\

नाम एक चरित अनेक : कर्मा

भारत वर्ष में कर्मा नाम से आम लोग परिचित हैं और खासकर उत्तर भारतीय भलीभांति जानते हैं क्योंकि भारतीय दर्शन में कर्म की महानता विशेष रूप से रेखांकित है। इस नाम से मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में सुपर हिट तथा भक्त कर्मा बाई नामक फिल्म भी बन चुकी है।

घना राम साहू सह प्राध्यापक, रायपुर
डॉ घना राम साहू सह प्राध्यापक, रायपुर

कर्मा को माता, देवी या वीरांगना के रूप में हिंदी भाषी राज्यों में पूजा जाता है और उनकी विविध कहानियां विभिन्न राज्यों में प्रचलित हैं। इस नाम को भारत के हिंदी भाषी क्षेत्रों में तैलिक वंश की जाति संगठनों द्वारा सर्वाधिक प्रतिष्ठा मिली है और छत्तीसगढ़ राज्य में भक्त माता कर्मा जयंती सर्वाधिक जन भागीदारी वाला पर्व बन गया है। कर्मा जयंती के दिन मध्यप्रदेश के शासकीय कार्यालयों में ऐच्छिक अवकाश और छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक अवकाश स्वीकृत किया गया है। इस दिन छत्तीसगढ़ के जिला मुख्यालयों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में भी साहू संगठनों द्वारा भक्त माता कर्मा जयंती समारोह प्रारंभ होता है जो महीने भर तक चलता है। इन समारोहों में सामूहिक विवाह का आयोजन प्रमुख आकर्षण का केंद्र होता है जिसमें खिचड़ी प्रसादी का वितरण होता है। समारोह मेंं बिना किसी भेदभाव के सभी जाति एवं पंथ के लोग आमंत्रित एवं शामिल होते हैं।

साहू समाज में प्रतिष्ठित भक्त कर्मा माता की जीवनी प्रथम बार बनारस उत्तरप्रदेश से प्रकाशित ‘पत्रिका साहू-समाज दर्पण’ में सन 1971 में लिखी गई थी जिसके लेखक श्री हीरालाल ‘रस’ एवं संपादक श्री पन्नालाल गुप्त एडवोकेट थे । इसी कहानी को भिलाई स्टील प्लांट के हिंदी अधिकारी डॉ. मनराखन लाल साहू ने रायपुर के रामसागरपारा स्थित छत्तीसगढ़ साहू संघ के मुख्यालय के समारोह में सन 1974 में संशोधित रूप में प्रस्तुत किया था। वह भारत में प्रथम कर्मा जयंती थी। तब से अभी तक मूल कहानी में अनेक संशोधन/परिमार्जन हो चुके हैं।

प्रचलित कथा के अनुसार भक्त माता कर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के झांसी में 11 वीं सदी के पूर्वार्ध में चैत्र मास कृष्ण पक्ष एकादशी के दिन संवत 1073 तदनुसार ईसवी सन 1016 दिनांक 12 अप्रैल को हुआ था। इस तिथि का सनातनियों में विशेष महत्व है क्योंकि इसे पापमोचनी एकादशी कहा जाता है। कर्मा के पिता राम साह तेल के प्रसिद्ध उद्योगपति थे। वयस्क होने पर कर्मा का विवाह नरवर गढ़ जो वर्तमान में मध्यप्रदेश के विदिशा जिला में है, के प्रतिष्ठित तैलिक व्यवसायी परिवार में हुआ था। तब नरवर गढ़ के राजा कछवाहा वंश के थे। उन दिनों राजा का प्रिय हाथी बीमार था। वैद्यों ने हाथी के उपचार के लिए तेल स्नान को आवश्यक बताया। नरवर गढ़ से नगर के तालाब को हाथी स्नान के लिए तेल से भरने का राजाज्ञा जारी हो गई। सभी उद्यमियों को आदेशित किया गया। तैलिक उद्यमियों ने तालाब को तेल से भरने का प्रयास किया लेकिन विशालता के कारण संभव नहीं था। कर्मा के पति चतुर्भुज साह उर्फ देवतादिन तैलिक श्रेष्ठि थे इसलिए जिम्मेदारी उन पर थी। मान्यता के अनुसार कर्मा में बचपन से श्री कृष्ण भक्ति और चमत्कारिक शक्तियां थी इसलिए उन्हें अवसर मिला और तालाब तेल से भर दिया गया। इस घटना से तैलिक व्यापारी आर्थिक रूप से बर्बाद हो चुके थे और ऐसे आतताई राजा के राज्य में नहीं रहना चाहते थे इसलिए वे कर्मा के पति के नेतृत्व में नरवर त्यागकर राजस्थान के नागौर की ओर पलायन कर गए।

