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विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में नाग एवं जैव विविधता संरक्षण

भारत में नागपंचमी धूमधाम से मनाई जाती है, इस दिन नागों की पुजा करने का विधान है। संपेरे नाग लेकर आते हैं तो कई लोग प्रत्यक्ष पत्र पुष्प चढ़ाकर पूजा करते हैं तथा कई लोग नाग मंदिरों में जाकर या घर पर ही नाग के चित्र के पत्र पुष्प अक्षत चढ़ाकर पूजा करते हैं। इस नाग पूजा पीछे बहुत सारी मान्यताएं है।

नागों की उपस्थिति भारत ही नहीं पूरे विश्व की सभ्यताओं में दिखाई देती है। भारतीय संस्कृति में नाग का महत्वपूर्ण धार्मिक, सांस्कृतिक, और आध्यात्मिक महत्व है। नागों को विभिन्न रूपों में पूजा जाता है और उन्हें विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और मंदिरों में प्रमुखता दी जाती है तथा प्राचीन स्थापत्य शिल्प में इन्हें महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, भारत में नागों के प्रति श्रद्धा और पूजा के पीछे कई कारण हैं।

भारत के हिन्दू धर्म के सभी सम्प्रदायों में नाग की प्रधानता दिखाई देती है। शैव सम्प्रदाय के प्रमुख भगवान शिव का नागों से गहरा संबंध है। भगवान शिव के गले में वासुकि नाग का वास है, जो उनकी शक्ति और महिमा का प्रतीक है। नागों को शिव के साथ जोड़ने का मुख्य कारण उनकी शक्ति, अनन्तता और पुनर्जन्म का प्रतीकात्मकता है।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व 

हिन्दू धर्म के वैष्णव सम्प्रदाय के प्रमुख देवता भगवान विष्णु शेषनाग पर विराजते हैं तथा मान्यता है कि पृथ्वी को शेषनाग ने अपने फ़न पर धारण कर रखा है। प्रतिमाओं एवं चित्रों में भगवान विष्णु को शेषनाग पर शयन करते हुए दिखाया जाता है। शेषनाग, जिनके हजार सिर हैं, ब्रह्मांड की स्थिरता का प्रतीक हैं। विष्णु के साथ शेषनाग का संबंध उनकी विश्व की रक्षा करने की भूमिका को दर्शाता है। इसके साथ पौराणिक वांग्मय में भगवान विष्णु अवतार श्रीकृष्ण कालिया नाग का संहार करते दिखाई देते हैं।

धार्मिक मान्याता होने के कारण नाग पंचमी एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है, जिसमें नागों की पूजा की जाती है। यह त्योहार सावन महीने में आता है और इसमें नागों की पूजा उनके संरक्षण और आशीर्वाद के लिए की जाती है।

नागपूजा का सांस्कृतिक महत्व भी दिखाई देता है। नागों की केंचुली बदलने की क्षमता के कारण उन्हें पुनर्जन्म और अमरता का प्रतीक माना जाता है। यह भारतीय दर्शन में आत्मा के पुनर्जन्म और मृत्यु के चक्र के साथ संबंधित है। नागों को उर्वरता और संरक्षण का प्रतीक माना जाता है। कृषि प्रधान समाजों में नागों की पूजा फसल और भूमि की उर्वरता के लिए की जाती है।

प्राचीन काल में मंदिरों में नागों का अंकन उनके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाने के लिए किया जाता था। यह धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और संरक्षण के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता था। नागों को जल स्रोतों का रक्षक माना जाता था। मंदिरों में नागों का अंकन और पूजा जल स्रोतों की सुरक्षा और शुद्धता के प्रतीक के रूप में की जाती थी।

भारत में भूमि का स्वामी नाग को ही माना जाता है तथा जब भी कोई नया मकान बनवाता है वह नींव पूजन के समय धातु की नाग नागिन नींव के पहले पत्थर के साथ स्थापित करता है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में नागों की पूजा की स्थानीय मान्यताएँ और किंवदंतियाँ हैं। यह प्रथा स्थानीय देवताओं और लोक कथाओं के साथ जुड़ी होती है, जिससे नागों की पूजा का महत्व बढ़ता है।

धार्मिक ग्रंथ और पौराणिक कथाएँ:

