं होगा। यह दोनों देशों के बीच साझा सुरक्षा हितों को दर्शाता है।”
श्रीलंका की यह प्रतिबद्धता भारत के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि चीन ने हाल के वर्षों में श्रीलंका में अपनी पैठ बढ़ाई है। चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज पर लेने और अब 3.7 बिलियन डॉलर की तेल रिफाइनरी परियोजना की घोषणा ने भारत की चिंताएँ बढ़ा दी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि श्रीलंका का यह बयान न केवल भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक कदम है, बल्कि क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में अपनी स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास भी है।
श्रीलंका, जो हिंद महासागर में एक प्रमुख शिपिंग मार्ग पर स्थित है, भारत और चीन दोनों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। 2022 के आर्थिक संकट के बाद भारत ने श्रीलंका को 4 बिलियन डॉलर की सहायता दी थी, जबकि चीन इसके सबसे बड़े कर्जदाताओं में से एक रहा है। हालाँकि, श्रीलंका ने दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की कोशिश की है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह बयान भारत को आश्वस्त करने के साथ-साथ चीन को एक संदेश भी हो सकता है कि श्रीलंका अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता देगा। इस बीच, भारत और संयुक्त अरब अमीरात के साथ मिलकर श्रीलंका के त्रिंकोमाली में एक ऊर्जा हब विकसित करने की योजना भी चीन के प्रभाव को संतुलित करने की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है।
श्रीलंका के इस रुख से हिंद महासागर क्षेत्र में भू-राजनीतिक गतिशीलता पर गहरा असर पड़ सकता है, जहाँ भारत और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा लगातार बढ़ रही है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि श्रीलंका इस संतुलन को कैसे बनाए रखता है।