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लिमतरा: जहाँ चार पीढ़ियों ने निभाई भगवान श्रीराम की भूमिका, आज भी जीवंत है रामलीला की परंपरा

भिलाई नगर, 6 अक्टूबर 2025। सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध दुर्ग जिले का गाँव लिमतरा आज भी अपनी रामलीला परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। यह वही गाँव है जहाँ चार अलग-अलग पीढ़ियों के कलाकारों ने दशहरे के अवसर पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की भूमिका निभाकर न केवल अपनी कला का परिचय दिया, बल्कि लोकनाट्य परंपरा को भी जीवित रखा।

लिमतरा की रामलीला मंडली का इतिहास लगभग एक सदी पुराना है। इस मंच से छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय कवि स्वर्गीय पंडित दानेश्वर शर्मा ने करीब अस्सी वर्ष पहले श्रीराम की भूमिका निभाई थी। उनके बाद स्वर्गीय पंडित दानी प्रसाद शर्मा, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. परदेशीराम वर्मा, तथा पंडित पुरुषोत्तम शर्मा (निरंजन महाराज) ने भी अलग-अलग कालखण्डों में इसी मंच पर राम का अभिनय किया।

इन सभी कलाकारों का संबंध आगे चलकर भारत के प्रमुख औद्योगिक केंद्र भिलाई इस्पात संयंत्र से भी रहा, जहाँ उन्होंने अपनी सेवाएँ दीं। कला, साहित्य और श्रम—तीनों के संगम का यह उदाहरण लिमतरा की विशिष्ट पहचान बन गया है।

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इस वर्ष दशहरा पर्व के अवसर पर लिमतरा में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें डॉ. परदेशीराम वर्मा और पंडित पुरुषोत्तम शर्मा (निरंजन महाराज) ने भाग लिया। दोनों वरिष्ठ कलाकारों ने मंच साझा करते हुए रामलीला के अपने अनुभवों और स्मृतियों को ग्रामीणों के साथ साझा किया।

गोष्ठी के दौरान स्वर्गीय पंडित दानेश्वर शर्मा और स्वर्गीय पंडित दानी प्रसाद शर्मा को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। इस अवसर पर डॉ. वर्मा ने पंडित पुरुषोत्तम शर्मा को अपनी आत्मकथा ‘सुरंग के उस पार’ की सौजन्य प्रति भेंट की। उन्होंने कहा,

“लिमतरा दुर्ग जिले का वह गाँव है जहाँ की रामलीला मंडली की ख्याति दूर-दूर तक रही है। आज भी यहाँ रामलीला मंचन की परंपरा निरंतर जारी है।”

गाँव की सांस्कृतिक पहचान को और सशक्त बनाने में स्थानीय कलाकारों का योगदान उल्लेखनीय है। करीब पचीस वर्ष पहले महेश वर्मा द्वारा ‘लोकमया’ और गोकुल वर्मा द्वारा ‘सोनहा धान’ नामक दो सांस्कृतिक संस्थाओं की स्थापना की गई थी। आज भी ये दोनों संस्थाएँ लोकसंस्कृति के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।

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लिमतरा न केवल सांस्कृतिक दृष्टि से संपन्न है, बल्कि शिक्षा और चिकित्सा क्षेत्र में भी कई नामचीन व्यक्तियों का जन्मस्थान रहा है। इसे साहित्यकारों का गाँव भी कहा जाता है।

गोष्ठी का संचालन नीतीश वर्मा ने किया। कार्यक्रम में गायत्री परिवार के स्थानीय प्रमुख रामलाल यादव, श्रीमती स्मिता वर्मा, नारायण शर्मा, राजेन्द्र, सुन्दर पटेल सहित बड़ी संख्या में ग्रामीणजन उपस्थित रहे।