भारतीय धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में नागों का महत्वपूर्ण स्थान है। महाभारत, रामायण, और पुराणों में नागों का वर्णन है। विशेष रूप से नागलोक, नागवंश और उनके राजाओं का वर्णन किया गया है।

वेदों, पुराणों, महाभारत एवं रामायण में नागों का वर्णन महत्वपूर्ण स्थान रखता है। नागों का उल्लेख विभिन्न रूपों में किया गया है और उनके लोक या निवास स्थानों का भी वर्णन किया गया है। यहाँ इन महाकाव्यों और पुराणों में नागों का विवरण दिया गया है:

महाभारत में नाग उल्लेख

शेषो वासुकिसंयुतः सर्पाणां प्रद्रवण्यथ।

तक्षकश्चाप्यनन्तश्च कर्कोटकधनंजयः।

एष चैव सहस्राक्षः सर्पः कृष्णफणाधरः। महाभारत, आदिपर्व (अध्याय 35, श्लोक 6-7)

अर्थ: शेष, वासुकि, तक्षक, अनंत, कर्कोटक, धनंजय, और कृष्णफणाधारी सहस्राक्ष ये सभी प्रमुख नाग हैं।

यस्य फणाः सहस्राणि चक्रवर्त्तिनमूर्धनि।

धारयन्ति धृतात्मानं शेषं पातालवासिनम्॥ (अध्याय 35, श्लोक 15-16):

अर्थ: शेषनाग, जिनके हजारों फण हैं, पाताल में निवास करते हैं और जिनकी शक्ति से चक्रवर्ती सम्राट भी प्रभावित होते हैं।

वाल्मीकि रामायण में नाग

अनन्तश्च वराहश्च तक्षकः कर्कोटकस्तथा।

कालियो मणिनागश्च नागः शङ्खश्च पन्नगः। वा रा, बालकांड (सर्ग 1, श्लोक 67)

अर्थ: अनंत, वराह, तक्षक, कर्कोटक, कालिया, मणिनाग, और शंख ये सभी प्रमुख नाग हैं।

यस्य ओरगेंद्रो धिषणां यत: पतन् स्रोतो: श्च ते निर्मलयामि चापि। वा रा, बालकांड (सर्ग 36, श्लोक 12)

अर्थ: शेषनाग, जो नागों के राजा हैं, उनकी धिषणा (धारणा) से यह पवित्र होता है।

रामायण में भी शेषनाग का उल्लेख है। भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार माना जाता है।

पुराणों में नाग

नमः शेषाय कुर्माय वासुकये महात्मने।

व्रजन्त्विताः प्रतिच्छन्दमक्षिण्वन्ति पतत्त्रिणः। भागवत पुराण (कांत 10, अध्याय 16, श्लोक 37)

अर्थ: शेषनाग, कुर्म (कछुआ), वासुकि जैसे महान नागों को नमन है। वे जिनकी दृष्टि से विमान की तरह चलते हैं।

वासुकिर्वै कंबलाश्वतरौ तक्षकश्चैव कालियः।

नागश्च पौण्ड्रकश्चैव धृतराष्ट्रो विभावसुः॥ विष्णु पुराण (अध्याय 5, श्लोक 19-20):

अर्थ: वासुकि, कंबल, अश्वतर, तक्षक, कालिया, पौण्ड्रक, धृतराष्ट्र, और विभावसु ये सभी प्रमुख नाग हैं।

अनन्तश्चास्मि नागानां। श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 10, श्लोक 28):

अर्थ: नागों में, मैं अनंत हूँ (शेषनाग)। भगवान कृष्ण यहाँ नागों में अपनी सर्वोच्चता को शेषनाग के माध्यम से प्रकट कर रहे हैं।

नागों के लोक:

नागों के कई लोक या निवास स्थानों का उल्लेख विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में किया गया है, नागलोक या पाताललोक: यह नागों का प्रमुख निवास स्थान है, जो पृथ्वी के नीचे स्थित है। इसे नागों की भूमि के रूप में वर्णित किया गया है, जहाँ वे अपने वैभव और शक्ति के साथ निवास करते हैं।

