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जंगल सत्याग्रह की नायिका वीरांगना दयावती

डॉ घनाराम साहू

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में जंगल सत्याग्रह एक मात्र राष्ट्रीय आंदोलन है जिसका विस्तार सन 1922 से 1930 के मध्य वर्तमान छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र के अनेक स्थानों में हुआ था। जंगल सत्याग्रह का जन्म छत्तीसगढ़ के वनांचल सिहावा-नगरी में जनवरी 1922 में हुआ था जिसके नायक जननेता श्याम लाल सोम थे। वे हल्बा जनजाति के गौरव थे। जनवरी 1922 में राष्ट्रव्यापी असहयोग आंदोलन के अनुक्रम में ब्रिटिश सरकार के वन अधिनियम 1862 के विरोध में यह सत्याग्रह प्रारंभ हुआ था जिसमें 32 सत्याग्रहियों को 3 से 6 माह का कारावास तथा सैंकड़ों को आर्थिक एवं शारीरिक दंड दिया गया था।

जंगल सत्याग्रह की पुनरावृति सन 1930 के अगस्त माह में वर्तमान महासमुंद तहसील के वनांचल के दूरस्थ ग्राम तमोरा में हुआ था जिसका नेतृत्व मालगुजार रघुवर सिंह कर रहे थे, वे कंवर जनजाति के थे। इस सत्याग्रह का शीघ्र ही निकट के क्षेत्र कौडिय़ा, खरियार, फिंगेश्वर, रूद्री इत्यादि में हुआ और 200 से अधिक सत्याग्रही बंदी बनाकर रायपुर सेंट्रल जेल में कैद रहे। सन 1931 में गांधी-इर्विन  समझौते के अंतर्गत सत्याग्रहियों को रिहा किया गया।

स्थल परिचय

सत्याग्रह का केंद्र ग्राम तमोरा था जो महासमुंद जिला मुख्यालय से दक्षिण पश्चिम दिशा में लगभग 23 किलोमीटर दूर सघन वन के भीतर है। इस ग्राम को ‘गांधी ग्राम तमोराÓ के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में इस ग्राम की आबादी लगभग 1852 है जिसमें से 55 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजातियों की है। साक्षरता दर लगभग 66 प्रतिशत है। तमोरा ग्राम पंचायत का मुख्यालय भी है।

वीरांगना दयावती का परिवार

वीरांगना दयावती स्व. बनमाली सिंह एवं स्व. गोटनीन की एकलौती संतान थी। उनका जन्म सन 1915 में हुआ था। स्व. बनमाली सिंह के बड़े भाई स्व. रघुवर सिंह इस ग्राम के मालगुजार थे। सन 1930 में घटित जंगल सत्याग्रह के समय दयावती अविवाहित थीं और अपने माता-पिता के साथ रहती थीं।

सन 1931 के बाद दयावती का विवाह धमतरी जिला के कुरूद तहसील के भुसरेंगा ग्राम के थूकेल सिंह दीवान से हुआ था। परंपरा अनुसार थूकेल सिंह दीवान घर जमाई के रूप में अपनी पत्नी के साथ तमोरा ग्राम में रहने लगे। इस दंपति के पांच पुत्र अलेन सिंह दीवान, उत्तम सिंह दीवान, पंचम सिंह दीवान, किसुन सिंह एवं भीखम सिंह दीवान हुए। 11 अगस्त सन 1992 की वीरांगना दयावती कंवर का देहांत हुआ । वर्तमान में दयावती के पति एवं पांचों पुत्रों का देहांत हो चुका है तथा इनकी संतानें इसी ग्राम में निवासरत हैं।

जंगल सत्याग्रह की पृष्ठभूमि

सन 1930 के श्रावण माह में तमोरा ग्राम में आंचलिक परम्परा अनुसार ‘सावनही त्योहार’ मना रहे थे इसलिए कृषि एवं अन्य कार्य बंद था। दोपहर में कुछ मवेशी ग्राम के निकट के आरक्षित वन में घुस गए जिसे वन विभाग के चौकीदार बिसाहू राम ने देख लिया और मवेशियों की जब्त कर लिया। वन चौकीदार मवेशी मालिकों को एकत्र कर दबाव बनाकर यह लिखित वक्तव्य मांगने लगा कि उनके मवेशी प्रतिदिन आरक्षित वन में घास चरते हैं। किसानों ने किसी भी प्रकार का लिखित में वक्तव्य देने से तथा जब्त किए मवेशियों को जुर्माना भरकर छुड़ाने से इंकार कर दिया।

