futuredपुस्तक समीक्षा

‘छत्तीसगढ़ मित्र’ से राज्य में अंकुरित हुआ पत्रकारिता का पौधा आज विशाल वृक्ष

स्वराज्य करुण
(ब्लॉगर एवं पत्रकार )

छत्तीसगढ़ को राज्य का आकार लिए 25 साल और यहाँ की पत्रकारिता के 125 साल पूरे हो चुके हैं, दोनों का सफ़र लगातार चल रहा है.राज्य निर्माण का यह रजत जयंती वर्ष है. भारत के नक्शे पर एक नवंबर 2000 को राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ के उभरने के 100 साल पहले यहाँ पत्रकारिता की शुरुआत हो चुकी थी, जब आदिवासी बहुल क्षेत्र पेंड्रा (जिला -बिलासपुर ) से पंडित माधव राव सप्रे ने जनवरी 1900 में मासिक पत्रिका ‘छत्तीसगढ़ मित्र ‘ का सम्पादन शुरु किया और छत्तीसगढ़ अंचल में पत्रकारिता की बुनियाद रखी.रामराव चिंचोलकर उनके सहयोगी सम्पादक थे और रायपुर के पंडित वामन राव लाखे ‘छत्तीसगढ़ मित्र ‘के प्रकाशक. हालांकि कुछ आर्थिक समस्याओं के कारण पत्रिका सिर्फ़ तीन साल चल पायी. दिसम्बर 1902 में इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा.लेकिन छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता के इतिहास में ‘मित्र ‘ का नाम अमिट अक्षरों में दर्ज हो गया.हालांकि नये स्वरूप में इसका प्रकाशन 110 वर्ष बाद सितम्बर 2012 से फिर शुरु हो गया है, जिसके प्रबंध सम्पादक डॉ. सुधीर शर्मा और सम्पादक डॉ. सुशील त्रिवेदी हैं.

शायद आज से 125 साल पहले पंडित माधव राव सप्रे के मन में छत्तीसगढ़ की भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक खूबियों की वजह से इस अंचल को एक अलग राज्य के रूप में देखने की भावना रही होगी, जिसके चलते सप्रे जी ने अपनी पत्रिका का नाम ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ रखा होगा. उन्होंने सवा सौ साल पहले ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ के माध्यम से पत्रकारिता के जिस पौधे का बीजारोपण किया था, उसका अंकुरण हुआ और अब वह पौधा एक विशाल वृक्ष के रूप में विकसित हो गया है.सप्रे जी स्वयं एक बड़े साहित्यकार थे, इसलिए उनकी इस पत्रिका में मुख्य रूप से साहित्यिक चिंतन आधारित सामग्री प्रकाशित होती थी. सप्रे जी द्वारा स्थापित पत्रकारिता को हम साहित्यिक पत्रकारिता भी कह सकते हैं.

यहाँ की पत्रकारिता की परम्परा को सप्रे जी और ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ के बाद की पीढ़ियों ने ख़ूब आगे बढ़ाया. आज इस राज्य में पत्रकारिता ख़ूब तेजी से विकसित हो रही है तो हमें राज्य स्थापना के रजत जयंती वर्ष में अपने उन पूर्वज पत्रकारों को भी याद करना चाहिए, जिन्होंने यहाँ पत्रकारिता के पौधे को अपनी लगन और मेहनत से, अपने पसीने से सींच कर पुषपित और पल्ल्वित किया है.

आज से पंद्रह साल पहले वर्ष 2010 में कुशभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जन संचार विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता के एक दर्जन दिग्गजों पर केंद्रित एक पुस्तिका ‘छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता ;हमारे पुरोधा ‘ शीर्षक से प्रकाशित की गयी थी.यह इस पुस्तिका का खण्ड -एक था. पुस्तिका के सम्पादक परितोष चक्रवर्ती थे. परितोष जी इस विश्वविद्यालय में स्थापित माधव राव सप्रे राष्ट्रवादी पत्रकारिता शोधपीठ के अध्यक्ष थे. वे स्वयं छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार थे, अफ़सोस कि वे भी अब इस दुनिया में नहीं हैं.

