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छत्तीसगढ़ ने खोया अपना विद्वान इतिहासकार और साहित्यकार — डॉ. रामकुमार बेहार नहीं रहे

रायपुर, 22 अक्टूबर 2025। छत्तीसगढ़ प्रदेश ने आज अपने एक वरिष्ठ साहित्यकार, इतिहासकार और शिक्षाविद को सदा के लिए खो दिया। प्रदेश के प्रबुद्ध वर्ग और साहित्यिक बिरादरी में गहरा शोक है। आज सुबह यह दुःखद समाचार मिला कि डॉ. रामकुमार बेहार का रायपुर में निधन हो गया। उन्होंने आज, 22 अक्टूबर की सुबह लगभग चार बजे सुंदर नगर स्थित अपने निवास पर अंतिम सांस ली।

डॉ. बेहार लंबे समय से साहित्य, इतिहास और शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहे। वे छत्तीसगढ़ शोध संस्थान के अध्यक्ष थे और प्रदेश के इतिहास एवं सांस्कृतिक विरासत के गंभीर अध्येता माने जाते थे।

उनकी लगभग 35 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से अधिकांश छत्तीसगढ़ और बस्तर की ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर आधारित हैं।

उनका जन्म 15 नवम्बर 1946 को सारंगढ़ में हुआ था। उन्होंने 1969 में इतिहास में एम.ए. किया और 1970 से 1992 तक जगदलपुर (बस्तर) के महाविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में कार्य किया। “बस्तर के आदिवासी विद्रोह” पर किए गए उनके शोध कार्य के लिए उन्हें 1987 में पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त हुई। बाद में वे शासकीय महाविद्यालय, शंकर नगर रायपुर के प्राचार्य रहे और 2008 में सेवानिवृत्त हुए।

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सेवानिवृत्ति के पश्चात वे स्वतंत्र लेखन में सक्रिय रहे और छत्तीसगढ़ के इतिहास पर महत्वपूर्ण शोध एवं लेखन कार्य करते रहे।

उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं —

  1. बस्तर–आरण्यक (1985)

  2. बस्तर एक अध्ययन (1995)

  3. गुंडाधुर – बस्तर का जननायक (2002)

  4. कांकेर का इतिहास (2005)

  5. आदिवासी आंदोलन और प्रवीरचंद भंजदेव (2010)

  6. छत्तीसगढ़ का इतिहास (2009, राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी)

इसके अतिरिक्त उनकी पुस्तक आदिवासी बस्तर : इतिहास एवं परम्पराएं (1992), जिसे उन्होंने नर्मदा प्रसाद श्रीवास्तव के साथ सह-लेखक के रूप में लिखा, विशेष रूप से चर्चित रही। हाल ही में उनकी पुस्तक बस्तर का इतिहास का दूसरा संस्करण भी प्रकाशित हुआ था।

डॉ. बेहार केवल इतिहासकार ही नहीं, बल्कि कवि, कहानीकार और उपन्यासकार भी थे। उनकी रचनाओं में बस्तर की मिट्टी, जनजीवन और लोकसंस्कृति की गंध मिलती है। उनकी पुस्तक बस्तर : प्रकृति और संस्कृति (2017) में 15 आलेख और 6 कविताएं संकलित हैं।

उनके संपादन में प्रकाशित बस्तर एक अध्ययन (1992) मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा प्रकाशित हुआ था, जो बस्तर पर केन्द्रित शोध-पत्रों का संग्रह है। उन्होंने बस्तर के जननायक पर आधारित खंड-काव्य किस्सा गुंडाधुर का (2009) भी लिखा।

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उनके कहानी संग्रहों में तेरी मेरी उसकी कहानी (2001) और फिर उसी राह पर (2009) उल्लेखनीय हैं।

अपने दीर्घ साहित्यिक जीवन में डॉ. बेहार को अनेक सम्मानों और पुरस्कारों से अलंकृत किया गया। हाल ही में, 14 मई 2025 को उन्हें भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ द्वारा आयोजित समारोह में “आद्य पत्रकार देवर्षि नारद पत्रकारिता सम्मान” से सम्मानित किया गया था।

उनके अन्य प्रमुख पुरस्कारों में शामिल हैं —

  • बिलासा साहित्य सम्मान, बिलासपुर (2002)

  • पं. बलदेव प्रसाद मिश्र राज्य स्तरीय शिक्षा सम्मान (2007)

  • छत्तीसगढ़ अस्मिता पुरस्कार (2011)

  • छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग साहित्यकार सम्मान (2012)

  • छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद इतिहास लेखन सम्मान (2016)

डॉ. रामकुमार बेहार का निधन छत्तीसगढ़ के साहित्य, शिक्षा और इतिहास जगत के लिए अपूरणीय क्षति है।
साहित्यिक जगत ने एक गंभीर चिंतक, संवेदनशील लेखक और शोधशील इतिहासकार को खो दिया है।

विनम्र श्रद्धांजलि। 🕊️

स्वराज्य करुण
(ब्लॉगर एवं पत्रकार )