वन विभाग द्वारा महासमुंद के तहसील कोर्ट में किसानों और मालगुजार के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया गया। कोर्ट के आदेश पर जांच हुई जिसमें किसान निर्दोष पाए गए। किसानों के जीत की खबर जिला कांग्रेस कमेटी रायपुर पहुंची और घटना का विवरण एकत्र करने शंकर राव गनोदवाले को जिम्मेदारी दी गई। कांग्रेस कमेटी के सदस्य तमोरा पहुंचकर किसानों से मिले। किसान अपनी जीत से उत्साहित थे इसलिए वे सन 1862 के वन अधिनियम के विरुद्ध सत्याग्रह छेडऩे तत्पर हुए। इस ग्राम के आसपास के ग्रामों के 90 किसानों ने सत्याग्रह के लिए अपना नाम कांग्रेस कमेटी के समक्ष दर्ज कराया।

8 सितंबर से सत्याग्रह प्रारंभ करने की लिखित सूचना रायपुर के कमिश्नर दी गई। शंकर राव गनोदवाले के मार्गदर्शन में अरिमर्दन गिरी को सत्याग्रह का डिक्टेटर नियुक्त किया गया। 8 सितंबर से आरक्षित वन में घास काटकर सत्याग्रह प्रारंभ हुआ। प्रथम दिन पुलिस की तैनाती नहीं हुई थी इसलिए सत्याग्रहियों की गिरफ्तारी नहीं हुई, किन्तु दूसरे दिन तहसीलदार मतंगे और इंस्पेक्टर मिर्जा बेग पुलिस बल के साथ सत्याग्रह रोकने तैनात थे। प्रतिदिन सत्याग्रही आकर वन अधिनियम का उल्लंघन कर सत्याग्रह कर गिरफ्तारी देने लगे। इस सत्याग्रह को देखने आसपास के ग्रामों से भीड़ उमडऩे लगी।

12 सितंबर को तमोरा में धारा 144 लागू कर दिया गया और सभा स्थल को रिक्त करने का आदेश दिया गया। ब्रिटिश प्रशासन के इस आदेश का जनता विरोध करने लगी और दोनों पक्षों के बीच तनाव बढ़ गया। सभा स्थल में लाठी चार्ज होने लगा। तभी दयावती ने लगभग 40 महिलाओं के साथ सभा स्थल में प्रवेश किया। महिलाओं का जत्था पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच खड़ा हो गया। पुलिस बल महिलाओं को हटाने बंदूक के संगीनों से धमकाने लगे। इससे दयावती बिफर गई और एक बंदूकधारी पुलिस वाले के सामने खड़ी होकर गोली चलाने के लिए ललकारने लगी। इंस्पेक्टर मिर्जा बेग बातचीत के लिए सामने आया लेकिन दयावती ने बातचीत से इंकार कर लगातार चुनौती देते रही। अंतत: इंस्पेक्टर बेग को पुलिस बल के साथ पीछे हटना पड़ा।

सत्याग्रहियों ने मौके का फायदा उठाया और आरक्षित वन में पहुंचकर घास काटकर जंगल कानून भंग किया और गिरफ्तारी दी। सत्याग्रह का सिलसिला 24 सितंबर तक जारी रहा। पुलिस सत्याग्रहियों को गिरफ्तार करने के साथ आम जनता पर अत्याचार करती रही। 24 सितंबर को सत्याग्रह समाप्ति की घोषणा हुई तब तक 49 सत्याग्रही गिरफ्तार किए जा चुके थे लेकिन गिरफ्तार सत्याग्रहियों की सूची में दयावती कंवर का नाम शामिल नहीं है। 25 सितंबर को पड़ोस के कौडिय़ा जमींदारी के प्रमुख सत्याग्रही बूढ़ान साय (गोंड़) सहित 11 अन्य सत्याग्रहियों को गिरफ्तार किया गया। इसके 5 दिन बाद 30 सितंबर को खरियार जमींदारी के सलिहागढ़ में सत्याग्रहियों और पुलिस के बीच टकराव हुआ जिसमें मालगुजार अंजोर सिंह (गोंड़) सहित 22 प्रमुख सत्याग्रहियों को गिरफ्तार किया गया। इस क्षेत्र में पुलिस की पिटाई से युवा सत्याग्रही लक्ष्मीनारायण तेली की मृत्यु हुई थी।

पुलिस अत्याचार की कांग्रेस कमेटी द्वारा जांच

छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में महाकोशल कांग्रेस कमेटी द्वारा 4 सदस्यीय जांच दल गठित किया गया। समिति में यति यतन लाल, पंडित भगवती प्रसाद मिश्र और मौलाना अब्दुल रउफ शामिल थे। समिति द्वारा सत्याग्रह के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा आम जनता पर किए गए अत्याचार की जांच कर प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था जिसमें कुछ चौंकाने वाले तथ्य हैं जो इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। ठाकुर साहब द्वारा वीरांगना दयावती का बयान कलमबद्ध किया गया था जो ऐतिहासिक है इसलिए इतिहास के शोधार्थियों के लिए विशेष महत्व का है।

