ऑपरेशन सिंदूर: एक आध्यात्मिक वैश्विक राष्ट्रयुद्ध

“ऑपरेशन सिंदूर” केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना का पुनर्जागरण है। यह एक ऐसा संकल्प है, जो आतंक, अन्याय और अधर्म के विरुद्ध धर्म, नारी सम्मान और मानवता की रक्षा हेतु खड़ा हुआ है। यह अभियान मात्र सीमाओं की रक्षा का मामला नहीं, बल्कि सनातन सभ्यता की आत्मा को पुनः प्रतिष्ठित करने का एक प्रयास है।
सिंदूर: शक्ति, संतुलन और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक हिंदू परंपरा में सिंदूर मात्र सौभाग्य का प्रतीक नहीं, वह शक्ति का रंग है—माँ दुर्गा की ज्योति का विस्तार। यह लाल रेखा केवल मांग की शोभा नहीं, बल्कि धर्म की रेखा है, जिसके पार कोई भी अन्याय स्वीकार्य नहीं। जब इस प्रतीक का अपमान होता है, तो वह एक स्त्री मात्र पर आघात नहीं होता, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि के संतुलन और धर्म के मूल तत्वों को चुनौती दी जाती है। सिंदूर और सभ्यता का उत्तर कश्मीर में जो हुआ, वह किसी एक भूभाग या एक समुदाय पर नहीं, बल्कि समूची सभ्यता पर आघात था।
यह घटना “सीता हरण” और “द्रौपदी चीरहरण” जैसे ऐतिहासिक प्रतीकों को पुनर्जीवित करती है। हमारी संस्कृति वह है जो स्त्री सम्मान की रक्षा हेतु रामायण रचती है, महाभारत रचती है, और आवश्यकता पड़ने पर रणचंडी का रूप ले लेती है। वही हमारी भारतीय आर्मी अब रणचंडी के रूप में पाकिस्तान के आतंकियों पर टूट पड़ी है l “हम वह सभ्यता हैं जो नारी सम्मान के लिए महायुद्ध रचती है। हम वह संस्कृति हैं जो रावणों और दुर्योधनों का अंत करती है।” यह प्रतिशोध नहीं, राष्ट्रयुद्ध है “ऑपरेशन सिंदूर” कोई राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं, यह एक आध्यात्मिक यज्ञ है—धर्म की पुनर्स्थापना, स्त्री की गरिमा की रक्षा और मानवता की प्रतिष्ठा के लिए। यह वह क्षण है जब शस्त्र, शास्त्र की रक्षा हेतु उठते हैं।
जब अधर्म सीमा लांघता है, तब धर्म भी ध्वज उठाता है। “धर्मो रक्षति रक्षितः”—जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी रक्षा स्वयं धर्म करता है। भारत की आत्मा की पुकार “ऑपरेशन सिंदूर” भारत की आत्मा की पुकार है—एक ऐसी सभ्यता की चेतावनी जो कभी भी अन्याय को मौन स्वीकृति नहीं देती। यह संदेश है कि स्त्री को केवल पूज्य नहीं, बल्कि सज्जित और सशस्त्र भी मानना होगा। माँ दुर्गा की भुजाएं अब हमारी सेना के रूप में प्रकट हो चुकी हैं। जब शक्ति अपमानित होती है, तब रक्षा के लिए स्वयं शक्ति ही अवतरित होती है।
अतः यह आर्मी अभियान केवल एक रणनीतिक कार्यवाही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से युगांतकारी उद्घोष है— “सिंदूर की रक्षा ही सृष्टि की रक्षा है।” यह वह घोष है जो आने वाली पीढ़ियों को यह स्मरण कराएगा कि भारतवर्ष अन्याय के विरुद्ध कभी निष्क्रिय नहीं रहता, और नारी के सम्मान की रक्षा हेतु वह सदा एकजुट होकर खड़ा होता है—शब्दों से, कर्मों से और रणचंडी की भाँति संकल्पों से।
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