भागवत पुराण में वर्णित सात पाताल: अताल, विताल, सुताल, तलातल, महातल, रसातल, और पाताल। इन सात पातालों में नागों का निवास मुख्यतः रसातल और पाताल में होता है। शेषनाग का निवास क्षीरसागर में माना जाता है, जहाँ वे भगवान विष्णु के साथ रहते हैं। भारतीय संस्कृति में नागों का महत्व उनकी शक्ति, उर्वरता, पुनर्जन्म, और संरक्षण के प्रतीक के रूप में है। मंदिरों में नागों की पूजा और अंकन प्राचीन काल से ही धार्मिक और सांस्कृतिक विश्वासों का हिस्सा रही है, जो आज भी प्रचलित है।

भारत में नागपंचमी मनाने एवं नागपूजा करने के विभिन्न कारण माने जाते हैं जिनमें पौराणिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक कारण प्रमुख हैं।

पौराणिक कारण

समुद्र मंथन – समुद्र मंथन की कथा में नाग वासुकि ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। देवताओं और दानवों ने अमृत प्राप्त करने के लिए मंदराचल पर्वत का मंथन किया, जिसमें वासुकि नाग ने रस्सी का कार्य किया। इस दिन नागों की पूजा कर उनकी भूमिका को सम्मानित किया जाता है।

महाभारत के अनुसार, राजा जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प यज्ञ किया, जिसमें सभी नागों को आहुति देने का प्रयास किया गया। आस्तिक मुनि ने इस यज्ञ को रोककर नागों को बचाया। नागपंचमी इसी घटना की स्मृति में मनाई जाती है।

भगवान कृष्ण ने कालिया नाग को यमुना नदी से बाहर निकाल दिया था और उसके फनों पर नृत्य किया था। नागपंचमी पर इस घटना का स्मरण किया जाता है और नागों की पूजा की जाती है।

धार्मिक और आध्यात्मिक कारण

नागों का धार्मिक महत्व: नागों को भारतीय संस्कृति में देवता माना जाता है। वे भगवान शिव के गले का हार और भगवान विष्णु के शय्या के रूप में पूजे जाते हैं। शेषनाग और वासुकि नाग का महत्वपूर्ण धार्मिक महत्व है।

कृषि और उर्वरता: नागों को भूमि की उर्वरता और जल स्रोतों का रक्षक माना जाता है। किसान नागपंचमी के दिन नागों की पूजा करते हैं ताकि उनकी फसलें सुरक्षित रहें और भूमि उर्वर बनी रहे।

वर्षा और मानसून: श्रावण महीने में नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है, जब मानसून अपनी चरम सीमा पर होता है। नागों को वर्षा का प्रतीक माना जाता है और उनकी पूजा से अच्छी बारिश और फसल की कामना की जाती है।

सांस्कृतिक कारण

संरक्षण और सम्मान: नागपंचमी के दिन नागों को दूध और चावल अर्पित किया जाता है। यह दिन नागों को संरक्षण और सम्मान देने के लिए मनाया जाता है, ताकि वे मानव समाज के साथ शांतिपूर्ण सहअस्तित्व में रह सकें।

सामाजिक समरसता: नागपंचमी के दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, नागों की पूजा करते हैं और उनके लिए विशेष भोजन तैयार करते हैं। यह सामाजिक समरसता और एकता का प्रतीक है।

जैन एवं बौद्ध धर्म में नागों का स्थान

जैन और बौद्ध धर्म में नागों (सर्पों) का महत्वपूर्ण स्थान है, और इन धर्मों में नागों की पूजा और सम्मान की परंपराएँ भी पाई जाती हैं। यहाँ इन दोनों धर्मों में नागों का स्थान और उनकी पूजा की विधियों का विवरण दिया गया है। जैन धर्म में नागों का विशेष स्थान है और उन्हें पौराणिक संदर्भों में देखा जाता है।

जैन ग्रंथों और शिलालेखों में नागों का उल्लेख मिलता है, और वे कई जैन तीर्थंकरों के जीवन से जुड़े हुए हैं। जैन परम्परा में विशेषकर तारक नाग और कर्कोटक नाग जैसे नागों का उल्लेख मिलता है। ये नाग देवता जैन तीर्थंकरों के साथ जुड़े हुए हैं और जैन मिथकों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है तथा तीर्थंकर पार्श्वनाथ एवं सुपार्श्वनाथ के शीष पर नाग के फ़न अंकित किये जाते हैं। कहीं कहीं सहस्त्रफ़णी नाग का अंकन भी प्राप्त होता है।