जांच समिति के समक्ष दयावती ने बताया कि घटना के दिन वह अपनी मां और गांव की अन्य महिलाओं के साथ सभा स्थल के लिए निकली। रास्ते में गांधी चौरा को प्रणाम कर सभा स्थल पहुंची। उसने वहां जनता पर पुलिस का लाठी चार्ज को देखा। जनता इधर-उधर भाग रही थी इसलिए वह महिलाओं के साथ दोनों के बीच पहुंच गई। पुलिस वाले बंदूक तानकर संगीन से महिलाओं को हटाने का प्रयास करने लगे। तभी वह एक पुलिस वाले के बंदूक की नाल को पकड़कर अपने छाती से लगाकर दहाड़ कर कहने लगी कि मारना है तो हमको मारो हम मरने के लिए तैयार हैं। इंस्पेक्टर मिर्जा बेग ने उससे बातचीत का प्रस्ताव रखा जिसे उसने यह कह कर इंकार कर दिया कि वह दुश्मनों से कोई बात नहीं करेगी। दयावती के इस कथन के बाद मिर्जा बेग पुलिस बल के साथ पीछे हट गया था जिससे सत्याग्रही तथा जनता पिटाई से बच गई।

इतिहासकारों की कलम से

छत्तीसगढ़ का इतिहास राजनीतिक एवं सांस्कृतिक लेखक डॉ भगवान सिंह वर्मा लिखते हैं ‘सत्याग्रहियों का प्रथम जत्थे का नेतृत्व 18 वर्षीय दयावती नामक युवती ने किया। जिस अधिकारी ने उसे आगे बढऩे से रोका उसको उसने तमाचा मार दिया।

छत्तीसगढ़ का जनजातीय इतिहास लेखक हीरालाल शुक्ल लिखते हैं ‘पुलिस ने लाठी चार्ज किया। लोग बिखर गए किंतु दयावती बाई ने हटने से इंकार कर दिया। उसके साथ सौ से अधिक महिलाएं थी। पुलिस सार्जेंट ने दयावती की ओर बंदूक तान दी। किंतु उसने हटने के बजाय सार्जेंट की बंदूक की नली को अपने सीने से सटा लिया और बोली-चला गोली। हम अपनी जान देने तैयार हैं। सार्जेंट उसकी ललकार सुनकर घबरा गया।

छत्तीसगढ़ का इतिहास के लेखक डॉ आर. के. बेहार लिखते हैं ‘दस हजार की भारी भीड़ एक दिन उपस्थित हो गई। दयावती नामक बालिका ने मार्ग रोक रहे एस. डी. ओ. को तमाचा मार दिया, वातावरण उत्तेजनापूर्ण हो गया।

साहित्यकारों की कलम से

तमोरा सत्याग्रह पर पूर्व सांसद स्व. केयूर भूषण जी का लेख महत्वपूर्ण है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के ‘नारी रत्न पुस्तक में लिखा है ‘ठाकुर रघुवीर सिंह की बहिन दयावती बाई जो उस समय लगभग सोलह सत्रह वर्ष की रही होगी, झंडा लेकर सत्याग्रह के लिए निकली। वह गोंड़ बाला थी। पुलिस वाले उसे रोकना चाहे पर वह रुकी नहीं। तब एस.डी.ओ. श्री मथुरा प्रसाद दुबे जी ने उन्हें रोकना चाहा। दोनों का सवाल जवाब शुरू हो गया। तनातनी बढ़ गई। दुबे जी सत्याग्रहियों को आगे नहीं बढऩे देना चाहते थे। दयावती इससे क्रोधित हो उठी। गुस्से में आकर मजिस्ट्रेट को ही तमाचा मार दिया। ….दुबे जी की सहानुभूति सत्याग्रहियों की ओर थी। उन्होंने उसे सहन कर लिया। उसे तूल नहीं दिया। बल्कि दयावती को साहसी बालिका कहकर शाबाशी देते हुए सत्याग्रह के सफलता की घोषणा कर दी। अंग्रेज लेफ्टिनेंट झल्ला कर रह गया।