कुछ काल के उपरांत कर्मा के द्वितीय पुत्र के जन्म के पूर्व उसके पति का देहांत हो गया। वे पति के साथ सती होने पर विचार करती हैं। परंतु गर्भवती होने के कारण उन्होंने सती होने का विचार त्याग दिया। प्रचलित कथा में विचार परिवर्तन का कारण ईश्वरीय प्रेरणा बताया गया है। कर्मा दोनों पुत्रों का योग्यतापूर्वक पालन करती हैं। बड़े पुत्र का विवाह करा श्रीकृष्ण मिलन के लिए गृह त्याग कर देती हैं।

कर्मा ईश्वर दर्शन के लिए भ्रमण करते हुए ओडिशा के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर पहुंचती हैं। प्राचीन कथा के अनुसार वे नरवर से सीधे पुरी पहुंचती हैं किंतु अब जो कथा प्रचलन में है उसमें उनका राजिम धाम प्रवेश करा लिया गया है। कर्मा से मंदिर के पुजारी सद्व्यवहार नहीं करते। वे समुद्र तट पर कुटिया बना कर निवास करने लगती हैं। वे अपनी कुटिया में खिचड़ी बनाकर श्री कृष्ण का आव्हान करती हैं तब भगवान जगन्नाथ बाल रूप धारण कर खिचड़ी ग्रहण करने नित्य कुटिया में आने लगे। इसकी जानकारी मंदिर के पुजारियों और गंगवंशी गजपति राजा को होने पर कर्मा को यथोचित सम्मान दिया गया और खिचड़ी को प्रथम भोग के रूप में प्रतिष्ठित किया गया।
कर्मा लगभग 4 वर्ष तक पुरी में श्री कृष्ण की भक्ति करते हुए चैत्र शुक्ल पक्ष एकम संवत 1121, तदनुसार 27 मार्च 1064 को निर्वाण प्राप्त करती हैं। कर्मा लगभग 48 वर्ष के जीवन में कृष्ण भक्त के रूप में लोक में प्रतिष्ठित होकर भक्त शिरोमणि कहलाती हैं।

नवापारा-राजिम में भक्त कर्मा बाई
रायपुर जिला के गोबरा-नवापारा में भक्त कर्मा बाई की एक प्राचीन गुड़ी था जिस पर सन 1990 के दशक में भव्य मंदिर बनाया गया है। इस मंदिर का स्वामित्व सईस (घासी/सारथी) समाज के पास है। बताया जाता है कि भक्त कर्मा माता जब नदी मार्ग से चित्रोत्पला श्री संगम राजिम में आई थीं तब इस समाज के बीच उन्होंने कुछ दिन व्यतीत किया था। सईस समाज द्वारा भक्त कर्मा माता के पुण्य स्मरण में भाद्र पद मास शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन 11 दिवसीय कर्मा महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन के लिए राजिम धाम के गरियाबंद मार्ग में कर्मा माता का मंदिर बनाया गया है। सईस समाज द्वारा नवापारा के कर्मा मंदिर से राजिम के मंदिर तक भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है। सईस समाज का दावा है कि वे पीढिय़ों से इस आयोजन को करते आ रहे हैं और उनके पुरखों ने ओडिशा के पुरी धाम में समुद्र तट के निकट स्वर्ग द्वार स्थान में मंदिर बनवाया है।
अन्य राज्यों में कर्मा माता

1. पंढरपुर महाराष्ट्र में कर्मा माता का जन्म 20 जनवरी सन 1614 को हुआ था। सन 1622 में गुरु चन्द्रा स्वामी के नेतृत्व में भक्तों की मंडली पुरी गई और कर्मा अपने गुरु के साथ वहीं रुक गई थीं। सन 1640 में गुरु की मृत्यु के बाद कर्मा गुरु आश्रम का संचालन करने लगीं। वह नित्य खिचड़ी बनाकर भगवान जगन्नाथ को खिलाती थीं, जगन्नाथ खिचड़ी खाने उनके आश्रम में आते थे। उसके आश्रम में भक्तों को भी वही खिचड़ी खिलाया जाता था। माता कर्मा का देहावसान 30 नवंबर 1702 को हुआ था। प्रचलित कथा अनुसार कर्मा का विवाह बाल्यकाल में अलवर जिला के लिखमा राम से हुआ था जिसका गोत्र साहू या साऊ था।