बौद्ध धर्म में नागों को धार्मिक और पौराणिक संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जाता है। बौद्ध ग्रंथों में नागों का उल्लेख विभिन्न घटनाओं और कहानियों में होता है। बौद्ध धर्म में नागराज (नागा) को एक विशेष स्थान दिया जाता है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, नागराज माकल, नागराज नालंदा, और अन्य नागों ने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को स्वीकार किया और उनकी रक्षा की। बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण कथा है जिसमें नागों ने भगवान बुद्ध के ध्यान के दौरान उन्हें आच्छादित किया और उनकी रक्षा की।

बौद्ध धर्म में नागों की पूजा विशेष रूप से नागा पूजा के रूप में होती है। बौद्ध देशों जैसे थाईलैंड, श्रीलंका, और बर्मा (म्यांमार) में नागों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। कुछ बौद्ध समारोहों और त्योहारों में नागा पूजा की जाती है। इस पूजा में नागा देवताओं के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है और उन्हें विशेष आहार और अर्पण किए जाते हैं।

नागों का जैवविविधता संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान

हमारे पुरखों ने जाना कि नाग और सरीसृप मनुष्य के दुश्मन न होकर सहयोगी हैं। भले ही वे इनसे डरते थे क्योंकि नागों और सरीसृपों के काटने से प्राणी की मृत्यु हो जाती थी। एक संदर्भ के अनुसार सौ वर्ष पहले भारत में नाग दंश से 35000 लोग प्रतिवर्ष मारे जाते थे तो इसके पूर्व काल में इससे अधिक भी मारे जाते होंगे। इसलिए हमारे समाज में एक नाग पकड़ने एवं पालने वाली जाति ही बन गई, जिन्हें संपेरे कहा जाता है।

प्राचीन सभ्यता के निवासियों ने जाना कि नागों या सर्पों का जैव विविधता संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान है। वे पारिस्थितिक तंत्र (ecosystems) के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उनकी उपस्थिति कई प्रकार के पर्यावरणीय लाभ प्रदान करती है। सर्प जैव विविधता संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वे छोटे स्तनधारियों, पक्षियों, कीड़ों और अन्य छोटे जीवों का शिकार करते हैं। इस प्रकार, वे इन प्रजातियों की जनसंख्या को नियंत्रित रखते हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बना रहता है।  सर्प कई अन्य प्रजातियों का शिकार बनते हैं, जिससे खाद्य श्रृंखला का संतुलन बना रहता है। वे स्वयं भी कई बड़े पक्षियों, स्तनधारियों और अन्य शिकारी जीवों का भोजन बनते हैं।

सर्पों का कृषि के संरक्षण में प्रमुख योगदान हैं वे विशेषकर चूहे और अन्य कृंतकों का शिकार करते हैं जो फसलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस प्रकार, सर्प प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में कार्य करते हैं और फसलों की सुरक्षा में मदद करते हैं। सर्पों की उपस्थिति के कारण कृषि में रासायनिक कीटनाशकों का कम उपयोग होता है, जिससे पर्यावरण में विषाक्त पदार्थों की मात्रा कम होती है और जैव विविधता का संरक्षण होता है।

सर्प जैव विविधता का संकेतक हैं, सर्पों की उपस्थिति और उनकी प्रजातियों की विविधता पर्यावरणीय स्वास्थ्य का संकेत हो सकती है। स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र में सर्पों की विविधता अधिक होती है, जिससे यह जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण संकेतक बनता है।

कुछ सर्प प्रजातियाँ जमीन में बिल बनाती हैं, जिससे मिट्टी की संरचना और वायुरोधी (aeration) में सुधार होता है। यह प्रक्रिया पौधों की जड़ों के विकास के लिए अनुकूल होती है।

सर्प मृत जीवों का भी उपभोग करते हैं, जिससे पर्यावरण में अपशिष्ट प्रबंधन में मदद मिलती है। कुछ सर्पों के विष का उपयोग पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता है। यह विभिन्न बीमारियों के उपचार में सहायक हो सकता है। सर्पों की दुर्लभ और विशिष्ट प्रजातियाँ पर्यावरणीय पर्यटन का आकर्षण बन सकती हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होता है।

