साहित्य महर्षि लाला जगदलपुरी : पुण्यतिथि विशेष
लाला जगदलपुरी ने अपनी 93 साल की जीवन यात्रा के 77 साल साहित्य साधना में लगा दिए। सृजन चाहे आधुनिक हिन्दी मे हो या छत्तीसगढ़ी सहित बस्तर अंचल की हल्बी और भतरी लोक भाषाओं में, उनकी लेखनी निरन्तर चलती रही। हिन्दी में अपनी कविताओं के माध्यम से उन्होंने मज़दूरों, किसानों और आम जनों के दुःख-दर्द को अभिव्यक्ति दी, वहीं लोकभाषाओं में आंचलिक जन -जीवन की भावनाओं को स्वर दिया। मैं याद कर रहा हूँ साहित्य महर्षि लाला जगदलपुरी को, जिनकी आज पुण्यतिथि है।
साहित्य और संस्कृति के ज्ञानकोश थे
लाला जगदलपुरी छत्तीसगढ़ और विशेष रूप से इस राज्य के आदिवासी बहुल बस्तर अंचल के लोक साहित्य और वहाँ की आंचलिक संस्कृति के चलते -फिरते ज्ञानकोश थे। सचमुच ऋषितुल्य था उनका जीवन। आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र नमन। उनका जन्म 17 दिसम्बर 1920 को जगदलपुर (बस्तर ) में हुआ था। अपने जन्म स्थान और गृहनगर जगदलपुर में ही 93 वर्ष की आयु में 14 अगस्त 2013 को उनका निधन हो गया।
उनके नाम पर हुआ जिला ग्रंथालय का नामकरण
साहित्य जगत में बस्तर संभाग के मुख्यालय जगदलपुर शहर की पहचान लाला जगदलपुरी के नाम से होती थी। उनसे जुड़ी स्मृतियों को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए उनकी जन्म और कर्मभूमि जगदलपुर में शासकीय जिला ग्रंथालय का नामकरण उनके नाम पर किया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से एक सराहनीय पहल करते हुए उनके जन्म दिवस 17 दिसम्बर 2020 को समारोहपूर्वक यह नामकरण किया गया।
पत्रकारिता के साथ सुदीर्घ साहित्य साधना
लाला जगदलपुरी ने सुदीर्घ साहित्य साधना के दौरान असंख्य रचनाओं का सृजन किया। वह बस्तर अंचल की आदिवासी लोकसंस्कृति के गहन अध्येता और प्रकाण्ड विद्वान थे। वहाँ की लोकभाषा हल्बी और भतरी में भी उन्होंने कई रचनाएँ लिखी। वह पत्रकार भी थे। उन्होंने वर्ष 1951 में रायपुर के अर्ध साप्ताहिक ‘राष्ट्रबन्धु ‘ सहित देश के अन्य अनेक प्रतिष्ठित समाचार पत्रों को बस्तर संवाददाता के रूप में अपनी सेवाएं दी। वह बस्तर की प्रमुख बोली ‘हल्बी ‘ के प्रथम साप्ताहिक ‘बस्तरिया ‘ के प्रथम सम्पादक भी रहे। यह साप्ताहिक वर्ष 1984 में वहाँ के दैनिक ‘दंडकारण्य समाचार ‘ के प्रकाशक और प्रधान संपादक श्री तुषारकान्ति बोस ने शुरू किया था।
उम्र के सोलहवें साल में शुरू हुआ था लेखन
लाला जी का साहित्य सृजन वर्ष 1936 में लगभग सोलह वर्ष की आयु में शुरू हो चुका था। वह मूल रूप से कवि थे। उनकी प्रकाशित पुस्तकों की एक लम्बी सूची है। उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं – मिमियाती ज़िन्दगी दहाड़ते परिवेश (1983), पड़ाव (1992) आंचलिक कवितायें (2005); ज़िन्दगी के लिये जूझती ग़ज़लें तथा गीत धन्वा (2011)और वर्ष 1986 में उनके सम्पादन में प्रकाशित सहयोगी काव्य संग्रह हमसफ़र, जिसमें लक्ष्मीनारायण पयोधि, बहादुरलाल तिवारी, गनी आमीपुरी और मेरी यानी स्वराज्य करुण की कविताएं शामिल हैं। लालाजी के प्रकाशित लोक कथा संग्रह हैं – हल्बी लोक कथाएँ (1972); बस्तर की लोक कथाएँ (1989); वन कुमार और अन्य लोक कथाएँ (1990); बस्तर की मौखिक कथाएँ (1991)। उन्होंने अनुवाद पर भी कार्य किया है तथा प्रमुख प्रकाशित अनुवाद हैं – हल्बी पंचतंत्र (1971); प्रेमचन्द चो बारा कहानी (1984); बुआ चो चीठीमन (1988); रामकथा (1991) आदि।
आंचलिक इतिहास और संस्कृति पर भी लिखी पुस्तकें
लाला जी ने अपने गहन अध्ययन से बस्तर के आंचलिक इतिहास और संस्कृति को भी पुस्तकों के रूप में कलमबद्ध किया। जिनमें प्रमुख हैं – बस्तर: इतिहास एवं संस्कृति (1994); बस्तर: लोक कला साहित्य प्रसंग (2003) तथा बस्तर की लोकोक्तियाँ (2008)। लाला जी की रचनाओं पर दो खण्डों में समग्र (2014) यश पब्लिकेशंस से प्रकाशित किया गया है।
पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशन
अनेक प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं में उनकी रचनाओं का वर्षों तक नियमित रूप से प्रकाशन हुआ, जिनमें नवनीत, कादम्बरी, श्री वेंकटेश्वर समाचार, देशबन्धु, दण्डकारण्य समाचार, युगधर्म, स्वदेश, नई-दुनिया, राजस्थान पत्रिका, अमृत संदेश, बाल सखा, बालभारती, पान्चजन्य, रंग,ठिठोली, आदि शामिल हैं। लाला जगदलपुरी ने बस्तर अंचल की जनजातियों की बोलियों और उनके व्याकरण पर भी शोधपूर्ण कार्य किया है।
अनेक सम्मानों से नवाजे गए
उन्हें कई सम्मान भी प्राप्त हुए जिनमें मध्यप्रदेश लेखक संघ द्वारा प्रदत्त ‘अक्षर आदित्य सम्मान’ तथा वर्ष 2004 में रायपुर में राज्य स्थापना दिवस ‘राज्योत्सव ‘ के मौके पर छत्तीसगढ़ शासन द्वारा प्रदत्त “पं. सुन्दरलाल शर्मा साहित्य सम्मान’ प्रमुख है।समारोह के मुख्य अतिथि पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी ने लालाजी को और पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी को पं सुंदरलाल शर्मा राज्य अलंकरण से सम्मानित किया था। लाला जी को उनकी सुदीर्घ साहित्य साधना के लिए बख्शी सृजन पीठ, भिलाई; बाल कल्याण संस्थान, कानपुर और पड़ाव प्रकाशन, भोपाल सहित समय -समय पर कई और संस्थाओं ने भी सम्मानित किया था।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार हैं।