उनके द्वारा सम्पादित इस पुस्तिका के खण्ड -एक में छत्तीसगढ़ के एक दर्जन दिवंगत वरिष्ठ पत्रकारों का जीवन परिचय उनके फोटो सहित दिया गया है, जिनमें पंडित माधव राव सप्रे, पंडित रविशंकर शुक्ल, बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, कुलदीप सहाय, यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव, केशव प्रसाद वर्मा, गजानन माधव मुक्तिबोध, पंडित स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी, चंदूलाल चंद्राकर, मायाराम सुरजन और हरि ठाकुर शामिल हैं. छत्तीसगढ़ के पत्रकारों की परिचय पुस्तिका का प्रकाशन वाकई सराहनीय है.

पुस्तिका में इन पत्रकारों का परिचय बिंदुवार है, जिसमें कहीं -कहीं पर कुछ आवश्यक हल्का फुल्का संशोधन और सम्पादन करते हुए पत्रकारों का परिचय विस्तार से देने का प्रयास इस आलेख में किया गया है.छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता की शानदार परम्परा है. यहाँ के विभिन्न जिलों में कई ऐसे पत्रकार हुए हैं ,जो इस भौतिक संसार को छोड़ चुके हैं, लेकिन जिन्होंने पत्रकारिता के जरिए देश, प्रदेश और समाज को अपनी मूल्यवान सेवाएँ दी हैं. पुरानी पीढ़ी के ऐसे दिवंगत पत्रकारों का परिचय भी किसी पुस्तिका के रूप में आना चाहिए. पत्रकारिता विश्वविद्यालय और नई पीढ़ी के हमारे सजग पत्रकार इस दिशा में सार्थक प्रयास कर सकते हैं.हो सकता है कि विश्वविद्यालय ने इस पुस्तिका का खण्ड -दो भी प्रकाशित किया हो, मुझे इसकी जानकारी नहीं है. फिलहाल तो हम अपने इन पूर्वज पत्रकारों को याद करें.

पण्डित माधवराव सप्रे
पण्डित माधवराव सप्रे

पंडित माधवराव सप्रे
छत्तीसगढ़ के संघर्षशील, तपस्वी पत्रकारों के परिचय की श्रृंखला में सबसे पहले पंडित माधवराव सप्रे की जीवन यात्रा का उल्लेख है, जिनका जन्म 19जून 1871 को वर्तमान मध्यप्रदेश के ग्राम पथरिया (जिला -दमोह )में और निधन 23अप्रेल 1926 को रायपुर (छत्तीसगढ़ )में हुआ था. उनकी प्राथमिक शिक्षा छत्तीसगढ़ के बिलासपुर और हाई स्कूल की शिक्षा रायपुर में हुई. उच्च शिक्षा के लिए जबलपुर गए. नागपुर से बी. ए. और वर्ष 1896 में इलाहबाद विश्वविद्यालय से एफ. ए. सप्रे जी वर्ष 1899में पेंड्रा के राजकुमार के अंग्रेजी शिक्षक नियुक्त हुए और वर्ष 1900की जनवरी में वहीं से उन्होंने ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ का सम्पादन शुरु किया था,

सप्रे जी की प्रेरणा से वर्ष 1900में स्वतंत्रता संग्राम के उस दौर में रायपुर में आनंद समाज पुस्तकालय की स्थापना हुई, जो राष्ट्रीय चेतना का प्रमुख केन्द्र बना. उन्होंने वर्ष 1905 में नागपुर में हिन्दी ग्रंथ प्रकाशन मंडली की स्थापना की और मई 1906 से वहाँ ‘हिन्दी ग्रंथ माला’ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरु किया, लेकिन ब्रिटिश हुकूमत ने अपने प्रेस एक्ट के तहत इसे बंद करवा दिया. सप्रे जी ने अप्रेल 1907 में 13 अप्रेल से ‘हिन्द केसरी ‘का प्रकाशन प्रारंभ किया. वर्ष 1908 में 2अगस्त को उन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने इंडियन पिनल कोड (आई. पी. सी.)की धारा 124(ए) के तहत गिरफ्तार कर लिया, हालांकि कुछ महीने बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.

सप्रे जी ने बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए रायपुर में वर्ष 1912में जानकी देवी कन्या पाठशाला की स्थापना की. उन्होंने वर्ष 1913 में समर्थ रामदास कृत मराठी ग्रंथ ‘दास बोध ‘ और 1915 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के मराठी ग्रंथ ‘गीता रहस्य ‘ का हिन्दी अनुवाद किया. वर्ष 1916 में उनके द्वारा रचित ‘हिन्दी गीता रहस्य’ का प्रकाशन 1916 में और ‘महाभारत मीमांसा ‘ का प्रकाशन वर्ष 1920 में हुआ हुआ.सप्रे जी ने वर्ष 1920 में ही रायपुर में राष्ट्रीय विद्यालय और हिन्दू अनाथालय की स्थापना की. वर्ष 1924 में 9 नवंबर से 11नवंबर तक देहरादून में अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का आयोजन हुआ, जो पंडित माधवराव सप्रे की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ.

