उत्तरदायित्व के साथ धैर्य का अटूट सम्बन्ध है : मनकही
सृष्टि के रचयिता ने जब मानव की रचना की तो उसे कुछ जीवन मूल्यों और उनसे जुड़े दायित्वों के साथ इस धरती पर भेजा। जिनका निर्वहन उसे अपने जीवन काल में करना ही पड़ता है। जिसे हम जिम्मेदारी, जिम्मा, उत्तरदायित्व जवाबदारी भी कहतें है ।
उत्तरदायी या उत्तरदायित्व शब्द अपने में एक चुनौती पूर्ण भाव का अहसास कराता हैं। जिसमे किये गए कार्यों के प्रति लोगों के प्रश्नों की संभावना बनी रहती है, क्योकि कार्यक्षेत्र और व्यक्ति की विचार धारा में भिन्नता होती है। सभी को संतुष्ट कर पाना संभव नही। परंतु ऐसा सोचकर जिम्मेदारी निभाने से पीछे नही हटा जा सकता।
अगर जिम्मा मिलना भाग्य की बात है तो जिम्मेदारी मिलना भी बड़े सौभाग्य की बात है। ये उन्ही को दी जाती है जो कर्म प्रधान और दृढ -संकल्प शक्ति के धनी हों। अच्छे-बुरे परिणाम की चिंता न करते हुए लक्ष्य प्राप्ति की क्षमता रखता हो।
जिम्मेदारी के साथ धैर्य का अटूट सम्बन्ध है। धैर्य से ही मनुष्य विषम परिस्थतियों का सामना कर मार्ग ढूंढने में सफल होता है। जिम्मेदारी निभाने में लोगों का सहयोग भी अपेक्षित है, परंतु ये सहयोग लक्ष्य प्राप्ति तक मिले यह आवश्यक नहीं। इसलिए प्रारम्भ से ही आत्मविश्वास और स्वविवेक से अपने दायित्व पूर्ण करना ही श्रेयस्कर है।
जिम्मेदारी निभाने में त्रुटियों का होना स्वाभाविक है गलतियां इंसान से ही होती हैं क्योकि केवल ईश्वर ही अकेला निर्दोष है। मनुष्य द्वारा लिए गए प्रत्येक निर्णयों का सही होना जरूरी नही, किंतु गलत निर्णय एक अवसर भी प्रदान करता है, जिसके बाद अनुभव से भरा सुखद परिणाम प्राप्त होता है।
संसार में दो तरह के लोग होते हैं एक जिम्मेदारी निभाने वाला , दूसरा जिम्मेदारी से भागने वाला, जिसे पलायनवादी भी कह सकते है। ऐसे लोग आलसी, कायर, डरपोक, परपोषी, अकर्मण्य होते हैं। इतिहास गवाह है कि परिवार से लेकर राष्ट्र तक का संचालन सदैव से कर्मण्य, ईमानदार और सजग व्यक्तियों द्वारा ही होता रहा है और आगे भी होता रहेगा।
जिम्मेदारी एक शक्ति पुंज की भांति होती है। जिसे मिलती है वह स्वयं को ऊर्जावान महसूस करने लगता है। मन-मस्तिष्क में तरंग सी उठने लगती है और व्यक्ति सक्रिय हो जाता है। यह समय उसकी बुद्धि, साहस, धैर्य, विवेक की परीक्षा का होता है। जब आत्मसम्मान की बात आती है तब व्यक्ति तन-मन-धन की चिंता ना करते हुए जिम्मेदारी को अच्छी तरह पूरी करने के लिये तत्पर हो जाता है।
मन में विचार उठता है कि जिम्मेदारी निभाई कैसे जाये? इसके लिए कुछ सिद्धान्तों पर चलना होगा ।जैसे अनुशासित व जागरूक होना अति आवश्यक है। दोषारोपण की प्रवृति से बचना, अपनी गलतियों को बेझिझक स्वीकारना, किसी के स्वाभिमान को बिना ठेस पहुंचाए सामंजस्य के साथ समस्या का निवारण करना इत्यादि। सकारात्मक सोच के साथ तनाव रहित वातावरण का होना भी अति आवश्यक है।
कहा भी जाता है कि जिम्मेदारी अहसास होने का बड़ा भाव है और दायित्व बोध के साथ ही जीवन मूल्यों को महसूस करते हुए ही जिम्मेदारी का निर्वहन बड़ी सहजता के साथ किया जा सकता है।
Sundar lekh