जैविक अनुसंधान और शिक्षा के क्षेत्र में सर्पों की उपस्थिति अनिवार्य है, इनके बिना ये अनुसंधान नहीं हो सकते। सर्पों पर किए गए शोध जैविक विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। इनके अध्ययन से विष विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान और संरक्षण जीवविज्ञान में नई समझ विकसित होती है। सर्पों के बारे में शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने से लोगों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के प्रति समझ विकसित होती है और संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा मिलता है।

विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में नागों का महत्व

भारत के अतिरिक्त विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में भी नागों एवं सर्पों का प्रमुख स्थान है। हम विश्व की कुछ प्राचीन सभ्यताओं में नागालोकन करते हैं तथा तत्कालीन सभ्यताओं में इनके धार्मिक एवं सांस्कृति महत्व के विषय में दृष्टिपात करते हैं।

माया सभ्यता

माया सभ्यता में नाग और सर्प को महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों के रूप में देखा जाता था। माया समाज में सर्प और नाग का कई अर्थ और महत्व थे, जो धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन में गहरे से जुड़े थे।

धार्मिक प्रतीक: माया मिथकों और धर्मग्रंथों में सर्पों को देवताओं के दूत और शक्तिशाली आत्माओं के रूप में देखा जाता था। ‘कुकुलकन’ या ‘क्वेत्ज़ालकोआटल’, जो एक पंखों वाला सर्प देवता था, माया और अन्य मेसोअमेरिकन सभ्यताओं में प्रमुख देवता था। यह देवता ज्ञान, आकाश और पृथ्वी के बीच की कड़ी का प्रतीक था।

सर्प और जल दोनों को एक दूसरे से जुड़े हुए माना जाता था। कृषि के लिए महत्वपूर्ण जल स्रोतों की देवी या देवताओं के रूप में सर्पों का चित्रण किया जाता था। सर्पों को योद्धाओं और संरक्षण की शक्ति का प्रतीक भी माना जाता था। कई योद्धाओं ने सर्प प्रतीकों को अपने हथियारों और वस्त्रों पर अंकित किया।

माया सभ्यता में खगोल विज्ञान का गहरा ज्ञान था, और सर्प को खगोलीय घटनाओं के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता था। माया कैलेंडर और खगोलीय गणनाओं में सर्प के प्रतीक शामिल थे। इन सभी तत्वों ने मिलकर माया सभ्यता में सर्प और नाग को एक अत्यधिक महत्वपूर्ण प्रतीक बनाया, जो धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक जीवन के हर पहलू में गहरे से जुड़ा था।

मिश्र की प्राचीन सभ्यता में नाग

मिस्र की प्राचीन सभ्यता में नाग या सर्प का बहुत महत्वपूर्ण स्थान था, और इसे विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक संदर्भों में देखा जा सकता है। विशेष रूप से, फ़राओ और देवी-देवताओं के साथ नाग के प्रतीक का अंकन मिस्र की कला और वास्तुकला में सामान्य था। इसके कुछ मुख्य कारण और महत्व निम्नलिखित हैं:

उरेयस (Uraeus): उरेयस, एक खड़ा हुआ कोबरा, मिस्र के फ़राओं का एक महत्वपूर्ण प्रतीक था। यह शक्ति, शाही अधिकार, और ईश्वरीय सुरक्षा का प्रतिनिधित्व करता था। फ़राओ अक्सर अपने ताज पर उरेयस का चित्रण करते थे, जो यह दर्शाता था कि वे देवताओं की सुरक्षा में हैं और उनकी शक्ति ईश्वरीय है।

देवी वजेत (Wadjet): वजेत, एक नागिन देवी, मिस्र की प्रमुख देवी थी, जो विशेष रूप से निचले मिस्र की संरक्षक मानी जाती थी। वजेत का संबंध संरक्षण, शाही सत्ता और पुनर्जन्म से था। उसे अक्सर एक कोबरा के रूप में दर्शाया जाता था और वह फ़राओं की रक्षा के रूप में मानी जाती थी।

पुनर्जन्म और अमरता: सर्प की केंचुली बदलने की क्षमता के कारण, इसे पुनर्जन्म और अमरता का प्रतीक माना जाता था। मिस्र के धार्मिक विश्वासों में, यह गुण महत्वपूर्ण था क्योंकि वे मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र में विश्वास करते थे।

मृत्युपरांत जीवन और सुरक्षात्मक प्रतीक: सर्पों को सुरक्षात्मक शक्तियों का प्रतीक भी माना जाता था। मिस्र की कब्रों और ताबूतों पर सर्पों का चित्रण मृतकों की आत्मा की रक्षा के लिए किया जाता था।