पंडित रविशंकर शुक्ल
पंडित रविशंकर शुक्ल

पंडित रविशंकर शुक्ल
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पत्रकार पंडित रविशंकर शुक्ल 1956 में बने मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री थे. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी के आव्हान पर अंग्रेजों के शासन के खिलाफ़ असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया.मध्यप्रदेश के सीमावर्ती मलकापुर स्टेशन पर 11अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने पर उनकी गिरफ्तारी हुई और 13 जून 1945 को रिहा किए गए. उन्होंने वर्ष 1935 में नागपुर से हिन्दी साप्ताहिक ‘महाकोशल का प्रकाशन शुरु किया, जो आगे चलकर रायपुर में साप्ताहिक और बाद में छत्तीसगढ़ का पहला दैनिक समाचार पत्र बना.उन्होंने ‘उत्थान ‘ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी शुरु किया था, जिसमें आयरलैंड का इतिहास धारावाहिक रूप से लिखा.

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पंडित रविशंकर शुक्ल का जन्म 2अगस्त 1877को सागर (मध्यप्रदेश )में हुआ. उनकी प्राथमिक शिक्षा सागर में और हाई स्कूल की शिक्षा रायपुर में हुई. वर्ष 1895 में मेट्रिक उत्तीर्ण हुए. फिर जबलपुर के सरकारी कॉलेज से इंटर और नागपुर के हिस्लाप कॉलेज से बी. ए. किया. वर्ष 1899 में जबलपुर से कानून की शिक्षा हासिल की. वर्ष 1909 के प्रारंभिक दिनों में में उन्होंने राजनांदगांव और रायपुर में वकालत भी की.वर्ष 1901में जबलपुर के हितकारिणी स्कूल और 1903 में खैरागढ़ के स्कूल में शिक्षकीय कार्य किया. वर्ष 1904में बस्तर और कांकेर के राजाओं के शिक्षक भी रहे.

वे वर्ष 1914 से 1924 तक रायपुर नगर पालिका के पार्षद और वर्ष 1921से 1936 तक रायपुर जिला परिषद (डिस्ट्रिक्ट काउंसिल )के अध्यक्ष भी रहे. पंडित शुक्ल वर्ष 1924 में पहली बार प्रांतीय विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए.वर्ष 1956में राज्य पुनर्गठन से मध्यप्रदेश बना, तब एक नवम्बर 1956 को वे मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बने. पंडित शुक्ल का निधन 31दिसम्बर 1956 को हुआ.

बैरिस्टर ठाकुर छेदी लाल

बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल
बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और लेखक बैरिस्टर ठाकुर छेदी लाल अपने समय के वरिष्ठ पत्रकार थे. उनका जन्म 1887में छत्तीसगढ़ के अकलतरा (जिला -बिलासपुर )में हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा अकलतरा में, माध्यमिक शिक्षा बिलासपुर में हुई.उच्च शिक्षा के लिए क्योर सेन्ट्रल कॉलेज प्रयाग पहुँचे. प्रवेश परीक्षा में मेरिट लिस्ट में तीसरा स्थान प्राप्त किया.उन्होंने वर्ष 1912 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से इतिहास, राजनीति और अर्थशास्त्र में बी. ए. (ऑनर्स) किया और इतिहास में एम. ए. की भी डिग्री ली. लिंकन्स इन लंदन से उन्होंने बार एट लॉ की उपाधि अर्जित की.उनका निधन 18 सितम्बर 1956 को बिलासपुर में हुआ. अपने सुदीर्घ सार्वजनिक जीवन में उन्होंने कई ज़िम्मेदारियाँ संभाली.

