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राम कृपा बिनु सुलभ न सोई

अयोध्या जी, जो भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में सरयू नदी के किनारे स्थित है, प्राचीन काल से धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का केंद्र रही है। यह नगर भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में प्रतिष्ठित है और हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। राम मंदिर का इतिहास और इससे जुड़ा संघर्ष भारतीय समाज, राजनीति, और धार्मिक चेतना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की परंपरा त्रेता युग से मानी जाती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम का जन्म अयोध्या में राजा दशरथ के महल में हुआ था। इस स्थान पर एक भव्य मंदिर था, जिसे मध्यकाल में विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा तोड़ा गया और वहां मस्जिद का निर्माण किया गया, जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया। 1528 ईस्वी में बाबर के सेनापति मीर बाकी द्वारा इस मस्जिद का निर्माण कराया गया था। इसके बाद से यह स्थान हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच विवाद का कारण बन गया।

मुगल काल और उसके बाद ब्रिटिश शासन के दौरान राम जन्मभूमि स्थल को लेकर विवाद बना रहा। अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में इस स्थान पर हिंदू पूजा-अर्चना करते रहे, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे अपनी धार्मिक संपत्ति मानता था। 1949 में इस विवाद ने नई दिशा तब ली जब बाबरी मस्जिद के गर्भगृह में रामलला की मूर्ति प्रकट हुई। इसके बाद, सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित कर दिया और वहां पूजा-पाठ पर रोक लगा दी। यह मामला अदालत में चला गया, और राम जन्मभूमि आंदोलन ने गति पकड़ी।

1980 के दशक में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने राम मंदिर निर्माण के लिए एक बड़ा अभियान शुरू किया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी इसे अपने राजनीतिक एजेंडे में शामिल किया। 6 दिसंबर 1992 को, लाखों कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। यह घटना भारतीय राजनीति और समाज में गहरा प्रभाव छोड़ गई। इसके बाद पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा भड़क उठी।

बाबरी विध्वंस के बाद, अयोध्या विवाद कई दशकों तक अदालतों और राजनीतिक मंचों पर चलता रहा। इस दौरान भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई शुरू की। 9 नवंबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने विवादित भूमि को राम जन्मभूमि न्यास को सौंप दिया और मस्जिद के लिए अयोध्या में ही अलग भूमि आवंटित करने का आदेश दिया। यह निर्णय भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

राम जन्मभूमि विवाद का न्यायिक इतिहास

फैजाबाद सिविल कोर्ट (1949-1986)
राम जन्मभूमि विवाद पहली बार न्यायालय में 1949 में पहुंचा जब बाबरी मस्जिद के अंदर रामलला की मूर्ति प्रकट हुई। मुस्लिम पक्ष ने इसे गैर-कानूनी बताया और मूर्ति को हटाने की मांग की, जबकि हिंदू पक्ष ने इसे आस्था का विषय मानते हुए पूजा जारी रखने की अनुमति मांगी। सरकार ने विवादित स्थल को अधिग्रहित कर ताला लगा दिया।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (1986-2010)
1986 में फैजाबाद जिला न्यायालय ने हिंदू पक्ष की याचिका पर विवादित स्थल के ताले खोलने का आदेश दिया। इसके बाद विवाद ने राष्ट्रीय स्तर पर तूल पकड़ा। 1989 में विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। मुस्लिम पक्ष ने इस फैसले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने विवादित स्थल के मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू की।

उच्च न्यायालय का फैसला (2010)
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला दिया: 1-रामलला विराजमान को गर्भगृह का हिस्सा। 2-सुन्नी वक्फ बोर्ड को एक हिस्सा। 3- निर्मोही अखाड़ा को शेष हिस्सा। हालांकि, इस फैसले से कोई भी पक्ष पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुआ और मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा।

