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जब जब आता है यह मौसम

पांव के नीचे धरती जलती, सिर ऊपर आकाश,
जब जब आता है यह मौसम करने यहां प्रवास

आंगन में है धूप बरसती,
घर से बाहर निकल न पायें,
आओ, हम तुम घर बैठे अब
ताश खेलते दिन बितायें।
बाहर चलती गरम हवा है, या है सूरज का निःश्वास,
जब जब आता हैं यह मौसम, करने यहां प्रवास ।

कुछ रम जायेगे शतरंज में,
कुछ अब कैरम खेलेंगे,
धूप- धूप में घूमने वाले
धूप के थप्पड झेलेंगे।
पढ़ने में हैं जिनकी अभिरूचि, कहानियों की करें तलाश
जब आता है यह मौसम, करने यहां प्रवास।

सुबह से देखो चारों ओर
गरमी का ही जाल तना है,
दोपहरी में घर से बाहर
पांव रखना सख्त मना है
शाम शाम को घर से निकल कर, सभी मनाते हैं उल्लास
जब जब आता है यह मौसम, करते यहां प्रवास

रात सितारों के मेले में
सोते हैं हम नभ के नीचे
और दौड़ते हैं स्नेहिल
शीतल सपनों के हम पीछे
नीद खुलते ही सपनों का, मिट जाता है शीतल आभास,
जब-जब आता है यह मौसम, करने यहां प्रवास

स्वराज्य ‘करूण
दैनिक महाकोशल / 14 मई 1978.