राम जन्मभूमि से प्राप्त विष्णु हरि शिला फ़लक स्पष्ट रुप से मंदिर का होने प्रमाण है : डॉ के के मुहम्मद

संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व, रायपुर द्वारा दिनांक 11 जून 2018 को “छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धारा : अतीत से आगत” विषय पर व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन किया गया। इस आयोजन में मुख्य वक्ता डॉ के के मुहम्मद (पूर्व क्षेत्रीय निदेशक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण दिल्ली), पद्म श्री अरुण कुमार शर्मा, डॉ एल एस निगम एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री ललित सुरजन (भारतीय सांस्कृतिक निधि, रायपुर अध्याय) थे।

डॉ के के मुहम्मद व्याख्यान देते हुए

व्याख्यान श्रंखला का प्रारंभ श्री राहुल सिंह (डिप्टी डायरेक्टर) के बीज वक्तव्य से हुआ। पश्चात मुख्य वक्ता डॉक्टर के के मुहम्मद में अपने व्याख्यान में कई मुद्दों प्रकाश डाला। जिसमें 1976-77 में उनके द्वारा डॉ बी बी लाल के संरक्षण में राम जन्म स्थान अयोध्या का उत्खनन भी था। उन्होंने अपने व्याख्यान में बताया कि जब वे राम जन्म भूमि का उत्खनन कर रहे थे तो उन्हें सर्व प्रथम 12 स्तंभ प्राप्त हुए, जो मंदिर के स्तंभ थे। मंदिर के स्तंभ इसलिए कि उनमें परम्परागत रुप से कलश बने हुए थे।

उसके पश्चात उत्खनन में टेराकोटा की सैकड़ों प्रतिमाएं प्राप्त हुई। इस्लाम में मूर्ति पूजा वर्जित है, इसलिए ये प्रतिमाएं मस्जिद का अंग नहीं हो सकती। इसके साथ ही वहाँ मंदिर होने के कई प्रमाण मिले, परन्तु जब उत्खनन रिपोर्ट दी गई तो उसमें ये तथ्य छिपा दिए गए और जे एन यु के प्रोफ़ेसर इरफ़ान हबीबी एवं रोमिला थापर आदि ने कह दिया कि वहाँ मंदिर के प्रमाण रुप में उत्खनन में कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है। इस तरह वहाँ राम जन्म भूमि विवाद को जन्म दे दिया गया।

डॉ के के मुहम्मद कहते हैं कि कुछ गलतियाँ हुई हैं, लेकिन सारी भले ही सुधारी नहीं जा सके, परन्तु कुछ तो सुधारी जा सकती हैं। जितना महत्व मुसलमानों के लिए मक्का और मदीना का है, उतना ही महत्व आम हिन्दुओं के लिए राम के जन्म स्थान एवं कृष्ण के जन्म स्थान का है। राम जन्म भूमि से से जब विष्णु हरि शिला फ़लक मिला तो उसमें स्पष्ट लिखा है कि यह मंदिर विष्णु को समर्पित है।

डॉ के के मुहम्मद का स्मृति चिन्ह देकर सम्मान करते हुए पद्म श्री अरुणकुमार शर्मा

उन्होंने साफ़गोई से कहा कि उस वक्त मैं छोटा अधिकारी था, मेरी नहीं सुनी गई और यह स्थापित करने का प्रयास होते रहा कि जन्म भूमि से ऐसा कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है, जो उसे मंदिर के रुप में प्रमाणित कर सके। मैने बाबरी एक्शन कमेंटी के चेयरमेन शहाबुद्धीन को सारे प्रमाणों की फ़ोटो दिखाई और कहा कि यह मंदिर हिन्दुओं का है और उन्हें दे देना चाहिए, परन्तु उसके कमेंटी के सदस्य तैयार नहीं हुए।

इसके साथ डॉ के के मुहम्मद ने नालंदा उत्खनन, बटेसर पुनर्निमाण एवं केसरिया स्तूप के उत्खनन एवं संरक्षण पर पावर पाइंट के माध्यम से उपस्थित जनों तक अपने कार्य को पहुंचाया। डॉ के के मुहम्मद अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उक्त बातें उन्होंने अपनी आत्मकथात्मक पुस्तक में भी लिखी हैं।

इसके पश्चात पद्म श्री अरुण कुमार शर्मा ने छत्तीसगढ़ के मेगालिथिक संस्कृति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में इतने सारे मेगालिथिक मिलते हैं कि इतने भारत में कहीं नहीं हैं। सरगुजा से लेकर बस्तर तक मेगालिथिक कल्चर के प्रमाण मिलते हैं , परन्तु संरक्षण के अभाव में सब नष्ट होते जा रहे हैं।

डॉ के के मुहम्मद के साथ एक अरसे के बाद पुन: सेल्फ़ी

डॉ एल एस निगम ने भी छत्तीसगढ़ के इतिहास का संक्षिप्त सैर कराया। कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री ललित सुरजन ने कहा कि छत्तीसगढ़ में पुरातत्व संरक्षण पर दो तीन संस्थाएं काम कर रही हैं, उन्हें मिलकर काम करना चाहिए तथा इस तरह की व्याख्यान श्रृंखना का आयोजन सतत होते रहना चाहिए।

कार्यक्रम का संचालन एवं आभार प्रदर्शन श्री प्रभात सिंह ने किया। कार्यक्रम में श्री अशोक तिवारी, डॉ मनोज कुर्मी, डॉ शम्भुनाथ यादव, श्री राम पटवा, श्री आशीष ठाकुर, श्री सुमनेश वत्स, विकाश शर्मा, अरुण कुमार, विश्व विद्यालय एवं महाविद्यालयों के शोध छात्र उपस्थित थे।