जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग कर खाद्यान्न का अधिक उत्पादन किया जाना आवश्यक – डॉ. एस.के. पाटील
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, बायोटेक कन्सोर्टियम इण्डिया लिमिटेड नई दिल्ली तथा राज्य सरकार के कृषि एवं जैवप्रौद्योगिकी विभाग द्वारा आज यहां राज्य स्तरीय जैव सुरक्षा क्षमता निर्माण कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कृषि महाविद्यालय रायपुर के सभागार में छत्तीसगढ़ बायोटेक प्रमोशन सोसायटी के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि राज्य शासन के अपर मुख्य सचिव कृषि एवं कृषि उत्पादन आयुक्त श्री सुनील कुमार कुजूर ने कहा कि विश्व की बढ़ती आबादी की खाद्यान्न जरूरतों को पूरा करने के लिए फसलों के उत्पादन में बढ़ोतरी काफी आवश्यक है और इसमें जैनेटिक इंजीनियरिंग की महत्वपूर्ण भूमिका है।
उन्होंने कहा कि जैनेटिक मॉडिफाइड फसलों के उत्पादन एवं उपयोग को जैव सुरक्षा मापदंडों एवं प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित कर पूर्णतः सुरक्षित बनाया जा सकता है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि जैव सुरक्षा प्रावधानों को सुनिश्चित करने में यह कार्यशाला उपयोगी साबित होगी। कार्यक्रम की अध्यक्षता इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस.के. पाटील ने की।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस.के. पाटील ने कहा कि जिस हिसाब से हमारे देश की आबादी बढ़ रही है उसकी भोजन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अगले 20 से 25 वर्षाें तक खाद्यान्न उत्पादन में लगभग पांच प्रतिशत की दर से वृद्धि करनी होगी।
खेती के घटते रकबे, सिंचाई हेतु जल की उपलब्धता में कमी और मौसम की प्रतिकूलता को देखते हुए यह कार्य काफी कठिन है अतः जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग कर अधिक उत्पादन देने में सक्षम जेनेटिकली मॉडिफाईड फसलों को विकास करना हमारे लिए अनिवार्य हो गया है।
उन्होंने कहा कि अक्सर जेनेटिकली मॉडिफाईड फसलों के उत्पादन एवं उपयोग से मानव, पशु तथा पर्यावरण के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की बातें कही जाती हैं किन्तु इस संबंध में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जैव सुरक्षा के कड़े मापदंड एवं प्रोटोकॉल तय हैं जिनका पालन कर इन फसलों के उत्पादन एवं उपयोग को निरापद बनाया जा सकता है।
डॉ. पाटील ने कहा कि छत्तीसगढ़ जैव विविधता के मामले में काफी समृद्ध है। इस जैव विविधता का समुचित उपयोग कर परंपरागत फसलों के वांछित गुणों को नई किस्मों में शामिल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा रेडिएशन थैरेपी के माध्यम से यहां कि प्रसिद्ध धान की किस्म दुबराज की ऊंचाई कम करने में सफलता हासिल की गई है।
छत्तीसगढ़ शासन के कृषि सचिव श्री अनूप श्रीवास्तव ने कहा कि यदि किसी तकनीक या प्रौद्योगिकी का लाभ किसानों को नहीं मिले तो उस तकनीक या
प्रौद्योगिकी की कोई उपयोगिता नहीं है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ शासन द्वारा किसानों की बेहतरी के लिए बायोटेक पॉलिसी बनाई गई है तथा इसमें जैव सुरक्षा संबंधी कड़े प्रावधान रखे गये हैं।
समारोह के विशिष्ट अतिथि बायोवर्सिटी इंटरनेशनल नई दिल्ली के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. आर.आर. हंचीनाल ने जैव सुरक्षा मानकों, प्रोटोकॉल तथा प्रक्रियाओं की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जेनेटिक मॉडिफाईड फसलें विषाक्तता, एलर्जी तथा पोषकता संबंधी कारणों से जीवों एवं पर्यावरण की सेहत के लिए नुकसानदेह भी हो सकती हैं इसलिए इनके उत्पादन में जैव सुरक्षा मानकों एवं प्रोटोकॉल का उपयोग सुनिश्चित किया जाना बहुत जरूरी है।
बायोटेक कंसोर्टियम इण्डिया लिमिटेड नई दिल्ली की मुख्य महाप्रबंधक विभा आहूजा ने कार्यशाला की रूप-रेखा पर प्रकाश डाला। छत्तीसगढ़ बायोटेक प्रमोशन सोसायटी की मुख्यकार्यपालन अधिकारी डॉ. गिरीष चंदेल ने विषय प्रतिपादन किया।
कार्यशाला में आए विषय विशेषज्ञों ने तकनीकी पहलुओं पर विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के संचालक अनुसंधान सेवाएं डॉ. एस.एस. राव, निदेशक विस्तार डॉ. ए.एल. राठौर, कृषि महाविद्यालय रायपुर के अधिष्ठाता डॉ. ओ.पी. कश्यप सहित अनेक कृषि वैज्ञानिक उपस्थित थे। कार्यशाला में स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि तथा बड़ी संख्या में प्रगतिशील कृषक शामिल हुए।