वर्ष 1922में राष्ट्रीय साप्ताहिक ‘कर्मवीर ‘ के सम्पादक बनाए गए. इसके पहले उन्होंने 1915 में राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रियता से हिस्सा लिया, वर्ष 1915 में गुरुकुल कांगड़ी में अध्यापन किया और वर्ष 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी नियुक्त हुए. वर्ष 1919 में पंडित मदन मोहन मालवीय की प्रेरणा से उनकी पत्रिका ‘सेवा ‘के सम्पादक बने. वर्ष 1919 में ही जलियांवाला बाग सामूहिक हत्याकांड की जाँच के लिए उन्हें पंडित मोतीलाल नेहरू समिति का सदस्य बनाया गया. बैरिस्टर ठाकुर छेदी लाल ने वर्ष 1921में असहयोग आंदोलन के प्रचार -प्रसार के लिए अपनी वकालत छोड़ दी. वर्ष 1924 और 1926 में प्रांतीय विधानसभा के निर्वाचित सदस्य रहे, वर्ष 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने पर वे लम्बे समय तक जेल में रहे.

इसके पहले 1933में बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल बिलासपुर जिला परिषद के अध्यक्ष बनाए गए थे. वर्ष 1939 में उन्हें त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन के लिए जनरल कमाडिंग ऑफिसर बनाया गया था.वह डेढ़ साल तक जेल में रहे.वर्ष 1946 से 1952 तक वे भारतीय संविधान सभा के पूर्णकालिक सदस्य भी थे.ठाकुर साहब ने वर्ष 1933 में बंगाल -नागपुर रेल्वे श्रमिक यूनियन के अध्यक्ष पद का भी दायित्व संभाला था.

कुलदीप सहाय

कुलदीप सहाय
कुलदीप सहाय

छत्तीसगढ़ की पुरानी पीढ़ी के महत्वपूर्ण पत्रकार थे कुलदीप सहाय. जन्म 13 अगस्त 1897,जन्म स्थान – नंदन ग्राम, आरा, बिहार. निधन -13 दिसम्बर 1993 को जबलपुर में हुआ. उनके पिता रामसुन्दर लाल वर्ष 1903में छत्तीसगढ़ के ग्राम पुरपुरा (तहसील -जांजगीर ) में पटवारी के पद पर नियुक्त हुए, तब पूरा परिवार इसी गांँव में रहने लगा.
कुलदीप सहाय जी ने वर्ष 1915 में म्युनिसिपल हाई स्कूल बिलासपुर (छत्तीसगढ़ )से एंट्रेंस, 1922 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी. ए. और 1936 में एल. एल. बी किया. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के उस दौर में कई समाचार पत्रों का सम्पादन किया. वर्ष 1922में जबलपुर के साप्ताहिक ‘कर्मवीर ‘1925 में बिलासपुर के मासिक ‘विकास ‘ 1928 में जबलपुर के दैनिक’ लोकमत ‘, और 1934-35 में नागपुर के ‘पीपुल्स वाइस’ और बिलासपुर के साप्ताहिक ‘सचेत ‘ के सम्पादक रहे.

महाकोशल (नागपुर )के कुछ प्रारंभिक अंकों का भी सम्पादन किया. वर्ष 1936 में छत्तीसगढ़ के जाँजगीर में वकालत शुरु की. सहाय जी ने आंचलिक अख़बारों में छत्तीसगढ़ी भाषा में समाचार लेखन की बुनियाद रखी. उन्होंने छत्तीसगढ़ी कहावतों का संकलन भी किया.आंचलिक प्रतिभाओं को समाचार लेखन के लिए प्रोत्साहित किया. सहाय जी कहानीकार भी थे. उनकी चर्चित कहानियों में प्रेमिला, बुद्ध और तोते की शिक्षा आदि शामिल हैं.

सहाय जी को भाटापारा में 20जुलाई 1977को छत्तीसगढ़ विभाग हिन्दी साहित्य सम्मेलन, 7फरवरी 1982 को उज्जैन में मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन और 1984 में अखिल भारतीय भोजपुरी भाषा सम्मेलन द्वारा सम्मानित किया गया. रायपुर संभाग लघु समाचार पत्र संगठन ने भी उन्हें सम्मानित किया था.

 

डॉ.पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

डॉ.पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
डॉ.पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

साहित्य मनीषी पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी का जन्म 27मई 1894 को छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ में और निधन 28 दिसम्बर 1971 को रायपुर में हुआ.उन्होंने इलाहबाद से प्रकाशित उस ज़माने की प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती’में चार विभिन्न काल खण्डों में सम्पादक का दायित्व निभाया. सबसे पहले वर्ष 1921 में इस पत्रिका के सम्पादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सहायक सम्पादक बनाए गए, फिर वर्ष 1921से 1925 तक, वर्ष 1927 से 1929 तक सम्पादक रहे, उन्होंने वर्ष 1952 से 1956 तक अपने गृह नगर खैरागढ़ में रहते हुए ‘सरस्वती’का संपादकीय दायित्व संभाला.

उनकी प्रारंभिक शिक्षा खैरागढ़ में हुई. उन्होंने 1912 में मेट्रिक और 1916 में सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज बनारस से बी. ए. किया. साहित्य के क्षेत्र में उनके शानदार योगदान को देखते हुए सागर विश्वविद्यालय ने वर्ष 1960 में उन्हें डी. लिट. की मानद उपाधि से सम्मानित किया. इसके पहले वे वर्ष 1916 में राजनांदगांव के स्टेट हाई स्कूल में संस्कृत के अध्यापक बनाए गए थे. उन्होंने वर्ष 1930 से 1934 तक वहाँ पुनः शिक्षक पद की जिम्मेदारी संभाली, फिर 1935 से 1949 तक विकटोरिया हाई स्कूल खैरागढ़ में अंग्रेजी के अध्यापक रहे. बख्शी जी बेहतरीन कहानीकार, निबंध लेखक और नाट्य लेखक भी थे.

केशव प्रसाद वर्मा

यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव
केशव प्रसाद वर्मा

दैनिक अग्रदूत के संस्थापक -सम्पादक केशव प्रसाद वर्मा का जन्म 3 अगस्त 1914 को छत्तीसगढ़ के ग्राम -पुरपुरा (जांजगीर )में और निधन 20अक्टूबर 1992 को रायपुर में हुआ. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 20जून 1942 को रायपुर से साप्ताहिक ‘अग्रदूत ‘ का प्रकाशन प्रारंभ किया. लगभग 41साल तक साप्ताहिक प्रकाशन के बाद 20जून 1983 से उन्होंने इसे दैनिक अख़बार के रूप में प्रकाशित करना शुरु कर दिया.आज़ादी के आंदोलन के दिनों में समाज में राष्ट्रीय चेतना के विकास और विस्तार में साप्ताहिक ‘अग्रदूत’ की महत्वपूर्ण भूमिका थी. इस वज़ह से ब्रिटिश प्रशासन ने 8अगस्त 1943को अख़बार की प्रतियाँ जब्त करके प्रेस को भी जब्त कर लिया.

सम्पादक केशव प्रसाद जी गिरफ्तार कर लिए गए. जेल से रिहाई के बाद उन्होंने ‘अग्रदूत ‘का प्रकाशन फिर शुरु कर दिया.वे अपने अख़बार में साहित्यकारों की रचनाएँ भी नियमित रूप से प्रकाशित करते थे.उन्होंने अपने समाचार पत्र में कई स्तंभ भी शुरु किए. वे नगरदूत के छद्म नाम से ‘ये रायपुर है ‘ और चित्रगुप्त के छद्म नाम से राजनीतिक डायरी भी लिखा करते थे.साप्ताहिक संवाद समीक्षा, कुछ इधर -उधर की, झींगुर, झंकार और चाणक्य के पत्र जैसे लोकप्रिय स्तंभ भी उन्होंने शुरु किए.उनके अख़बार में बाल साहित्य के लिए ‘बच्चों का कोना ‘स्तंभ भी छपता था.इसमें वे ‘दादा भाई ‘के छद्म नाम से लिखते थे. उन्होंने साप्ताहिक ‘कर्मवीर’ में भी कई लेख लिखे.वे साहित्यकार भी थे. कहानियाँ भी लिखते थे. उनकी कई कहानियाँ प्रकाशित और चर्चित हुईं.

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यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव
यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव

यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में 14 नवम्बर 1898 को जन्मे यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव की प्रारंभिक शिक्षा मुंगेली में और माध्यमिक शिक्षा बिलासपुर में हुई. उन्होंने इलाहबाद से मेट्रिक किया और नेशनल कॉलेज ढाका से इतिहास में उपाधि हासिल की. उनका निधन 15 मार्च 1970 को हुआ.उन्होंने महात्मा गांधी के आव्हान पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ वर्ष 1920 के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और उसी दरम्यान रेल्वे की शिक्षकीय नौकरी छोड़ दी. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वर्ष 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में शामिल होने पर 2साल का कारावास हुआ. वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने पर उन्हें 33महीने की जेल की सजा हुई. उसी दरम्यान वे जेल में आचार्य विनोबा भावे के सम्पर्क में आए और आजीवन सर्वोदयी जीवन जिया.

