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CM सिद्धारमैया को मिला बड़ा झटका, राज्यपाल के FIR आदेश को माना सही

कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार, 24 सितंबर 2024 को  सिद्धारमैया की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने राज्यपाल थावरचंद गहलोत द्वारा मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) साइट आवंटन मामले में उनके खिलाफ जांच के लिए मंजूरी की वैधता को चुनौती दी थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल को व्यक्तिगत शिकायत के आधार पर मामला दर्ज करने का अधिकार है।

मामला क्या है?

यह विवाद सिद्धारमैया की पत्नी बीएम पार्वती पर लगे आरोपों से संबंधित है। आरोप है कि उन्हें मैसूर के एक महंगे क्षेत्र में मुआवजा स्थल आवंटित किया गया, जो MUDA द्वारा अधिग्रहित की गई उनकी भूमि के मूल्य से अधिक था। MUDA ने पार्वती को उनकी 3.16 एकड़ भूमि के बदले भूखंड आवंटित किए थे, जबकि इस क्षेत्र में एक आवासीय लेआउट विकसित किया गया था।

मामले का इतिहास

इस मामले का इतिहास बहुत पुराना है। 1959 में यह जमीन कर्नाटक के मैसूर जिले के केसेरे गांव में स्थित थी। 1968 में जमीन के अधिकारों का निपटारा किया गया और धीरे-धीरे यह प्रक्रिया आगे बढ़ी। 1992 में निंगा की जमीन का अधिग्रहण किया गया, और 2001 में डीनोटिफ़ाइड भूमि का उपयोग कर साइटों का आवंटन किया गया।

इसके बाद 2014 में पार्वती ने MUDA से अपनी भूमि के लिए मुआवजे की मांग की, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न घटनाक्रम हुए। 2024 में सिद्धारमैया ने 62 करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा, जिसमें उन्होंने दावा किया कि उनकी जमीन हड़पी गई है।

हाईकोर्ट का निर्णय

हाईकोर्ट ने 12 सितंबर को मामले की सुनवाई पूरी की थी और अब अपना आदेश सुरक्षित रखा था। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई भी जल्दबाजी में कार्रवाई नहीं की जाएगी, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि राज्यपाल का FIR का आदेश सही है।

इस फैसले ने सिद्धारमैया के लिए एक बड़ी चुनौती उत्पन्न की है, खासकर जब आगामी चुनावों में यह मामला राजनीतिक चर्चा का केंद्र बन सकता है। अब देखना यह है कि सिद्धारमैया इस स्थिति का सामना कैसे करते हैं और क्या वे अपनी राजनीतिक छवि को बचा पाते हैं।

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