खगोल विज्ञान और समय: सर्प को खगोलीय घटनाओं और समय के चक्र के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता था। ‘मीहें’ (Mehen), एक विशाल सर्प जो सूर्य देवता रा की रात के दौरान रक्षा करता था, मिस्र के खगोल विज्ञान और धार्मिक मिथकों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।

सृष्टि और अराजकता: सर्प अक्सर सृष्टि की कथा और अराजकता के साथ भी जुड़े होते थे। ‘अपेप’ (Apep) या ‘आपोपिस’ (Apophis), अराजकता का सर्प, जो प्रतिदिन सूर्य देवता रा के साथ युद्ध करता था, मिस्र के मिथकों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।

इन सब कारणों से, मिस्र की प्राचीन सभ्यता में सर्प और नाग के प्रतीक महत्वपूर्ण धार्मिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक महत्व रखते थे। ये प्रतीक शक्ति, सुरक्षा, पुनर्जन्म, और अमरता के प्रतीक थे, और इन्हें फ़राओं के साथ अक्सर अंकित किया जाता था।

प्राचीन चीनी सभ्यता में नाग

प्राचीन चीनी सभ्यता में नाग और सर्प का महत्वपूर्ण धार्मिक, सांस्कृतिक, और प्रतीकात्मक महत्व था। चीनी मिथकों, कला, और परंपराओं में इनका गहरा संबंध था।

ड्रैगन (नाग): चीनी संस्कृति में ड्रैगन एक अत्यंत महत्वपूर्ण और सकारात्मक प्रतीक है। यह शक्ति, साहस, ज्ञान, और शुभता का प्रतीक है। ड्रैगन को आकाश और जल के तत्वों का नियंत्रण करने वाला माना जाता है, और यह वर्षा, तूफान, और नदियों का संरक्षक भी है।

सम्राट का प्रतीक: ड्रैगन को अक्सर चीनी सम्राट का प्रतीक माना जाता था। सम्राट को “ड्रैगन का पुत्र” कहा जाता था, और ड्रैगन का चित्रण शाही वस्त्रों, महलों, और अन्य शाही प्रतीकों में प्रमुखता से किया जाता था।

धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व: ड्रैगन का संबंध ताओवादी और बौद्ध धार्मिक परंपराओं से भी है। ताओवाद में, ड्रैगन को प्रकृति की आत्माओं के रूप में देखा जाता है जो पृथ्वी की रक्षा करते हैं और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देते हैं।

समृद्धि और भाग्य: ड्रैगन चीनी नव वर्ष और अन्य त्योहारों में समृद्धि, भाग्य, और उत्सव का प्रतीक माना जाता है। ड्रैगन नृत्य और ड्रैगन बोट रेसिंग जैसी परंपराएं चीन में व्यापक रूप से प्रचलित हैं।

राशि चक्र: चीनी ज्योतिष में, ड्रैगन बारह राशि चक्रों में से एक है। ड्रैगन वर्ष में जन्मे लोग साहसी, आत्मविश्वासी, और उत्साही माने जाते हैं।

यिन और यांग: ड्रैगन को यांग ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है, जो शक्ति, प्रकाश, और विस्तार का प्रतिनिधित्व करता है। यह अक्सर यिन (फीनिक्स या टाइगर) के साथ संतुलन बनाते हुए चित्रित किया जाता है।

सर्प: सर्प को भी चीनी संस्कृति में महत्वपूर्ण माना जाता है। यह राशि चक्र का एक और प्रतीक है और सर्प वर्ष में जन्मे लोग बुद्धिमान, करिश्माई, और रहस्यमय माने जाते हैं। सर्प को भी चिकित्सा और पुनर्जन्म का प्रतीक माना जाता है।

इन सब तत्वों ने मिलकर चीनी सभ्यता में नाग और सर्प को एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है। यह न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि समाज और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं में भी गहरे से जुड़े हैं।

मेसोपोटामिया सभ्यता
मेसोपोटामिया सभ्यता में नागों का महत्व बहुत बड़ा था। नागों को ज्ञान, पुनर्जन्म और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता था। इस सभ्यता में नागों के कई देवी-देवताओं का उल्लेख मिलता है, जैसे निनगिशजिदा, जो चिकित्सा और पुनर्जन्म के देवता माने जाते थे। नागों को मंदिरों में सम्मानित किया जाता था और धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल किया जाता था।

