चालिस वर्षों से मंचित हो रही है ग्राम तुरमा में रामलीला
जन-जन के हृदय में वास करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी की अद्भुत लीला के मंचन का इतिहास छत्तीसगढ़ राज्य के बलौदाबाजार जिले के भाटापारा तहसील के अंतर्गत तुरमा नामक गांव में देखने को मिला, जहां पर रामलीला का मंचन सन 1983-84 से अद्यतन होते आ रहा है।
रामलीला मंडली के सदस्यों के बीच में चर्चा करने पर बहुत ही रोचक जानकारी मिली। वर्तमान में रामलीला मंडली के अध्यक्ष श्री आनंदराम पाल जी से चर्चा करने पर उन्हें बताया कि सर्वप्रथम रामलीला मंडली की शुरुआत पड़ोसी गांव फरहदा के निवासी उनके मितान स्वर्गीय श्री टेकराम वर्मा जी के कुशल मार्गदर्शन में प्रारंभ हुई।
जब रामलीला प्रारंभ कर रहे थे उस समय सभी सदस्यों ने 300-300 रुपए चंदा इकट्ठा किया, साथ ही साथ गांव के अन्य लोगों ने भी लीला मंडली के लिए वेशभूषा, पर्दा एवं अन्य वस्तुओं को खरीदने के लिए यथा अनुसार दान भी दिया था।
रामलीला मंचन में यहाँ प्रमुख रुप से राधेश्याम रामायण, दर्पण नाटक, सवैया, बद्रीसिंह, तुलसीकृत इत्यादि ग्रंथो से कथानक लिये जाते है तथा पारंपरिक वेशभूषा के साथ रामलीला का मंचन करते है। जिसमें पारम्परिक लीला के साथ हास्य का भी समावेश रहता है।
जन सामान्य के बीच में मनोरंजन के लिए व्यंग्यात्मक ढंग की प्रस्तुति में भी एक सादगी और पारंपरिक रूप झलकता है अभद्रता कहीं पर भी नहीं है। भगवान राम के आदर्श को जन जन तक पहुंचाने के लिए सरल, सहज एवं स्थानीय संवादों के साथ नाट्य मंचन होता है।
जब रामलीला प्रारंभ हुई तब सर्वप्रथम व्यास के आसन में स्व. टेकराम वर्मा जी प्रतिष्ठित हुए तथा तबला वादक स्वर्गीय जग्गू राम ध्रुव जी थे, श्री राम की भूमिका स्वर्गीय श्री जगदीश तिवारी जी ने निभाई तथा लक्ष्मण की भूमिका श्री श्याम रतन पाल जी ने, हनुमान की भूमिका श्री चिंताराम पाल जी ने, सीता माता की भूमिका नारद ध्रुव जी ने तथा रावण की भूमिका स्वर्गीय श्री रामलाल ध्रुव जी ने निभाई थी।
प्रथम वर्ष में एक दिवसीय सीता स्वयंवर का रामलीला का मंचन हुआ था, उसके पश्चात 4 से 5 साल तक सात दिवसीय रामलीला हुआ। 1990 से 95 के बीच में 15 दिवसीय रामलीला का आयोजन भी हुआ था। वर्तमान में सात दिवसीय रामलीला का आयोजन होते आ रहा है। 1983-84 के समय से अभी भी बहुत से पात्र रामलीला मंडली में पात्रानुसार भूमिका निभा रहे हैं। इस मंडली में 5 साल के बच्चे से लेकर 70 साल तक के भी लोग काम कर रहे हैं, वर्तमान में लगभग 27 लोगों का दल है।
श्री रामलीला मंडली के द्वारा लगभग ढाई लाख के लागत से श्री राम, जानकी, लक्ष्मण, हनुमान जी सहित राम दरबार का एक भव्य मंदिर ग्राम तुरमा के बाजार चौक के पास सन 2014 में स्थापित किया गया है।
बड़े बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार आज से लगभग 42 साल पहले जब किसी भी प्रकार से साधनों की सुविधा नहीं होती थी उस समय कम साधन में भी बहुत ही अच्छे से मंचन होता था। साथ में समस्त ग्रामवासियों का भरपूर समर्थन हर प्रकार से मिलता था।
गांव के पुराने बड़े बुजुर्गों में स्वर्गीय श्री पीलाराम विश्वकर्मा,स्व.जहर सिंह ध्रुव स्वर्गीय श्री घूनारीराम पाल, स्वर्गीय श्री नकुल यादव, स्व.गोकुल यादव, स्व.डेरहा यदु, स्व.उदल यदु जी,स्वर्गीय श्री सेऊक मनहरे, स्व.मोहन मनहरे, स्व.लखनी मनहरे, , स्व.प्रेम बंजारे स्वर्गीय, स्व.लतेल निषाद, स्व.निहाली निषाद इत्यादि सहित गांव में बसे सभी जाति के लोग आज से 42 साल पहले भी भरपूर समर्थन करते थे और आज भी सभी समाज के लोग एक साथ मिलजुल कर गांव में रहते हैं और रामलीला मंडली के सुंदर मंचन का लाभ उठाते हैं।
वर्तमान में व्यास पीठ पर श्री बिरसिंग ध्रुव जी, उपव्यास ग्राम पंचायत तुरमा के उपसरपंच श्री मिट्ठूलाल पाल जी, तबला वादक श्री कंशुराम ध्रुव जी, श्रीराम के रूप में श्री नरेश पाल, लक्ष्मण जी के रूप में श्री विजयपाल, सीता मां के रूप में श्री कमल पाल जी भूमिका निभा रहे है।
41 वषों से लगातार हनुमान की भूमिका श्री राम रतन पाल जी निभा रहे हैं। लंकापति रावण की भूमिका श्री मालिक राम ध्रुव जी निभा रहे हैं। इनके अलावा श्री विशंभर पाल जी, श्री श्यामरतन पाल जी, श्री बृजलाल ध्रुव जी, श्री नरसिंह ध्रुव जी, श्री श्यामलाल निषाद जी, श्री नंदलाल पाल जी, श्री धन्नू यदु जी, श्री बिंदा पाल इत्यादि प्रमुख पात्र हैं।
ग्राम पंचायत तुरमा के उपसरपंच एवं उपव्यास मिट्ठूलाल पाल एवं रामलीला मंडली के समस्त सदस्यों के माध्यम से यही संदेश है कि आज से लगभग 4 दशक से चली आ रही यह राम मंडली आगे भी चलती रहे एवं चारों दिशाओं में हर समाज को भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र जी की सुंदर लीलाओं के माध्यम से लाभ मिले। इस वर्ष भी दशहरा पर्व पर रामलीला का आयोजन हुआ तथा ग्रामवासियों ने दर्शन लाभ लिया।
आलेख
तीजराम पाल
शोधार्थी, प्राचीन इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर
अब्बड़ सुग्घर लेख भईया जुन्ना परम्परा के निर्वहन बर साधुवाद 🙏🙏