समस्या ही समाधान की जन्मदात्री है : मनकही

मनुष्य को जीवन में इन समस्या, परेशानी, मुसीबत आदि शब्दों से सामना करना पड़ता ही है, शायद ही किसी मनुष्य का जीवन निर्बाध रहा हो, जो मुंह में चांदी का चम्मच लेकर जन्म लेते हैं वे भी इन शब्दों से बच नहीं सकते। वैसे इनसे सभी बचना चाहते हैं, पर जीवन इनके बिना कुछ भी नहीं है।

बचपन में सुनी कहानी याद आ रही, एक बार मनुष्य ने भूख से परेशान होकर ईश्वर से भूख को ही समाप्त करने का वरदान मांगा कि “ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी”, फिर क्या दुनिया से भूख गायब तो सारी समस्या ही समाप्त। परंतु मानव जीवन की सार्थकता उसके कार्य पर ही निर्धारित है, भला चुपचाप कब तक बैठता?

तब उसे समझ आया कि दुनिया के सारे रंग और प्रपंच तो भूख पर ही टिके हैं, दुनिया का समस्त माया जाल भूख पर ही टिका है, चराचर जगत में ऐसा कोई प्राणी, जीव-जंतु नहीं, जिसे भूख ने व्यापा नहीं हो और यही उसकी वंश वृद्धि एवं विकास का कारक है। अत: मनुष्य ने परेशान होकर फिर से भूख वापस मांग ली, बस समस्या शुरू ,दुनिया चलने क्या दौड़ने लगी।

सच यही है समस्या और जीवन सदैव परछाईं की तरह साथ रहते हैं। रूप विभिन्न रहते हैं। कुछ समस्यायें शुरू होते ही ख़त्म हो जाती हैं, तो कुछ बेल की तरह फैलती ही चली जाती हैं, उन्हें काटना -छांटना पड़ता है। मनुष्य शांति से उचित-अनुचित पर विचार ना करते हुए अंधे सिपाही के समान साम दाम दंड भेद रूपी अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित होकर समस्याओं से लड़ने उतर जाता है और हासिल कुछ नही होता ,बदले में शक्ति का ह्रास और मन -मस्तिष्क की शांति भी छिन जाती है।

मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी प्राथमिकता पर विशेष ध्यान देते हुए एक-एक समस्याओं का निवारण करे। जो अनावश्यक हो उसे सुप्तावस्था में ही पड़े रहने दे। सभी समस्याओं को हल करने का प्रयास करना चाहिये। कहा गया है”जब तक सांस, तब तक आस” परंतु एक समय ऐसा आता है जब मनुष्य की लड़ने की क्षमता ही समाप्त होने लगती है, ऐसी स्थिति में “जान है तो जहान है”यही उपाय रह जाता है।

सभी जानते हैं भगवान श्री कृष्ण का एक नाम रणछोड़ भी है क्योंकि कृष्ण, जरासंघ जैसे अतुलनीय शक्ति बल, पराक्रमी, व्यक्तिव वाले एवं भगवान शिव के अनन्य भक्त और दानी से युद्ध में रणभूमि छोड़कर भाग गए थे। भगवान की इस लीला के पीछे भी एक उद्देश्य था। उन्होंने समस्त प्राणियों को सन्देश दिया कि हमेशा लड़ने-लड़ाने की प्रवृति को समयानुसार छोड़ना आवश्यक होता है। जीवन में दो बातों का स्मरण करते हुए कार्य करना चाहिए वह है “भाग,लो या भागलो”।

कहते हैं कि अगर चूहे का आखेट करना हो तो सिंह के आखेट का आयुध पास में होना चाहिए अर्थात किसी को कार्य करने के लिए पूर्ण मनोयोग एवं सम्पूर्ण शक्ति का प्रयोग करना चाहिए, जिससे सफ़लता सौ प्रतिशत तक होती है। जीवन यदि सुख-शांति पूर्वक व्यतीत करना चाहते हो तो समस्या में उलझकर स्वयं समस्या बनने से बेहतर होगा कि उचित तथा महत्वपूर्ण को ग्रहण करें एवं अनावश्यक का त्याग करें। जीवन का सार यही है।

आलेख

रेखा पाण्डेय
अम्बिकापुर, सरगुजा
छत्तीसगढ़

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