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गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज : राम–भरत मिलन

रेखा पाण्डेय (लिपि)

भारतीय संस्कृति में रामचरितमानस केवल कथा-ग्रंथ नहीं है, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन करने वाला महाग्रंथ है। इसमें वर्णित प्रत्येक प्रसंग समाज और व्यक्ति दोनों के लिए शिक्षा का स्रोत है। ऐसा ही एक हृदयस्पर्शी प्रसंग है  लंका विजय के बाद अयोध्या लौटते समय राम और भरत का मिलन। यह दृश्य केवल भाइयों का पुनर्मिलन नहीं, बल्कि त्याग, कर्तव्य और आदर्श का समन्वय है।

लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे, तो नगरवासियों के साथ गुरु वशिष्ठ, माताएँ, शत्रुघ्न और सबसे बढ़कर भरत उनसे मिलने के लिए व्याकुल थे। चौदह वर्षों से विरह सह रहे भरत का मन इस मिलन के लिए तड़प रहा था। इस पुनर्मिलन का वर्णन रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में अत्यंत भावपूर्ण शैली में हुआ है।

अयोध्या की ओर राम का लौटना

उत्तरकाण्ड में गोस्वामी तुलसीदास वर्णन करते हैं:

दोहा 4 (क)
आवत देखि लोग सब कृपासिंधु भगवान।
नगर निकट प्रभु प्रेरेउ उतरेउ भूमि बिमान॥

संदर्भ: अयोध्या प्रवेश।
अर्थ: कृपा के सागर भगवान श्रीराम ने सब लोगों को आते देखा तो उन्होंने पुष्पक विमान को नगर के समीप उतरने की प्रेरणा दी। विमान पृथ्वी पर उतर आया।

यह दृश्य केवल भौतिक आगमन नहीं था, बल्कि रामराज्य की पुनः स्थापना का संकेत था। अयोध्यावासी अपने प्रिय राम की प्रतीक्षा कर रहे थे और प्रभु ने भी उनके प्रेम का सम्मान करते हुए भूमि पर कदम रखा।

दोहा 4 (ख)
उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु।
प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु॥

अर्थ: विमान से उतरकर प्रभु ने पुष्पक से कहा कि तुम अब कुबेर के पास जाओ। राम की प्रेरणा से वह चला, उसे स्वामी के पास जाने का हर्ष था और प्रभु से बिछुड़ने का दुख भी।

यहाँ तुलसीदास जी ने निर्जीव विमान को भी संवेदनशील बना दिया है। यह दिखाता है कि जो भी राम के संपर्क में आता है, वह प्रेम और विरह दोनों भावों से भर जाता है।

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गुरु वशिष्ठ से मिलन

धाइ धरे गुर चरन सरोरुह। अनुज सहित अति पुलक तनोरुह॥

अर्थ: राम और लक्ष्मण दौड़कर गुरु वशिष्ठ के चरणकमलों में गिर पड़े। उनके तन-मन रोमांच से भर गए।

यह दृश्य बताता है कि प्रभु श्रीराम जैसे ईश्वरावतार भी अपने गुरु के चरणों में विनम्र होकर गिरते हैं। समाज के लिए यह शिक्षा है कि गुरु का स्थान सर्वोपरि है, चाहे शिष्य कितना ही महान क्यों न हो।

राम और भरत का भावुक मिलन

अब वह क्षण आया, जिसके लिए चौदह वर्षों से भरत तपस्वी-सा जीवन जी रहे थे।

चौपाई
गहे भरत पुनि प्रभु पद पंकज। नमत जिन्हहि सुर मुनि संकर अज॥

अर्थ: भरत ने प्रभु श्रीराम के वे चरण पकड़ लिए जिन्हें देवता, मुनि, शिव और ब्रह्मा भी नमस्कार करते हैं।

भरत के लिए यह केवल भाई का मिलन नहीं था, बल्कि भगवान के चरणों में समर्पण था। उन्होंने अपना जीवन और राज्य सब राम को अर्पित कर दिया था। चौदह वर्षों तक उन्होंने सिंहासन पर बैठना स्वीकार नहीं किया और राम की खड़ाऊँ को ही अयोध्या का राजा माना।

चौपाई
परे भूमि नहिं उठत उठाए। बर करि कृपासिंधु उर लाए॥

अर्थ: भरत भूमि पर पड़े रहे और उठते नहीं थे। तब कृपा-सागर श्रीराम ने उन्हें स्वयं उठाकर हृदय से लगा लिया।

यह आलिंगन केवल भाइयों का आलिंगन नहीं, बल्कि भक्ति और भगवान का मिलन था। भरत का समर्पण देखकर राम स्वयं उन्हें हृदय से चिपका लेते हैं।

चौपाई
स्यामल गात रोम भए ठाढ़े। नव राजीव नयन जल बाढ़े॥

अर्थ: राम के साँवले शरीर में रोमांच खड़ा हो गया और उनके कमल जैसे नेत्रों में प्रेमाश्रुओं की बाढ़ आ गई।

यहाँ तुलसीदास ने उस क्षण की भावुकता को अद्भुत ढंग से चित्रित किया है। यह केवल भरत ही नहीं, स्वयं राम भी भावनाओं से भीग गए। ईश्वर और भक्त के बीच का यह प्रेम अद्वितीय है।

 शत्रुघ्न और लक्ष्मण का आलिंगन

दोहा 5
पुनि प्रभु हरषि सत्रुहन भेंटे हृदयँ लगाइ।
लछिमन भरत मिले तब परम प्रेम दोउ भाइ॥