 मेरी पड़ताल

वीरांगना दयावती के परिजनों से बातचीत में कुछ अलग ही विवरण मिला था। इसी खोजबीन के दौरान मुझे त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह के जंगल सत्याग्रह पर रिपोर्ट की पांडुलिपि पढऩे को मिली जो 162 पृष्ठों की है। रिपोर्ट के आधार पर घटना स्थल में जाकर वीरांगना दयावती के परिजन सहित 3 अन्य सत्याग्रहियों के परिजनों से भेंट कर जानकारी एकत्र किया गया । जिसमें वीरांगना दयावती के द्वितीय पुत्र स्व. उत्तम सिंह दीवान एवं कुछ स्थानीय जानकारों से मिली जानकारी का सारांश है –

  1. तमोरा में सत्याग्रह के दौरान तहसीलदार मटंगे, इंस्पेक्टर मिर्जा बेग पुलिस बल एवं वन विभाग के कर्मचारी उपस्थित थे। एस.डी.ओ. श्री दुबे एवं अन्य कोई भी अंग्रेज अधिकारी वहां तैनात नहीं थे।
  2. घटना के एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार 4-5 हजार लोग एकत्रित थे और लाठी चार्ज हुआ था लेकिन दयावती ने किसी अधिकारी को थप्पड़ नहीं मारा था।
  3. दयावती के साथ 30-40 महिलाएं रही होंगी क्योंकि तब इस गांव में अधिक से अधिक 100 परिवार रहे होंगे जिनमें अधिकांश खेतिहर श्रमिक होंगे जिनका राजनीतिक आंदोलनों से कम संबंध रहा है ।
  4. सन 1930 में वहां गांधी चौरा बना हुआ था, जिससे प्रमाणित होता है कि ग्राम के लोग महात्मा गांधी से भलीभांति परिचित थे । संभव है कि सन 1922 के सत्याग्रह में भी इस गांव की भागीदारी रही हो इसलिए गांधी जी के स्मरण में चौरा बनाया गया हो ।
  5. वीरांगना दयावती कंवर के स्थान पर एक अन्य महिला दयावती गोंड़ को स्वतंत्रता सेनानी का पेंशन एवं सुविधाएं मिलती थी। दयावती कंवर को पात्रता के लिए कोर्ट मे जाना पड़ा तब पेंशन मिलना प्रारंभ हुआ और कुछ वर्षों में उनकी मृत्यु हो गई।

निष्कर्ष

सन 1930 का जंगल सत्याग्रह छत्तीसगढ़ के लिए अति महत्वपूर्ण घटना हैं क्योंकि यह सत्याग्रह 21 जनवरी 1922 में प्रारंभ होकर 1930 तक छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों के साथ-साथ मध्यप्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र के अनेक स्थानों में फैलकर राष्ट्रीय आंदोलन बन गया था। त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में गठित जांच समिति के रिपोर्ट में सत्याग्रह के अन्य स्थानों के साथ तमोरा की घटना का भी विस्तार से विवरण तथा गवाहों के बयान लिखा गया है इसलिए इस रिपोर्ट में लिखे तथ्यों का प्रति परीक्षण कर वास्तविक इतिहास लिखा जाना चाहिए। नि:संदेह दयावती कंवर ने सशस्त्र पुलिस के सामने वीरता का प्रदर्शन कर वीरांगना शब्द की सार्थकता को प्रमाणित किया था। वीरांगना दयावती कंवर का व्यक्तित्व उस काल की नारियों के लिए गौरवशाली और समग्र समाज के लिए प्रेरणादाई है इसलिए इस स्थान में भव्य स्मारक बनाया जाना चाहिए ।

संदर्भ-

  1. त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह समिति की जांच रिपोर्ट (पांडुलिपि), सन 1931
  2. सत्याग्रह: छत्तीसगढ़ में जल-जंगल का संघर्ष – संकलन/संपादन आशीष सिंह, सन 2022
  3. छत्तीसगढ़ का इतिहास राजनीतिक एवं सांस्कृतिक – डॉ. भगवान सिंह वर्मा, मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी 1995 पृष्ठ 157
  4. छत्तीसगढ़ का जनजातीय इतिहास – हीरालाल शुक्ल, मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी 2007 पृष्ठ 190
  5. छत्तीसगढ़ का इतिहास – डॉ आर. के. बेहार, 2023 पृष्ठ 240
  6. सन 2015-16 में घटना स्थल की यात्रा के दौरान वीरांगना दयावती के पुत्र स्व. उत्तम सिंह दीवान, पड़पोता त्रिलोक साय दीवान, सत्याग्रही स्व. हीरामन साहू के परिजनों एवं अन्य जानकारों से बातचीत ।

 

-घना राम साहू सह प्राध्यापक, शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज रायपुर

-उमेश कुमार दीवान शिक्षक शास. पूर्व माध्यमिक शाला छुरीडबरी जिला महासमुंद

 

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