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नेशनल कांफ्रेंस सांसद रूहुल्लाह मेहदी का बड़ा बयान: “जनता के भरोसे को तोड़ा गया, हमें अंतरात्मा की राजनीति चाहिए”

जम्मू-कश्मीर से नेशनल कांफ्रेंस (एनसी) के सांसद और वरिष्ठ नेता आगा रूहुल्लाह मेहदी ने एक बार फिर अपनी ही पार्टी और घाटी की मौजूदा राजनीति पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा है कि राज्य के लोगों के साथ वादे और हकीकत के बीच बड़ा अंतर है, और मौजूदा राजनीति से लोगों का भरोसा टूट रहा है।

रूहुल्लाह मेहदी, जो लगातार पार्टी नेतृत्व और सरकार की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं, ने राजनीतिक अंतरात्मा और ईमानदारी की कमी को इस “भरोसे की टूट” का मुख्य कारण बताया।

“राजनीति में आत्मा गायब हो गई है”

अपने बयान में उन्होंने कहा, “चुनावों से पहले जो वादे किए जाते हैं, वे सत्ता में आते ही बदल जाते हैं। सत्ता के गलियारों में पहुंचने के बाद नेता अपने शब्दों से मुकर जाते हैं। हम एजेंसियों और केंद्र के प्रति जवाबदेह हैं, लेकिन जनता और अपनी अंतरात्मा के प्रति नहीं। यही सबसे बड़ा संकट है।”

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उन्होंने पीडीपी के 2014 के चुनावों के बाद बीजेपी के साथ गठबंधन को भी उदाहरण के रूप में पेश किया और कहा कि एनसी को भी अब जनता इसी नजरिए से देख रही है।

राजनीतिक सुधार की तलाश में संवाद यात्रा

मेहदी ने साफ किया कि वे कोई नया राजनीतिक मोर्चा नहीं बना रहे हैं, बल्कि एक संवाद और आत्ममंथन की प्रक्रिया शुरू कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे कश्मीर और जम्मू डिवीजन के विभिन्न हिस्सों में जाकर ऐसे लोगों से मिल रहे हैं जो इस मुद्दे को समझते हैं और समाज में बदलाव की चाह रखते हैं — फिर चाहे उनका राजनीतिक झुकाव जो भी हो।

एनसी में अंदरूनी मतभेद, “मैं आज अकेला हूं”

सांसद ने स्वीकार किया कि पार्टी के कई विधायक चुनाव प्रचार के दौरान उनके साथ खड़े दिखे, लेकिन अब वे अकेले पड़ गए हैं। उन्होंने कहा, “उन्होंने मुझसे वादा किया था कि अगर कुछ गलत होगा, तो वे मेरे साथ खड़े रहेंगे, लेकिन आज मैं अकेला हूं।”

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उनका कहना है कि पार्टी का नेतृत्व, खासकर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, अब उन वादों को पीछे छोड़ चुके हैं जिन पर जनता ने एनसी को वोट दिया था — खासतौर पर जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति और संवैधानिक अधिकारों की बहाली को लेकर।

“अगर बदलाव पार्टी के भीतर नहीं हुआ, तो रुकूंगा नहीं”

रूहुल्लाह ने संकेत दिए कि अगर पार्टी की मौजूदा कार्यप्रणाली उन्हें अपने लक्ष्य से रोकती है, तो वे उससे अलग रास्ता अपनाने से पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने कहा, “अगर कोई बाधा मेरी ईमानदार सेवा में आ रही है, तो मैं उसे तोड़ने के लिए तैयार हूं।”

वैकल्पिक राजनीतिक दृष्टिकोण की मांग

उन्होंने कहा कि राज्य की राजनीति में अब भी “राजनीतिक अंतरात्मा” की ज़रूरत है। राज्यपाल शासन भी सामान्य प्रशासन चला सकता था, लेकिन जनता ने एनसी को केवल प्रशासन के लिए नहीं चुना था। उन्होंने कहा, “हमने वादा किया था कि हम 2019 के बाद छीने गए अधिकारों और पहचान के लिए संघर्ष करेंगे। लेकिन वह संघर्ष आज कहीं नजर नहीं आता।”

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अन्य मुद्दों पर भी मुखर

रूहुल्लाह मेहदी ने आरक्षण नीति में असंतुलन और उसमें सुधार की भी मांग की। वे हाल ही में आरक्षण नीति के खिलाफ छात्रों के विरोध में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि “खुले मेरिट” के लिए केवल 30% सीटें बची हैं, जो अनुचित है।

इसके साथ ही, उन्होंने भारत सरकार की फिलिस्तीन नीति पर भी तीखी टिप्पणी की और कहा कि बीजेपी और आरएसएस ने देश की विदेश नीति को “हाईजैक” कर लिया है।

एनसी पर वक्फ एक्ट जैसे मुद्दों पर निष्क्रियता का आरोप

उन्होंने अफसोस जताया कि संसद में वक्फ एक्ट संशोधन के खिलाफ प्रस्ताव तमिलनाडु से आया, लेकिन जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने इस पर कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया — जबकि यह देश का एकमात्र मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्र है।