सहिष्णुता और राजनीति के द्वंद्व में फंसा हिन्दू समाज
भारत की राजनीति भी बड़ी अजीब है, जहां अल्पसंख्यकों की सहानभूति बटोरने बहुसंख्यकों की अस्मिता को ठेस पहुंचाई जाती रही। इसलिए की हिन्दू सहिष्णु है या उनका जमीर मानवता के साथ चलता है। भगवा आतंकवाद के बाद अब हिन्दू से उसके हिन्दुत्व को अलग करके नई परिभाषा राजनीति में गढ़ी जा रही है।
एक के बाद एक लगातार हिन्दुओं को राजनीतिक दाँव-पेंच में कसा जा रहा है। उनके अधिकारों को खत्म करते कानून बनाए गये। अंग्रेजों ने तो ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति पर चलकर हिन्दुओं पर जैसा कहर बरपाया उसकी मिसाल नहीं दी जा सकती। अंग्रेजों ने हिन्दू शब्द को आयातित बतलाकर हमारे इतिहास में उतार दिया। अंग्रेज विधर्मी थे उन्होंने अपनी सत्ता की जड़ें जमाने के लिए जो किया वह कम था। आजादी के बाद भी हमारे इतिहास की किताबों में हिन्दू ज्यों का त्यों रह गया। आर्य विदेशी है आक्रांता है, जो भारत में अपनी जड़े जमाए बैठे है। आर्य और उनके वेद गड़रियों की कहानियाँ हैं। देश का बहुसंख्यक समाज अपने आप को आक्रांता कहने के लिए अभिशप्त हुआ और क्षुद्र राजनीतिक तुष्टीकरण नीति के तहत पिसता चला जा रहा है।
भारत हिन्दुओं का देश है। सनातन धर्मियों का गणतंत्र है। अंग्रेजों की दासता से भारत आजाद हुआ तो कहाँ… । हिन्दुओं के ऊपर आक्रांता होने का जो ठप्पा जो अंग्रेजों ने लगाया था। जनता की चुनी हुई सरकार ने उ उस पर अपनी मुहर लगा दी। उसी दंश को झेलते हुए हिन्दू और उनकी संतानें विवश हैं। हम स्वयं अपने आपको आक्रांता होने की बात दोहराते हैं। वास्तव में यह भारत की कुटिल राजनीति का शर्मसार पहलू है। आजादी के साथ हिन्दू अपने ही देश में हिन्दू बने रहने के लिए तीन टुकड़े में बंट गया। पाकिस्तान बन गया, बांग्लादेश बन गया। हिन्दुओं के लिए बने भारत में हिन्दू फिर भी उपेक्षित रह गया। आज भारत का हिन्दू अपने को आक्रांता कहता राजनैतिक गलियारों में खो सा गया है।
हिन्दुस्तान, भारतवर्ष, भारत के अनेक नाम हैं जिसे दुनियाँ कभी ‘सोने की चिड़िया’ कहती थी। हिन्दू और हिन्दूस्तान विदेशियों द्वारा दिया संबोधन है। आदिकाल में विदेशी भारत के उत्तर पश्चिम में बहने वाली सिन्धु नदी के नाम से जानते थे जिसे ईरानियों ने ‘हिन्दू और यूनानियों ने शब्दों का लोप करके ‘इण्डस’ कहा। हमें बतलाया गया कि सिन्धु पार वालों को हिन्दू कहा गया क्योंकि वे ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ करते थे। हमारे इतिहासकारों ने यही सिध्द किया। परन्तु इतिहासकारों ने वेदों का उल्लेख नहीं किया।
विश्व की प्राचीनतम सभ्यता का केन्द्र भारत रहा है। वेद में इसके साक्ष्य मौजूद हैं। हड़प्पा सभ्यता हमारी वैदिक सभ्यता का विस्तार है। अफगान, बलूचिस्तान के पूर्वी भाग तक आर्य सभ्यता विद्यमान थी, ऋग्वेद. 8.2.41 में विवहिन्दू नाम के बहुत ही पराक्रमी, दानी राजा का उल्लेख है जिन्होंने 46000 गौमाता दान में दी थी। अथर्ववेद के 11-5-9 तथा 4-11-6. के अनुसार देव जाति हिमालय क्षेत्र में निवास करती थी। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार देवता भी आम मानव के ही समान थे। हिमालय क्षेत्र विश्व में सबसे ऊँचा माना गया है। कैलास पर्वत की आकृति पिरामिड नुमा है जो प्राकृतिक नहीं है। इस पर्वत पर, आजतक कोई नहीं जा सका है। आज पूरी दुनिया में सनातन धर्मियों के प्राचीनतम मंदिर खुदाई में सामने आ रहें हैं।
प्राचीन काल में हिमालय में देवगण रहते थे । मुण्डको उपनिषद के अनुसार सूक्ष्म शरीर धारी आत्माओं का एक संघ है इसका केन्द्र हिमालय की वादियों में स्थित है। इसे देवात्म हिमालय कहा जाता है। पुराणों के अनुसार प्राचीन काल में विवस्ता नदी के किनारे मानव की उत्पत्ति हुई। हिमालय की गुफाओं में आज भी कई योगी है जो हजारों साल से तपस्या में लीन हैं। नाथ संप्रदाय, दसनामी अखाड़े और सिद्धयोगियों की पोथियों में आज भी यह है कि हिमालय में कौन सा मठ कहाँ है और किन-किन गुफाओं में कौन तपस्वी विराजमान है।
