साहित्य मनीषी आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास अधूरा ही रह जाएगा, अगर उसमें आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का उल्लेख ना हो। आज 19 अगस्त को उनका जन्म दिन है। उन्हें विनम्र नमन। उनका सम्पूर्ण जीवन आधुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास का एक यादगार स्वर्णिम अध्याय है।
वह साहित्य के माध्यम से हिन्दी भाषा को समृद्ध बनाने वाले महान तपस्वी थे। उनकी लेखकीय जीवन यात्रा का उल्लेख किए बिना वर्तमान हिन्दी साहित्य का इतिहास अधूरा रह जाएगा। उत्तरप्रदेश के ग्राम दुबे का छपरा में 19 अगस्त 1909 को जन्मे द्विवेदी जी का निधन 19 मई 1979 को दिल्ली में हुआ।
उन्होंने हिन्दी गद्य, विशेषकर हिन्दी निबन्ध साहित्य को एक नई दिशा दी। आचार्य जी ने कविता, कहानी और उपन्यास विधा में भी अपनी कलम का जादू और जलवा दिखाया।
उनके लिखे बहुचर्चित उपन्यासों में बाणभट्ट की आत्मकथा (1947) और अनामदास का पोथा (1954) निबन्ध संग्रहों में अशोक के फूल (1948), विचार और वितर्क (1954) और आलोक पर्व (1972) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। भारत
सरकार ने उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए वर्ष 1957 में पद्मभूषण अलंकरण से सम्मानित किया था। वर्ष 1966 में पश्चिम बंगाल साहित्य अकादमी ने उन्हें टैगोर पुरस्कार से नवाजा।
आचार्य जी को वर्ष 1973 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें डी. लिट. की मानद उपाधि से सम्मानित किया। भारत सरकार ने वर्ष 1997 में उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार हैं।