2. मेवाड़ के राजा समर सिंह की दूसरी पत्नी का नाम कर्म देवी था। राजा की मृत्यु उपरांत रानी सत्ता का संचालन कर रही थी तभी अफगान सेना का आक्रमण हुआ। रानी कर्म देवी वीरतापूर्वक युद्ध कर अफगान सेना को पराजित कर देती हैं इस प्रकार वे वीरांगना कर्म देवी के नाम से प्रसिद्ध हुईं।

3. राजपूताना के मोहिल राजपूत सरदार माणिक राव की बेटी का नाम कर्म देवी था। कर्म देवी की मंगनी बाल्यकाल में राठौर राजा चंड के पुत्र आरण्यक देव से हुआ था। वयस्क होने पर कर्म देवी भट्टीराजा रंगण देव के पुत्र साधु सिंह से विवाह कर लेती हैं जिससे राठौर राजा नाराज होकर आक्रमण कर देता है। युद्ध में साधु सिंह की मृत्यु होती है और कर्म देवी अपने पति की चिता के साथ सती हो जाती हैं।

4. राजपूताना में ही कर्म देवी नामक राजमाता थीं। मेवाड़ में मुगलों के आक्रमण के समय वह अपने तरुण पुत्र को मेवाड़ की रक्षा के लिए भेजती है जहां उसका पुत्र वीरगति को प्राप्त हो जाता है।

5 संत नाभा जी के भक्तमाल में भक्त कर्मा बाई का वर्णन है। इसके अनुसार पुरुषोत्तम पुरी में श्रीकृष्ण भक्त कर्मा बाई थी जो बिना स्नान-ध्यान किए नित्य प्रात: खिचड़ी बनाकर भगवान का आव्हान करती थी। भगवान कृष्ण खिचड़ी खाने आते थे। एक साधु को यह विधि उचित नहीं लगी और उसने कर्मा को स्नान उपरांत खिचड़ी पकाने की सलाह दी। कर्मा दूसरे दिन स्नान उपरांत खिचड़ी बनाती है जिससे विलंब हो गया। श्री कृष्ण निर्धारित समय पर खिचड़ी खाने आ जाते हैं लेकिन उन्हें प्रतीक्षा करनी पड़ती है। जब वे खिचड़ी खाने लगे तभी मंदिर में पुजारी द्वारा भोग ग्रहण करने आव्हान किया जाता और कृष्ण बिना मुंह धोए ही मंदिर पहुंच जाते हैं। पुजारी कृष्ण के मुंह में खिचड़ी लगा देख अचंभित होकर भगवान से पूछते हैं तब भगवान उसे अपने भक्त कर्मा बाई की जानकारी देते हैं। स्नान करने उपरांत खिचड़ी बनाने की सलाह देने वाले साधु को घटना की जानकारी होने पर उसे पछतावा होता है और वह कर्मा की पूर्ववत खिचड़ी बनाने कहता है। कर्मा पूर्ववत बिना स्नान किए खिचड़ी बनाकर भगवान को खिलाती है और उसे सद्गति प्राप्त होती है।

6. छत्तीसगढ़ और सीमांत राज्यों के वनांचलों में कर्मा उत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमें ग्रामीण करम सेनी वृक्ष की डाली को गांव के चौराहे पर स्थापित कर पूरी रात गीत, संगीत और नृत्य का आयोजन करते हैं।
समाहार

सनातन परम्परा में कर्मा नामक अनेक दिव्य, वीरांगना एवं भगवद भक्त नारियां हुई हैं जो अपने अद्भुत चरित्र से नायिका के रूप में स्थापित हुईं। इनमें से कुछ ने भक्ति के माध्यम से परंपरागत रूढिय़ों को तोड़कर सामाजिक समरसता का संदेश दिया है तथा कुछ वीरांगनाओं ने सामंतों से समाज की रक्षा के लिए हथियार उठाने में अग्रणी भूमिका में रही हैं तो कुछ ने सती व्रता होने को प्रमाणित किया है। इन सभी नारियों ने समाज के विभिन्न घटकों को संगठित होकर राष्ट्रीय दायित्वों के प्रति नागरिक निष्ठा का संदेश दिया है। आगामी 25 मार्च को भक्त माता कर्मा की जयंती है, सभी कर्मा भक्तों को शुभकामनाएं।

One thought on “नाम एक चरित अनेक : कर्मा

  • March 25, 2025 at 12:06
    Permalink

    सुंदर संकलन है लोक कथाओं का इस अवसर पर सर को बहुत-बहुत धन्यवाद

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *