सुना है कभी ऐसा वाद्य यंत्र जो मनुष्य की बोली में बात करता है
प्राचीन काल से मानव के मनोरंजन का साधन गीत संगीत रहा है, जब मन उत्सव मनाने का हो तो वाद्य यंत्र की ओर मन मचलता है, परन्तु इन वाद्य यंत्रों को साधने में एक उम्र भी कम पड़ जाती है। ऐसा ही एक वाद्य है चिकारा। यह भारतीय घुमक्कड़ों (सन्यासियों) की पहली पसंद भी रहा है।
पहले तो छत्तीसगढ़ अंचल में चिकारा वादक गाँव-गाँव में मिल जाते थे परन्तु नई पीढी में कोई दिखाई नहीं देता। मैने भी लगभग बीस पचीस बरस बाद इसका वादन सुना। सियान कहते थे कि सारंगी जैसा यह वाद्य मनुष्य की बोली में ही बात करता है। अगर सुनेंगे तो आपको भी लगेगा कि यह मनुष्य की बोली में ही बात करता है।
कल छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध चिकारा वादक श्री मानदास टंडन जी से भेंट हुई और चिकारा संगीत सुनने मिला। मन गद गद हो गया। श्री मान दास टंडन जी आज 97 वर्ष के हैं, परन्तु आज उनकी आवाज की खनक एवं चिकारा पर सधी हुई अंगुलियां सुरों को साध रही हैं।
इन्हें 2010 में छत्तीसगढ़ राज्य सरकार का शीर्ष सम्मान दाऊ दुलार सिंह मंदराजी सम्मान प्राप्त हो चुका है। वे बताते हैं कि उन्होंने ब्रिटिश काल में सन् 1940 से पुलिस की नौकरी शुरु कर 1955 में भारत आजाद होने के बाद घरेलू परिस्थितियों के कारण नौकरी छोड़ी और खेती किसानी को अपना लिया। परन्तु चिकारा वादन बचपन से ही कर रहे हैं।
आज इन्हें चिकारा बजाते हुए लगभग 85 बरस हो गए। जब पुलिस में नौकरी करते थे तब भी हर हफ़्ते साहब लोग इनसे चिकारा सुनते थे।
चिकारा, सारंगी जैसा तंतु वाद्य है। इसे सागौन की लकड़ी से बनाया जाता है और इसमें गोह का चमड़ा मढ़ा जाता है। इसमें मुख्य दो तार रहते हैं, जिन्हें घोड़े की पूंछ के बालों से बने हथवा से बजाया जाता है।
यह प्राचीन वाद्य है, हारमोनियम से पहले इस वाद्य से ही लोग अपना मनोरंजन करते थे। शाम को जब किसानी के काम से निवृत होकर थके हारे लोग चौपाल में एकत्रित होते तो भजन गीत गाकर अपना मनोरंजन करते थे, इस समय चिकारा के साथ खंजरी की संगत जमती और वातावरण संगीतमय हो जाता। चिकारा की धुन से दिन भर की थकान उतर जाती।
श्री मान दास टंडन जी ने चिकारा की धुन के साथ छत्तीसगढ़ी के गीत एवं भजन सुनाए। मुझे लगता है कि वर्तमान समय में प्रदेश में सिर्फ़ एक-दो ही चिकारा वादक बचे होगें।
नवीन पीढी के लिए टीवी, सिनेमा, इंटरनेट आदि मनोरंजन के साधन हो गए हैं, इसलिए इन प्राचीन वाद्य यंत्रों की सीख साधना कोई नहीं करना। धीरे-धीरे ये वाद्य भी विलुप्ति की कगार तक पहुंच रहे हैं। सवाल यह आता है कि श्री मान दास टंडन जी के बाद इस विरासत को कौन संभालेगा?
लुप्त हो यह वाद्य औए संगीत की समयोचित रजुआत । गजेट में भी रावण हत्था नाम का वाद्य और वादक दोनों लुप्त होने की कगार पे है ।
गुजरात मे भी ।
अद्भुत जानकारी….राजस्थान में भी कई वाध यंत्र लुप्त होने के कगार पर है।