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छत्तीसगढ़ की गोदना परंपरा को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग, डॉ. पंचराम सोनी ने सौंपा ज्ञापन

रायपुर, 12 जुलाई 2025। छत्तीसगढ़ की विलुप्तप्राय लोककलाओं में से एक – गोदना परंपरा के संरक्षण और पुनर्जीवन की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की गई है। वरिष्ठ साहित्यकार एवं लोकसंस्कृति के मर्मज्ञ डॉ. पंचराम सोनी ने प्रतिनिधि मंडल के साथ कलेक्टर डॉ. गौरव सिंह को एक ज्ञापन सौंपते हुए अनुरोध किया है कि पारंपरिक गोदना चित्रों को राज्य के स्कूली पाठ्यक्रम में अन्य चित्रकलाओं के समान स्थान दिया जाए।

ज्ञापन में स्पष्ट किया गया है कि यदि गोदना चित्रों को स्कूली बच्चों को कला अभ्यास के रूप में सिखाया जाए, तो यह न केवल बच्चों को इस अद्भुत परंपरा से परिचित कराएगा, बल्कि पारंपरिक गोदना के मूल स्वरूप को एक नवीन पहचान और नवजीवन भी प्राप्त होगा।

गोदना: सांस्कृतिक गौरव और आस्था का प्रतीक

डॉ. सोनी ने बताया कि उन्होंने सन् 2005 में “छत्तीसगढ़ की गोदना संस्कृति” विषय पर शोध कार्य किया था, जिसके लिए भारत सरकार द्वारा उन्हें सीनियर फेलोशिप प्राप्त हुआ। इस शोध से यह तथ्य सामने आया कि छत्तीसगढ़ में गोदना परंपरा देवार, गोंडी, बइगा एवं रामनामी समुदायों में चार भिन्न रूपों में प्रचलित है। ये गोदना चित्र न केवल सजावटी होते हैं, बल्कि जातीय स्वाभिमान, धार्मिक आस्था, प्रतीकात्मक चिन्हों के रूप में इनकी सामाजिक और आध्यात्मिक गहराई भी होती है।

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डॉ. सोनी के अनुसार, जनमानस में गोदना को लेकर यह मान्यता है कि यह स्वर्ग तक साथ जाता है, आत्मिक मिलन कराता है और ईश्वर से समर्पण का प्रमाण होता है। इतना ही नहीं, लोक परंपरा में गोदना को रोगनिवारक औषधि के रूप में भी देखा जाता रहा है।

विलुप्ति की कगार पर पारंपरिक गोदना

बदलते समय और आधुनिकता के प्रभाव में पारंपरिक गोदना कला अपने मूल स्वरूप से विमुख होकर पहचान की समस्या से जूझ रही है। डॉ. सोनी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि गोदना आज श्रुति और स्मृति का विषय बनता जा रहा है, और इसके मौलिक चित्र, प्रतीक और अभिप्राय लुप्त होते जा रहे हैं।

ऐसे में यदि इन्हें शैक्षिक पाठ्यक्रम में स्थान मिलता है, तो गोदना कला को नवीन चित्रकला के रूप में संरक्षित किया जा सकेगा, और बच्चों को भी अपनी स्थानीय सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का अवसर मिलेगा। ज्ञापन की प्रतियां महामहिम राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री को भी भेजी गई हैं, जिससे राज्य स्तर पर निर्णय लेकर इसे नीतिगत रूप दिया जा सके।

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डॉ. सोनी ने अंत में आग्रह किया कि शासन-प्रशासन यदि इस दिशा में समुचित पहल करता है, तो यह कार्य पुनरुत्थान की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होगा। गोदना की परंपरा को पुनर्जीवित कर इसे राष्ट्रीय लोककला की पहचान दिलाना संभव होगा।

डॉ. सोनी के साथ प्रतिनिधि मंडल में  राज्य आंदोलनकारी जागेश्वर प्रसाद, किशोर सोनी (जिला अध्यक्ष – ओबीसी महासभा), सगुन वर्मा, एडवोकेट भंजन जांगड़े, शोभाराम, हरि शंकर, कलाकार चन्द्रशेखर चकोर, यशवंत साहू शामिल थे।