हिमालय के विस्तार में भारत का जम्मू कश्मीर, सियाचीन, उत्तराखंड, हिमालय, सिक्किम, असम और अरुणाचल आते हैं। इसके साथ उत्तरी पाकिस्तान, उत्तरी अफगानिस्तान, तिब्बत, नेपाल और भूटान हिमालय के ही हिस्से हैं। यह भूभाग अखंड भारत के हिस्सा था।अब यह सत्य विश्व के सामने उभरकर सामने आने लगा है।
हिन्दुत्व भारतीयों की जीवन शैली है हिन्दुत्व को सिर्फ धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता। विनायक दामोदर सावरकर ने 1973 में हिन्दुत्व का विचार देते हुए कहा था, “वह हिन्दू है जो भारत को अपनी मातृभूमि, पितृभूमि और पुण्यभूमि मानते हो।” 1930 के दशक में हिन्दुत्व राजनैतिक सुर्खियों में आया। जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में हुई। संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार का मानना है कि संगठन का प्राथमिक काम हिन्दुओं को एक धागे में पिरोकर एक ताकतवर समूह के तौर पर विकसित करना है।” धीरे-धीरे संगठन मजबूत होता चला गया और आज आरएसएस दुनिया का एक विशाल संगठन बन चुका है।
पुणे में भाषण देते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने हिन्दुत्व के बारे में कहा था, “मैं हिन्दू हूँ ये मैं कैसे भूल सकता है? किसी को भूलना भी नहीं’ चाहिए। मेरा हिन्दुत्व सीमित नहीं है। संकुचित नहीं है मेरा हिन्दुत्व, हरिजन के लिए मंदिर के दरवाजे बंद नहीं कर सकता है। मेरा हिन्दुत्व अंतरजातीय, अंतरप्रातीय और अन्तरराष्ट्रीय विवाहों का विरोध नहीं करता है। हिन्दुत्व सचमुच बहुत विशाल है।”
हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति है। ऐसा ही कथन 11 दिसंबर 1995 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे.एस. वर्मा की पीठ ने कहा कि हिन्दुत्व को सिर्फ धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता।” हिन्दुत्व को चुनावी अभियान में इस्तेमाल करना कानूनी उल्लंघन है? इ सके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हिन्दू या हिन्दुत्व शब्द को किसी एक धर्म विशेष से जोड़कर समझना गलतफहमी है। यह शब्द भारत के लोगों की प्रकृति और संस्कृति से जुड़े व्यवहारों के संदर्भ में समझा जाना चाहिए।… अगर इस शब्द को सांप्रदायिकता भड़काने के लिए गलत अर्थो में इस्तेमाल किया जाता है तो भी इस शब्द का वास्तविक अर्थ बदल नहीं जाएगा।”(रमेश यशवंत प्रभु केस में 1996)
हिन्दुत्व भारतीयों की जीवन शैली का हिस्सा है और इसे हिन्दू धर्म और आस्था तक सीमित नहीं रखा जा सकता। हिन्दुत्व को संपूर्ण रूप से साकार करते हुए डा.एम. इस्माइल फारूखी बनाम भारत संघ 1994 के मामले में न्यायाधीश एस.पी.भरूचा और न्यायमूर्ति ए. एम. अहमदी ने 1994 में कहा था, “हिन्दू धर्म एक सहिष्णु विश्वास है, यही सहिष्णुता है जितने घरती पर इस्लाम, ईसाई धर्म पारसी धर्म, यहूदी धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म को प्रश्रय और समर्थन प्राप्त करने का अवसर दिया।..
हिन्दुत्व को जीवन शैली या सोचने के तरीके के रूप में लिया जाता है और इसे धार्मिक हिन्दू कट्टरवाद के समकक्ष नहीं रखा जायेगा और न ही समझा जाएगा। सचमुच में हिन्दुत्व वे ऑफ लाइफ है याने जीवन शैली है। वसुधैव कुटुम्बम का उदधोष करते हिन्दू समूचे विश्व को अपनी ही परिवार मानते हैं। इक्कीसवीं सदी की दुनिया इसकी कायल भी होती जा रही है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक हैं।
आधुनिकता और धर्म निरपेक्षता से भ्रमित होकर सचेत रूप मे हिंदू की उपेक्षा की गयी। गाँधी जी नेता जी और सरदार पटेल धर्म में आस्था रखने वाले। बाकी बड़े मे मार्क्स की आत्मा घुस गयी थी।
हिन्दुओं की सहिष्णुता को उनकी कमजोरी माना गया है. रविन्द्र गिन्नोरे को ऐसे विचारोत्तेजक आलेख के लिए अनेकों साधुवाद.