ग्रीक सभ्यता
ग्रीक सभ्यता में नागों का महत्व पौराणिक कथाओं में प्रमुखता से दिखाई देता है। मेडुसा, जो एक गोर्गन थी, के बाल नाग थे और उसकी नजरों से लोग पत्थर बन जाते थे। इसके अलावा, हाइड्रा नामक नौ सिरों वाला नाग, हेराक्लेस के बारह कार्यों में से एक में प्रमुख भूमिका निभाता है। नागों को स्वास्थ्य, चिकित्सा, और ज्ञान के प्रतीक के रूप में भी माना जाता था।

रोमन सभ्यता
रोमन सभ्यता में भी नागों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व था। एस्क्लेपियस, चिकित्सा के देवता, का प्रतीक एक नाग था जो एक छड़ी के चारों ओर लिपटा हुआ था। यह प्रतीक आज भी चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं का प्रतिनिधित्व करता है।

विश्व के अन्य देशों में नाग

इसके साथ ही विश्व के अन्य देशों में भी नागों का महत्वपूर्ण स्थान है। वहाँ भी नाग के देवता के रुप में स्थान दिया गया है तथा स्थापत्य में इनको स्थान मिला है।

नेपाल

नागपंचमी: नेपाल में नागपंचमी प्रमुख त्यौहार है। लोग नाग देवता की पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं। सर्पों को शुभ माना जाता है और उन्हें परिवार की सुरक्षा और समृद्धि के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

थाईलैंड

फाय्या नाग: थाईलैंड के कुछ क्षेत्रों में नागों की पूजा की जाती है। यह विशेष रूप से थाईलैंड-लाओस सीमा के पास मेकोंग नदी में प्रचलित है। नागों को जल देवता और संरक्षक माना जाता है। वे स्थानीय मिथकों और किंवदंतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

कंबोडिया

नाग पूजा: कंबोडिया के अंगकोर वाट मंदिर परिसर में नागों के चित्रण व्यापक रूप से पाए जाते हैं। यहाँ नागों की पूजा की परंपरा है। नागों को धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व दिया जाता है और वे संरक्षण के प्रतीक माने जाते हैं।

बाली, इंडोनेशिया

नाग पूजा: बाली में नागों की पूजा की जाती है और उन्हें देवता के रूप में माना जाता है। बाली के हिन्दू मंदिरों में नागों का चित्रण और उनकी पूजा आम है। नागों को सुरक्षा और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

अफ्रीका

फोन जनजाति, बेनिन: यहाँ दाहोमेयन सांप पूजा की जाती है। यह विशेष रूप से ओउइदाह (Ouidah) में प्रचलित है। सर्पों को देवता के रूप में पूजा जाता है और उन्हें आध्यात्मिक और चिकित्सा गुणों का स्रोत माना जाता है।

आधुनिक पश्चिमी दुनिया

नियोपैगनिज्म और न्यू एज मूवमेंट्स: कुछ आधुनिक नियोपैगन और न्यू एज समूहों में भी सर्पों की पूजा की जाती है। को आध्यात्मिक पुनर्जन्म, चिकित्सा, और शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

इस तरह हम निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि नागों की उपस्थिति एवं उनकी पूजा प्राचीन सभ्यताओं एवं संस्कृतियों महत्व स्थान रखती है। भले ही उनकों अलग-अलग रुपों या कारणों से पूजा जाता हो परन्तु वे मानव सभ्यताओं में विशेष स्थान रखते हुए वर्तमान में भी विशिष्ट बने हुए हैं। नागों की उपस्थिति के पौराणिक आध्यात्मिक कारणों के अलावा जो कारण वर्तमान में दिखाई देता है वह जैव विविधता संरक्षण में इनका बहुआयामी योगदान है। इनके संरक्षण से न केवल पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बना रहता है, बल्कि यह मानव समाज के लिए भी लाभकारी है।

लेखक भारतीय लोक संस्कृति, पुरातत्व एवं इतिहास के जानकार हैं।

One thought on “विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में नाग एवं जैव विविधता संरक्षण

  • August 9, 2024 at 09:13
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    बहुत शानदार जानकारीयुक्त आलेख। धन्यवाद।

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