अर्थ: प्रभु श्रीराम हर्षित होकर शत्रुघ्न को गले से लगाते हैं। फिर लक्ष्मण और भरत का मिलन हुआ, जो अत्यंत प्रेमपूर्ण था।

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यहाँ चारों भाइयों का पुनर्मिलन दिखता है। लक्ष्मण और भरत दोनों ने ही अपने-अपने कर्तव्यों में अपार त्याग किया था—एक ने राम के साथ वनवास भोगा, तो दूसरे ने अयोध्या में राज्य त्यागकर संन्यासी-सा जीवन जिया। इस मिलन में दोनों त्यागों का संगम है।

माताओं का मिलन

दोहा 6 (क)
भेंटेउ तनय सुमित्राँ राम चरन रति जानि।
रामहि मिलत कैकई हृदयँ बहुत सकुचानि॥

अर्थ: सुमित्रा जी अपने पुत्र लक्ष्मण की राम चरणों में प्रीति जानकर उनसे मिलीं। कैकेयी राम से मिलते समय बहुत संकोच में थीं।

यहाँ मातृ-भाव का चित्रण है। कैकेयी का हृदय अपराधबोध से भरा था क्योंकि उन्हीं की मांग पर राम को वन जाना पड़ा।

दोहा 6 (ख)
लछिमन सब मातन्ह मिलि हरषे आसिष पाइ।
कैकइ कहँ पुनि पुनि मिले मन कर छोभु न जाइ॥

अर्थ: लक्ष्मण सब माताओं से मिलकर आशीर्वाद पाकर हर्षित हुए। वे कैकेयी से बार-बार मिले, परंतु मन का क्षोभ मिटा नहीं।

यह दिखाता है कि घाव गहरे थे, परंतु सम्मान और कर्तव्य का पालन भी उतना ही गहरा था।

दोहा 7
लछिमन अरु सीता सहित प्रभुहि बिलोकति मातु।
परमानंद मगन मन पुनि पुनि पुलकित गातु॥

अर्थ: लक्ष्मण और सीता सहित राम को देखकर माताएँ परमानंद में मग्न हो गईं। उनका शरीर बार-बार पुलकित हो रहा था।

यहाँ मातृ-प्रेम का उत्कर्ष दिखाई देता है।

राम–भरत मिलन का सामाजिक संदेश

राम और भरत का यह मिलन केवल दो भाइयों का नहीं, बल्कि भाईचारे और समर्पण की आदर्श परिभाषा है।

  1. त्याग का आदर्श: भरत ने सत्ता और वैभव का त्याग किया। उन्होंने राम की खड़ाऊँ को सिंहासन पर रखकर चौदह वर्षों तक स्वयं संन्यासी का जीवन जिया। यह दिखाता है कि सच्चा भाई अपने हितों से ऊपर उठकर परिवार और धर्म के लिए बलिदान देता है।

  2. समर्पण का आदर्श: भरत ने केवल भाई नहीं, बल्कि ईश्वर को भी देखा। उनके लिए राम भगवान और भाई दोनों थे। यह समर्पण आज भी हमें यह सिखाता है कि रिश्तों में श्रद्धा और विश्वास का स्थान सर्वोपरि है।

  3. धैर्य और धीरज: चौदह वर्षों तक भरत ने राम की प्रतीक्षा की। बिना शिकायत, बिना अधीरता के। आज के समय में, जब धैर्य कम हो रहा है, यह प्रसंग हमें सहनशीलता का महत्व सिखाता है।

  4. भाईचारे का संदेश: लक्ष्मण और भरत का मिलन बताता है कि भले ही भाइयों के कर्तव्य अलग हों, लेकिन प्रेम और आदर समान होना चाहिए।

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आधुनिक संदर्भ में संदेश

आज का समाज भौतिकता, स्वार्थ और प्रतिस्पर्धा से भरा हुआ है। परिवारों में विवाद, भाइयों में विभाजन और रिश्तों में दरार आम हो चुकी है। ऐसे समय में राम–भरत का मिलन हमें यह याद दिलाता है कि—

  • परिवार का आधार त्याग और प्रेम है, न कि सत्ता और संपत्ति।

  • भाईचारा तभी टिकता है जब एक-दूसरे के लिए आदर और श्रद्धा बनी रहे।

  • सत्ता या वैभव से बड़ा है कर्तव्य और धर्म

यदि समाज इस आदर्श को अपनाए तो न केवल परिवारों में शांति आएगी, बल्कि राष्ट्र भी सुदृढ़ होगा।

राम–भरत मिलन का यह प्रसंग भावनाओं का महासागर है। इसमें भक्ति, करुणा, प्रेम, त्याग और समर्पण सभी मिलते हैं। जब भरत चरणों में गिरते हैं और राम उन्हें हृदय से लगाते हैं, तब केवल भाइयों का आलिंगन नहीं होता, बल्कि यह संदेश मिलता है कि— “सच्चा प्रेम वही है जिसमें त्याग हो, समर्पण हो और कर्तव्य सर्वोपरि हो।” आज भी जब समाज में स्वार्थ और विभाजन बढ़ रहे हैं, तब राम–भरत मिलन हमें प्रेरणा देता है कि भाईचारा केवल रक्त का रिश्ता नहीं, बल्कि हृदय का बंधन है। यही बंधन परिवार को जोड़ता है और राष्ट्र को सशक्त बनाता है।

लेखिका वरिष्ठ साहित्यकार एवं हिन्दी व्याख्याता हैं।