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भारत की कालजयी सांस्कृतिक धरोहर : सरगुजा का रामगढ़

आचार्य ललित मुनि

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में स्थित रामगढ़ न केवल इस अंचल का प्राचीनतम स्थल है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक विरासत की एक अनमोल धरोहर भी है। अंबिकापुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर, समुद्र तल से 3202 फ़ुट की ऊंचाई पर स्थित रामगढ़, अपने पहाड़ी भूगोल, शैल चित्रों, गुफाओं और पुरातात्विक संरचनाओं के लिए प्रसिद्ध है।

यह स्थान सात परकोटों के भग्नावशेषों से समृद्ध है और यहाँ की सीता बेंगरा और जोगीमारा गुफाएँ भारतीय नाट्य और प्रेम परंपरा की आदिम झलक प्रस्तुत करती हैं। यहाँ आज भी रामगढ़ महोत्सव का स्थायी मंच स्थापित है, जहाँ स्थानीय जनजीवन की सांस्कृतिक छवियाँ मंचित होती हैं।

जोगीमारा गुफा: प्रेम, कला और लिपियों की गूँज

जोगीमारा गुफा भारतीय पुरालेख विज्ञान में एक अद्वितीय स्थान रखती है। इस गुफा की दीवारों पर मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण पाँच पंक्तियों का शिलालेख सुतनुका नामक देवदासी और उसके प्रेमी देवदीन की कथा कहता है। यह शिलालेख केवल प्रेम का नहीं, बल्कि उस युग की नाट्य परंपरा, भाषा और सामाजिक भावबोध का भी साक्ष्य है।

शिलालेख में उल्लिखित शब्दों से पता चलता है कि वरुण उपासक देवदीन, बनारस निवासी और रूपदक्ष व्यक्ति था, जिसने सुतनुका को प्रेमासक्त किया। यह गुफा केवल भित्तिचित्रों और शिलालेखों की नहीं, बल्कि भारतीय नाट्यकला की प्रथम प्रयोगशाला मानी जाती है।

सीता बेंगरा गुफा: नाट्यशाला और रामायण की छाया

सीता बेंगरा गुफा एक प्राचीन नाट्यशाला के रूप में विख्यात है। यह गुफा पत्थरों को काटकर गैलरीनुमा बनाई गई है जिसकी लंबाई 44.5 फ़ुट और चौड़ाई 15 फ़ुट है। प्रवेश द्वार गोलाकार है, जिसकी ऊंचाई भीतर जाकर घटती जाती है, ताकि ध्वनि की प्रतिध्वनि को रोका जा सके।

यहाँ खंभे गाड़ने के लिए छेद बने हैं और एक ओर श्रीराम के चरण चिन्ह भी अंकित हैं। ऐसा माना जाता है कि महाकवि कालिदास ने मेघदूत की रचना यहीं पर की थी। यही वह रामगिरि है जिसका उल्लेख कालिदास ने अपने काव्य में किया है — जहाँ से यक्ष ने अपनी प्रिय को बादल के माध्यम से संदेश भेजा था।

प्रथम कवि सम्मेलन का संकेत

सीता बेंगरा गुफा के प्रवेश द्वार पर दो पंक्तियों में एक शिलालेख उत्कीर्ण है, जिसे भारत में आयोजित हुए किसी राष्ट्रस्तरीय कवि सम्मेलन का प्रथम प्रमाण माना जाता है। इसमें कवियों की भावनाओं और प्राकृतिक सौंदर्य से उपजे भावों का उल्लेख है, जैसे कि:

“हृदय को आलोकित करते हैं स्वभाव से महान ऐसे कविगण रात्रि में… संवेदनशील क्षणों में कुन्द पुष्पों की माला को ही आलिंगित करता है।”

यह शिलालेख रामगढ़ को केवल पुरातत्व नहीं, बल्कि साहित्यिक गाथा का भी केंद्र बना देता है।

हाथी फ़ोर सुरंग: एक रहस्यात्मक मार्ग

रामगढ़ पहाड़ी में स्थित “हाथी फ़ो” नामक सुरंग लगभग 180 फ़ुट लंबी है और इतनी ऊँची है कि हाथी भी सरलता से इस मार्ग से गुजर सकते हैं। यह सुरंग न केवल मार्ग का कार्य करती है, बल्कि आदिमानव की जीवन शैली की झलक भी देती है।

आज भी इसमें ग्रामीण विश्राम करते, खाना बनाते और विशिष्ट गंध का अनुभव करते दिखाई देते हैं — यह वही गंध है जो पुरानी इमारतों में वर्षों से बसने वाले चमगादड़ों की उपस्थिति का संकेत देती है। यह सुरंग एक जीवित पुरातात्विक संग्रहालय की भांति प्रतीत होती है।

रामगढ़: कालिदास की दृष्टि से

महाकवि कालिदास की दृष्टि में रामगढ़, रामगिरि के रूप में उभरता है। मेघदूत में वर्णित यक्ष की वेदना, रामगिरि का सौंदर्य, जलकुंड, पुष्पित वृक्ष, और प्रेम का पावन प्रसंग आज भी यहाँ की हर शिला, हर झरने और हर वृक्ष में जीवंत प्रतीत होता है।

यहीं के जंगलों में आज भी महुआ के वृक्ष फलों-फूलों से लदे हैं, सरई के वन गर्व से ऊँचाई नाप रहे हैं और हाथियों की उपस्थिति इंद्र के एरावत की याद दिलाती है। यहाँ के वनवासी आज भी मांदर की थाप पर करमा नृत्य करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कभी यक्ष की वेदना में प्रकृति भी झूम उठती थी।

रामगढ़ एक यक्ष का स्मरण

रामगढ़ केवल एक ऐतिहासिक स्थल नहीं, एक जीवंत स्मृति है। यह न केवल श्रीराम के वनवास, सीता के निवास और कालीदास के सृजन की भूमि है, बल्कि सुतनुका और देवदीन जैसे प्रेमियों की अमर गाथा भी है। आज जब हम यहाँ से लौटते हैं, तो यक्ष की तरह हमारा मन भी यहीं रह जाता है — सीता बेंगरा की कंदराओं में, जोगीमारा की गुफाओं में, उन सुरंगों में जहाँ गूंजता है हजारों वर्षों का मौन संवाद।

रामगढ़ हमें बार-बार बुलाता है — एक यक्ष बनकर, एक कवि बनकर, या एक शोधार्थी बनकर — आषाढ़ के पहले दिवस पर।