कोमा में जा चुके बच्चे कि 130 दिन चिकित्सा कर जान बचाई बालाजी हास्पिटल के डॉक्टरों ने
दुनिया में सबसे बड़ा काम है किसी को जीवन दान देना और रुग्ण व्यक्तियों को सहस्त्राब्दियों से चिकित्सक भैषेजिक चिकित्सा के माध्यम से जीवन दान देते आ रहे हैं। चिकित्सक की दवा के साथ लोगों की दुआएं एवं ईश्वर की विशेष अनुकम्पा भी जीवन रक्षण में काम आती हैं। जब लोग रुग्ण व्यक्ति की जीवन की आशा छोड़ देते हैं एवं उसके बाद चिकित्सकों की मेहनत एवं सेवा सुश्रुशा से वह निरोगी हो जाता है तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।
ऐसा ही एक वाकया बालाजी हॉस्पिटल टिकरापारा, रायपुर में हुआ। डॉ सत्यजीत साहू इसकी जानकारी देते हुए अपनी फ़ेसबुक वाल पर लिखते हैं कि 130 दिन पहले दल्ली राजहरा से ग्यारह साल का किशोर बच्चा रेफेर हो कर आया। उदय नाम के इस बच्चे की हालत बहुत गंभीर थी। वह कोमा में था और उसकी साँसे धीरे-धीरे थम रही थी। उसको जी बी एस नामक खतरनाक इन्फेक्शन हुआ था जो पूरे शरीर के प्रत्येक मांस पेशी को पैरालाइस कर देता है। इस अवस्था में मरीज इन्फेक्शन और स्वसन फेलियर से मर जाता है।
जल्दी से आई सी यू में प्रारंभिक रीससिटेसन के बाद उसको कृत्रिम स्वांस की मशीन में लिया गया। आई सी यू में डॉ संतोष जड़िआ (इनटेंसीव केयर विभाग ) डॉ सत्यजीत साहू , डॉ रूद्र साहू (मेडिसिन विभाग ) डॉ के के भोई ( न्यूरोलॉजिस्ट ) ने विचार करके इलाज का लाइन ऑफ़ ट्रीटमेंट तय किया।
शुरुवात के बीस दिनों में उदय के बचने की संभावना काफी कम हो गयी थी पर क्रिटिकल केयर विभाग ने अपनी ने अपनी कोशिश जारी रखी। लगातार प्रयासों से उदय की स्वांस लगातार चल रही थी। समय बीतता चला गया और सभी सरकारी और पारिवारिक सहायता मिलना धीरे धीरे एक महीने बाद बंद हो गयी। उदय के रिश्तेदार में उसकी माँ और मामा ही साथ में थे। इस कठिन समय में डॉ सत्यजीत साहू ने डॉ संतोष जाड़िया से विमर्श करके निर्णय लिया की अब चूँकि उदय के बचने की हल्की उम्मीद हमको है इसलिए इसका इलाज हॉस्पिटल अपंने खर्चे से करेगा। उदय और उसके मामा इस बात के लिए राजी हो गये।
ढाई माह से अथक प्रयासों के बाद उदय बिना वेंटिलेटर के खुद से स्वांस लेने लगा। पर नयी समस्या ये थी की अब भी उसके ट्रेकिओस्टोमी के मार्ग में काफी सीक्रिसन आ रहा था जिसको बंद होने में एक माह और लग गया। हाथ पैर के मांस पेशियों की हरकत और ताकत अभी थी। कुछ और समय बीत जाने पर जब सुधार दिखा तब ट्रेकिओस्टोमी के मार्ग को बंद किया गया।
आज 130 दिनों के बाद उदय को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर रहें है। हॉस्पिटल के सारे स्टाफ से उदय की खासी जान पहचान हो गयी है। सभी को वह धन्यवाद दे कर घर जा रहा है। अपनी चिकित्सा के माध्यम से बच्चे की जान बचाने वाले सेवाभावी डॉक्टरों को लोग फ़ेसबुक पर अपनी बधाईयां एवं कृतज्ञता प्रेषित कर रहे हैं।