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परंपरा, आस्था और सामाजिक एकता का पर्व : गणेशोत्सव

रेखा पाण्डेय (लिपि)

भारत में पारंपरिक रूप से मनाए जाने वाले सबसे लोकप्रिय उत्सवों में से एक है गणेशोत्सव। यह दस दिनों तक बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है। इसी दिन को महासिद्धि विनायक चतुर्थी कहा जाता है और माना जाता है कि इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। धार्मिक मान्यता है कि गणेश जी स्वयं पृथ्वी पर अवतरित होकर भक्तों के घर-घर में विराजमान होते हैं।

भगवान गणेश का महत्व

हिंदू धर्म में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, विद्या और बुद्धि के संरक्षक, मंगलकारी, सुख-समृद्धि देने वाले और यश-कीर्ति प्रदान करने वाले देवता माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेश पूजन के बिना अधूरी मानी जाती है। स्वास्तिक को भी गणेश जी का ही स्वरूप माना गया है।

गणेश चतुर्थी केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। इस दौरान घर-घर और सार्वजनिक पंडालों में गणेश प्रतिमाएं स्थापित होती हैं। भक्त उन्हें अतिथि की तरह मानकर दस दिनों तक उनकी सेवा, पूजा और भक्ति करते हैं। मोदक, लड्डू और अन्य स्वादिष्ट व्यंजनों का भोग लगाते हैं और प्रतिदिन आरती व मंत्रोच्चार से वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं।

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भगवान गणेश का जन्म कथा

शिवपुराण के अनुसार माता पार्वती ने स्नान से पूर्व अपने शरीर के उबटन और मैल से एक बालक की रचना कर उसे द्वारपाल नियुक्त किया। जब भगवान शिव ने प्रवेश करना चाहा, तो उस बालक ने उन्हें रोक दिया। शिवगणों से युद्ध के बाद स्वयं महादेव ने उस बालक का सिर त्रिशूल से काट दिया।

माता पार्वती के क्रोध से सृष्टि संकट में पड़ गई। तब भगवान शिव ने विष्णुजी को उत्तर दिशा की ओर भेजा और वहां सबसे पहले मिले जीव हाथी का सिर काटकर लाने का आदेश दिया। गज का सिर उस बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित किया गया। माता पार्वती ने हर्ष से उसे हृदय से लगा लिया और उसका नाम विनायक रखा। तभी से वे गजानन और गणपति कहलाए।

गणेशोत्सव का ऐतिहासिक स्वरूप

गणेशोत्सव का सार्वजनिक रूप से आयोजन मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज ने 17वीं शताब्दी में राष्ट्रवादी भावनाओं को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू किया था। 18वीं शताब्दी में पेशवा, जो स्वयं गणेश भक्त थे, ने पुणे को इसका केंद्र बनाया।

ब्रिटिश शासन के दौरान जब 1893 में राजनीतिक सभाओं पर प्रतिबंध लगाया गया, तो स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव को एक सार्वजनिक, विशाल उत्सव के रूप में पुनर्जीवित किया। इससे गणेशोत्सव एक सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीक बन गया, जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को बल दिया।

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अजब गजब गणेश प्रतिमाएं

भारत में गणेशोत्सव अब इको-फ्रेंडली तरीकों से मनाया जा रहा है। उदाहरण के लिए, चॉकलेट से बनी मूर्ति को दूध में विसर्जित कर चॉकलेट मिल्कशेक बनाया जाता है, जो पर्यावरण को बचाते हुए उत्सव को मजेदार बनाता है। इसी तरह, 17,000 नारियलों से बनी मूर्ति हैदराबाद में लोकप्रिय है, जो बायोडिग्रेडेबल और अनोखी है।

कोयंबटूर में 14 टन वजनी गणेश प्रतिमा एशिया की सबसे भारी है, जो 20 फीट ऊँची है और दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालु आकर्षित करती है। खरगोन में 11.5 फीट ऊँची नृत्य मुद्रा वाली मूर्ति दुनिया में अपनी तरह की सबसे बड़ी है, जो एक ही पत्थर से तराशी गई है।

उत्तर भारत में गणेशोत्सव की अपनी अनोखी शैली है। संभल के चंदौसी में 21 दिनों तक चलने वाला गणेशोत्सव मुंबई की तर्ज पर भव्य है, जो उत्तर भारत का सबसे बड़ा आयोजन माना जाता है। यहाँ गणेश चतुर्थी से शुरू होकर रथयात्रा निकाली जाती है, जिसमें भगवान गणेश की मूर्ति शहर में घुमाई जाती है। हर घर में मूर्ति स्थापित होती है, और राजस्थान से 50 से अधिक मूर्तिकार परिवार महीनों पहले आते हैं।

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गणेशोत्सव की तैयारी और उत्सव की धूम

गणेशोत्सव की तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है। कारीगर मिट्टी की छोटी-बड़ी प्रतिमाएं गढ़ते हैं। बाजारों में “गणपति बप्पा मोरया” की गूंज के बीच भक्त प्रतिमाएं घर और पंडालों में स्थापित करते हैं।

अनुष्ठानों के बाद प्राणप्रतिष्ठा की जाती है। फूल, सिंदूर, दूर्वा, नारियल, मोदक, लड्डू और अन्य प्रसाद अर्पित किए जाते हैं। पूजा और आरती का आयोजन सुबह और शाम किया जाता है।

यह पर्व हिंदू परंपरा के अनुसार विषम दिनों तक चलता है, डेढ़ दिन, तीन दिन, पांच दिन, सात दिन, और दस दिन। ग्यारहवें दिन, अनंत चतुर्दशी को गणेश विसर्जन होता है। ढोल-नगाड़ों और नृत्य के साथ विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है। भक्त भाव-विभोर होकर कहते हैं:
“गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ।”

गणेशोत्सव का सार

गणेशोत्सव केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रवादी भावना, सामाजिक सद्भाव और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। महाराष्ट्र से लेकर पूरे भारत में इसे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। भगवान गणेश की यही शिक्षा है कि समाज में एकता और समावेश ही प्रगति का मार्ग है।