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ईरान-इजराइल संघर्ष: भारत के लिए बढ़ती चिंता, तेल से लेकर डिजिटल नेटवर्क तक असर

पश्चिम एशिया में ईरान और इजराइल के बीच गहराता तनाव अब महज एक क्षेत्रीय संकट नहीं रहा, बल्कि इसका असर वैश्विक हो चला है — और भारत इसके आर्थिक, रणनीतिक और डिजिटल ढांचे पर सीधा प्रभाव महसूस कर रहा है।

ऊर्जा संकट और व्यापार पर गहराया खतरा

भारत अपनी कच्चे तेल की ज़रूरतों का 80% से अधिक आयात करता है, जिसमें अधिकांश आपूर्ति फारस की खाड़ी से होती है। इस क्षेत्र में बढ़ते तनाव, खासकर स्ट्रेट ऑफ होरमुज के आसपास, तेल आपूर्ति में बाधा डाल सकते हैं। इससे न केवल वैश्विक कच्चे तेल के दामों में तेजी आएगी, बल्कि भारत का आयात बिल भी भारी हो जाएगा।

2019 के टैंकर संकट के दौरान भी भारत ने ऐसे झटकों का अनुभव किया था — बीमा प्रीमियम में 20% तक की बढ़ोतरी हुई और तेल की कीमतें 5% तक बढ़ गई थीं। अब एक बार फिर वैसी ही स्थिति बनने की आशंका है।

बासमती चावल और अन्य व्यापारिक चुनौतियां

ईरान भारतीय बासमती चावल का सबसे बड़ा खरीदार है। 2024-25 में भारत ने ईरान को लगभग 8.55 लाख मीट्रिक टन बासमती चावल निर्यात किया, जिसकी कीमत ₹6,374 करोड़ से अधिक रही। लेकिन मौजूदा तनाव और भुगतान में देरी ने पंजाब और हरियाणा के निर्यातकों की चिंता बढ़ा दी है। ईरान की सरकारी एजेंसियां भुगतान में 180 दिन तक का समय ले रही हैं, जिससे भारतीय व्यापारियों को नुकसान हो रहा है।

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शेयर बाजार में गिरावट, रुपया कमजोर

हालिया हमलों के बाद, भारतीय शेयर बाजारों में भी बड़ी गिरावट देखी गई। 13 जून को सेंसेक्स 1,300 अंकों से गिर गया, वहीं निफ्टी 24,500 से नीचे फिसल गया। तेल कंपनियों के शेयरों में भी गिरावट आई। ब्रेंट क्रूड की कीमतें 9% तक चढ़ गईं। इससे आरबीआई को रुपये के मूल्य और मुद्रास्फीति पर दोबारा विचार करने की नौबत आ सकती है।

चाबहार पोर्ट की अनिश्चितता बढ़ी

भारत ने ईरान के चाबहार पोर्ट में $85 मिलियन से अधिक का निवेश किया है, जो अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की पहुंच के लिए अहम है। लेकिन बढ़ते सैन्य तनाव और सुरक्षा खतरों के चलते इस रणनीतिक परियोजना के भविष्य पर सवाल खड़े हो गए हैं। अगर ईरान पर नए प्रतिबंध लगे या पोर्ट असुरक्षित हुआ, तो भारत की ‘एक्ट वेस्ट’ नीति को बड़ा झटका लग सकता है।

डिजिटल नेटवर्क भी खतरे में

भारत का डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर भी खतरे में है। लगभग 95% वैश्विक इंटरनेट ट्रैफिक समुद्र के नीचे बिछी केबल्स के माध्यम से संचालित होता है। इनमें कई केबलें ऐसे क्षेत्रों से होकर गुजरती हैं जो इस समय संघर्ष की चपेट में हैं, जैसे रेड सी, स्ट्रेट ऑफ होरमुज और फारस की खाड़ी।

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2024 की शुरुआत में तीन बड़ी केबलें — AAE-1, EIG और Seacom — क्षतिग्रस्त हुई थीं, जिससे भारत सहित कई देशों में इंटरनेट स्पीड और नेटवर्क स्थिरता प्रभावित हुई थी। अगर ऐसी घटनाएं बढ़ती हैं, तो भारत के आईटी सेक्टर, बैंकिंग और रक्षा संचार को बड़ा नुकसान हो सकता है।

भारत की रणनीति क्या होनी चाहिए?

  • ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण: भारत को खाड़ी देशों पर निर्भरता कम करने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा आपूर्तिकर्ताओं की तलाश तेज करनी होगी।

  • डिजिटल सुरक्षा में निवेश: समुद्री केबल्स की निगरानी और सुरक्षा के लिए नौसेना व साइबर एजेंसियों को सतर्क रहना होगा।

  • डिप्लोमेसी में संतुलन: इजराइल और ईरान दोनों से भारत के रिश्ते हैं। ऐसे में एक संतुलित कूटनीति अपनाना जरूरी है, जिससे दोनों देशों से संपर्क बना रहे और भारत की रणनीतिक स्वायत्तता भी बनी रहे।

निष्कर्ष: यह अब केवल पश्चिम एशिया की लड़ाई नहीं

ईरान-इजराइल संघर्ष अब सिर्फ एक सीमित संघर्ष नहीं रह गया है। इसका असर भारत की ऊर्जा सुरक्षा, कृषि व्यापार, डिजिटल ढांचा और वैश्विक व्यापारिक कनेक्टिविटी पर पड़ रहा है। भारत के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह दीर्घकालिक रणनीति बनाते हुए इन खतरों से निपटे, ताकि न केवल उसकी अर्थव्यवस्था सुरक्षित रहे, बल्कि उसका वैश्विक प्रभाव भी बरकरार रहे।

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