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प्रेम विवाह आकर्षण, यथार्थ और जिम्मेदारियां : मनकही

स्वराज करुण 
(ब्लॉगर एवं पत्रकार )

इन दिनों दिन-ब-दिन महानगर बनते जा रहे शहरों और महानगर बन चुके नगरों में प्रेम-विवाह की घटनाओं को आज के दौर में सामान्य मान लिया जाता है, और उन पर संबंधित परिवारों में और स्थानीय समाज में कोई खास चर्चा या हलचल नहीं होती। लोग अपनी रोजी-रोटी या नौकरी के चक्कर में, अपने व्यापार-व्यवसाय की व्यस्तता में ऐसी घटनाओं का संज्ञान नहीं लेते (लेना भी नहीं चाहिए)।

लेकिन गाँवों और गाँवनुमा कस्बाई बस्तियों में अगर प्रेम-विवाह की कोई घटना कहीं हो जाए, तो ऐसे लोग, जिनका उस घटना से कोई लेना-देना नहीं होता, वे भी उस बारे में दबी ज़ुबान से कई दिनों तक अपने दोस्तों के बीच चटकारे लेकर चर्चा करते रहते हैं।

प्रेम-विवाह चाहे अंतरजातीय हो या अंतरधार्मिक, यह दो लोगों यानी पुरुष और महिला के जीवन का निजी मामला होता है, बशर्ते वे दोनों बालिग हों। लेकिन इस बात पर भी विचार करना आज के दौर में बहुत जरूरी हो जाता है कि अगर प्रेम-विवाह करने वाले जोड़ों में से कोई भी एक आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर न हो, किसी रोजगार या नौकरी में न लगा हो, तो उनके विवाहित जीवन में घर-गृहस्थी का खर्चा-पानी कैसे चलेगा?

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अगर इस सवाल पर उन्होंने विचार नहीं किया, तो रोटी, कपड़ा और मकान के चक्कर में प्रेम का राग-रंग उतरते देर नहीं लगेगी। दोनों तरफ के माता-पिता और अभिभावकों को भी इस पर ध्यान देना चाहिए; उन्हें अपने बेटे-बेटियों को इस बारे में समझाना चाहिए।

वैसे यह भी बहुत जरूरी है कि चाहे प्रेम विवाह हो या अरेंज्ड विवाह, दोनों ही मामलों में दोनों पक्षों को और वर-कन्या को भी एक-दूसरे की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को ठीक से देख लेना और समझ लेना चाहिए। वर की शिक्षा, उम्र, उसके रोजगार और चरित्र आदि के बारे में बेटियों को भी पक्की जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए। अन्यथा बाद में पछताने से कोई लाभ नहीं होने वाला!

आज के युग में चाहे लैला-मजनू हों या शीरीं-फ़रहाद या लोरिक-चंदा, कथित प्रेम का बुखार उन पर तब तक ही चढ़ा रहता है, जब तक नून, तेल, लकड़ी का चक्कर दोनों के गले न पड़ जाए! शादी के बाद राशन-पानी, रोटी, कपड़ा और मकान तथा बाल-बच्चों के चक्कर में यह बुखार दुम दबाकर, पतली गली से कब चुपके से कहीं खिसक लेता है, पता ही नहीं चलता!

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हालांकि सम्पन्न वर्ग के वर-वधुओं की बात अलग है, लेकिन गरीब और मध्यवर्गीय वर-वधुओं के मामले में यह बात बिल्कुल फिट बैठती है। शादी-ब्याह के मामलों में वर और कन्या, दोनों को अपने माता-पिता और परिवार की मान-मर्यादा का भी ध्यान रखना चाहिए।

हाँ, जिन्हें अपने माँ-बाप और घर-परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा की कोई परवाह नहीं, उन्हें समझाना व्यर्थ है, और उनसे दूरी बनाए रखने में ही सबकी भलाई है।

कुछ वर्ष पहले एक कथित प्रेम विवाह को लेकर कुछ चैनलों के नलों से कई दिनों तक रह-रह कर जिस तरह चीख-पुकार का सैलाब बहता रहा, उसमें कथित ‘वर’ की उम्र, उसके चरित्र और उसके रोजी-रोजगार का सवाल दब कर रह गया। यद्यपि एक चैनल में यह जरूर देखने को मिला कि शहर की जिस कॉलोनी में वह कथित वर रहता था, वहाँ के वरिष्ठ नागरिक और नौजवान किस तरह उस लफूट की तमाम पोल-पट्टी खोल रहे थे!

निवास- पिथौरा, जिला महासमुंद छत्तीसगढ़

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