सर्वोच्च न्यायालय (2011-2019)
सर्वोच्च न्यायालय ने 2011 में उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी और मामले की सुनवाई शुरू की। इस मामले की सुनवाई संविधान पीठ द्वारा की गई, जिसमें मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई समेत पांच न्यायाधीश शामिल थे। प्रमुख तर्क: हिंदू पक्ष: उन्होंने पुरातात्विक साक्ष्यों का हवाला दिया कि विवादित स्थल पर प्राचीन मंदिर के अवशेष मौजूद हैं। उन्होंने आस्था और ऐतिहासिक परंपरा को आधार बनाया। मुस्लिम पक्ष: उन्होंने जमीन के मालिकाना हक के दस्तावेज प्रस्तुत किए और तर्क दिया कि मस्जिद पर उनका अधिकार है।

9 नवंबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। विवादित भूमि को रामलला विराजमान को सौंपा गया और वहां मंदिर निर्माण का आदेश दिया गया। मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में वैकल्पिक 5 एकड़ भूमि मस्जिद निर्माण के लिए दी गई। कोर्ट ने पुरातात्विक साक्ष्यों और आस्था को मान्यता दी और यह निष्कर्ष दिया कि विवादित भूमि हिंदू पक्ष की है। यह फैसला सर्वसम्मति से दिया गया और इसे सभी पक्षों ने स्वीकार किया।

राम मंदिर निर्माण
इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में 5 अगस्त 2020 को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन संपन्न हुआ। इस आयोजन ने हिंदू समाज की लंबे समय से चली आ रही आकांक्षा को पूरा किया। वर्तमान में राम मंदिर का निर्माण कार्य तेजी से हो रहा है और इसे विश्व के सबसे भव्य मंदिरों में से एक बनाने की योजना है।

राम मंदिर का उद्घाटन समारोह 22 जनवरी 2024 को भव्यता के साथ आयोजित किया गया। इस ऐतिहासिक दिन पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने इसमें भाग लिया। उद्घाटन के दौरान भगवान रामलला की मूर्ति को गर्भगृह में स्थापित किया गया, और मंदिर के उद्घाटन ने भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में एक नई शुरुआत की।

राम मंदिर का निर्माण कार्य बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से किया गया। इसका डिज़ाइन नागर शैली की परंपरागत भारतीय वास्तुकला पर आधारित है। यह मंदिर 360 फीट लंबा, 235 फीट चौड़ा और 161 फीट ऊंचा है। मंदिर को बनाने में राजस्थान के विशेष प्रकार के गुलाबी बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है। तीन मंजिला इस मंदिर में 160 स्तंभ हैं, जो सुंदर नक्काशी और कलात्मक डिज़ाइन के साथ बनाए गए हैं।

राम मंदिर के निर्माण पर लगभग 1,800 करोड़ रुपये खर्च होने की योजना है। इस बजट में मंदिर के निर्माण के अलावा आस-पास के क्षेत्रों के विकास, तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाओं और मंदिर परिसर के सौंदर्यीकरण को शामिल किया गया है। मंदिर परिसर में यज्ञशाला, ध्यान केंद्र, संग्रहालय और शोध केंद्र जैसी सुविधाओं का भी निर्माण किया गया है।

मंदिर के निर्माण कार्य का प्रबंधन श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा किया गया, जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार स्थापित किया गया था। इस परियोजना में करोड़ों भारतीयों का योगदान रहा है, जिन्होंने इसके लिए धन और समय समर्पित किया। राम मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, इतिहास और वास्तुकला का प्रतीक है। यह मंदिर विश्व के सबसे भव्य धार्मिक स्थलों में से एक है और इसके निर्माण ने भारतीय वास्तुकला की गौरवशाली परंपरा को पुनर्जीवित किया है।

राम मंदिर के उद्घाटन के साथ, अयोध्या एक वैश्विक धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में उभर रहा है। यह न केवल भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के केंद्र के रूप में भी पहचाना जाएगा। यह मंदिर करोड़ों लोगों की आस्था, संघर्ष और प्रतीक्षा का सजीव उदाहरण है।

राम मंदिर अयोध्या न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, इतिहास और सामुदायिक एकता की भावना का भी परिचायक है। इसके संघर्ष ने भारतीय लोकतंत्र, न्यायिक प्रणाली और सांस्कृतिक पुनर्जागरण को एक नई दिशा दी है। यह मंदिर केवल पत्थरों की इमारत नहीं है, बल्कि करोड़ों लोगों की आस्था, संघर्ष और प्रतीक्षा का सजीव उदाहरण है।

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