मुख्यमंत्री निवास में हरेली पर सांस्कृतिक नृत्य से लेकर ठेठरी-चौसेला तक हर रंग में महकी लोकसंस्कृति
रायपुर, 24 जुलाई 2025/ श्रावण अमावस्या पर छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक आत्मा को समर्पित कृषि पर्व हरेली तिहार मुख्यमंत्री निवास में पारंपरिक उल्लास, जीवंत लोककला और छत्तीसगढ़ी स्वाद के साथ भव्य रूप में मनाया गया। मुख्यमंत्री निवास परिसर को इस अवसर पर पारंपरिक सजावट, सांस्कृतिक प्रस्तुतियों और लोकजीवन से जुड़ी प्रदर्शनी से सजा दिया गया, जिसने आगंतुकों को छत्तीसगढ़ की मिट्टी की सुगंध से सराबोर कर दिया।
पारंपरिक सजावट में रचा-बसा मुख्यमंत्री निवास
मुख्यमंत्री निवास की साज-सज्जा तीन मुख्य हिस्सों—प्रवेश द्वार, तोरण द्वार और मुख्य मंडप—में विभाजित रही।
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प्रवेश द्वार को बस्तर की मेटल आर्ट से सजाया गया, जिसमें भगवान गणेश की आकृति, तुरही और पारंपरिक मेटल घोड़े की प्रतिकृति शामिल थी।
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तोरण द्वार पर पारंपरिक टोकनी, रंग-बिरंगी झंडियाँ, नीम-आम की झालर और रंगीन गेड़ियाँ आकर्षण का केंद्र रहीं।
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मुख्य मंडप द्वार को सरगुजा की लोककला और रजवार चित्रकला से सजाया गया था, वहीं मंडप के बाईं ओर एक पारंपरिक ग्रामीण घर का दृश्य प्रस्तुत किया गया, जिसमें तुलसी चौरा, गौशाला, कृषि उपकरण और चित्रित दीवारें संस्कृति की झलक दे रही थीं।
कृषि यंत्रों की प्रदर्शनी बनी आकर्षण
कार्यक्रम मंडप में पारंपरिक और आधुनिक कृषि यंत्रों की संयुक्त प्रदर्शनी ने लोगों का ध्यान खींचा। इसमें जुड़ा, बियासी हल, तेंदुआ हल, पैडी सीडर से लेकर आधुनिक ट्रैक्टर तक प्रदर्शित किए गए। यह प्रदर्शन राज्य की कृषि परंपरा और तकनीकी प्रगति की समरसता का परिचायक रहा।
संस्कृति के रंग में रंगे नृत्य और संगीत
हरेली पर्व के मौके पर छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोकनृत्य गेड़ी नृत्य और राउत नाचा की रंगारंग प्रस्तुतियाँ हुईं।
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गेड़ी नृत्य के लिए बिलासपुर से आए दल ने परसन वस्त्र, मयूरपंख मुकुट, कौड़ी जड़ित जैकेट पहनकर माँदर, खँजरी और बाँसुरी की धुन पर आकर्षक नृत्य किया।
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राउत नाचा के लिए गड़बेड़ा (पिथौरा) से आए 50 सदस्यीय दल ने पारंपरिक वेशभूषा में जोरदार प्रस्तुति दी। उनके घुँघरुओं की छनक और कलगीदार पगड़ियाँ पूरे परिसर को लोक-संगीत की धुनों से भरती रहीं।
छत्तीसगढ़ी स्वाद ने मोहा मन
पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की सुगंध और स्वाद ने उपस्थित अतिथियों का दिल जीत लिया। ठेठरी, खुरमी, पिड़िया, खाजा, करी लड्डू, गुलगुला, चीला, फरा, चौसेला और भजिया जैसे दर्जनों व्यंजन बाँस की पिटारी, दोना-पत्तल में परोसे गए।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने स्वयं व्यंजनों का स्वाद लिया और कहा—
“हरेली तिहार केवल खेती-किसानी का पर्व नहीं, बल्कि यह हमारी लोकसंस्कृति, परंपरा और आत्मीयता की अभिव्यक्ति है। इन व्यंजनों में हमारी माताओं-बहनों की मेहनत और स्वाद की परंपरा बसती है, जो हमारी असली पहचान है।”
एक जीवंत सांस्कृतिक अनुभव
मुख्यमंत्री निवास का हर कोना ढोल-मंजीरों की थाप, पारंपरिक वेशभूषा में सजे ग्रामीण कलाकारों और व्यंजनों की महक से भर गया था। कार्यक्रम में भाग लेने आए वरिष्ठ अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, कलाकारों और आमजनों ने इसे “एक अविस्मरणीय सांस्कृतिक अनुभव” बताया।