इसके पहले वर्ष 1922में जबलपुर के राष्ट्रीय साप्ताहिक ‘कर्मवीर ‘ में सम्पादन सहयोगी बने. यदुनंदन जी ने साप्ताहिक ‘प्रकाश ‘ और बिलासपुर जिला परिषद की मासिक मासिक पत्रिका ‘विकास ‘का भी सम्पादन किया. यदुनंदन जी उपन्यासकार भी थे. वर्ष 1929 में प्रकाशित ‘अपराधी ‘ और वर्ष 1930 में प्रकाशित ‘पतन ‘ उनके चर्चित उपन्यास हैं. यदुनंदन जी दो बार छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुए थे.

गजानन माधव मुक्तिबोध

 

गजानन माधव मुक्तिबोध
गजानन माधव मुक्तिबोध

आधुनिक हिन्दी साहित्य में नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर गजानन माधव मुक्तिबोध अपने समय के सजग पत्रकार भी थे. उनका जन्म 13 नवम्बर 1917 को श्योपुर (ग्वालियर)में हुआ था.उन्होंने इंदौर के होल्कर कॉलेज से वर्ष 1938 में बी. ए. और नागपुर विश्वविद्यालय से वर्ष 1953 में एम. ए. किया. वर्ष 1937 से 1946 के दौरान वे बड़नगर, उज्जैन, शुजालपुर और जबलपुर के विभिन्न स्कूलों में अध्यापन भी किया. कुछ महीने तक जबलपुर के दैनिक ‘जय हिन्द ‘में कार्यरत रहे. सूचना एवं प्रकाशन विभाग नागपुर में छह साल तक नौकरी की. आकाशवाणी के नागपुर केन्द्र में समाचार सम्पादक के रूप में काम किया.

वर्ष 1956 से 1958 तक साप्ताहिक ‘नया ख़ून’ के सम्पादक रहे. छत्तीसगढ़ का राजनांदगांव भी उनका कर्मक्षेत्र रहा. मुक्तिबोध जी वर्ष 1958 में दिग्विजय कॉलेज राजनांदगांव में हिन्दी के प्राध्यापक नियुक्त हुए और कुछ वर्ष तक वहाँ अध्यापन किया. इसी दरम्यान उन्होंने अपनी कई प्रसिद्ध रचनाओं का भी सृजन किया. उनकी प्रकाशित और चर्चित किताबों में कविता संग्रह (1)चाँद का मुँह टेढ़ा है और (2)भूरी -भूरी ख़ाक उल्लेखनीय है. सतह से उठता आदमी और काठ का सपना उनकी चर्चित कहानियाँ हैं.उनके उपन्यास ‘विपात्र’ को भी काफी प्रसिद्धि मिली. उन्होंने ‘भारत ;इतिहास और संस्कृति ‘नामक पाठ्य -पुस्तक भी लिखी. हिन्दी साहित्य के दिग्गज रचनाकार मुक्तिबोध जी का निधन 11सितम्बर 1964 को हुआ.

पंडित स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी

पंडित स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी
पंडित स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी

छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित पत्रकार पंडित स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी का जन्म एक जुलाई 1920 को उत्तरप्रदेश के ग्राम अकोड़ी (कानपुर)में हुआ था. निधन 11जुलाई 2009 को रायपुर में हुआ. उनकी प्रारंभिक शिक्षा रायपुर (छत्तीसगढ़)के प्राथमिक स्कूल नयापारा में हुई. उन्होंने रायपुर के ही लारी स्कूल (अब सप्रे स्कूल )से 1937 में मेट्रिक उत्तीर्ण होने के बाद यहाँ के छत्तीसगढ़ कॉलेज से बी. ए. किया. त्रिवेदी जी रायपुर के लारी स्कूल में कुछ वर्ष अध्यापक भी रहे. उन्होंने वर्ष 1942में रायपुर के साप्ताहिक ‘अग्रदूत’ के सहायक सम्पादक और 1983 में इस साप्ताहिक के दैनिक होने पर इसके कार्यकारी सम्पादक के रूप में भी काम किया.

इसके पहले वे वर्ष 1946 से 1954 तक रायपुर में साप्ताहिक ‘महाकोशल ‘ के सम्पादक और वर्ष 1979 से 1982 तक दैनिक ‘महाकोशल ‘के सलाहकार सम्पादक रहे. उन्होंने वर्ष 1954 से 1978 तक तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार के सूचना और प्रकाशन विभाग में जनसम्पर्क अधिकारी के पद पर भी अपनी सेवाएँ दी.अपने जीवन काल में उन्होंने कई समाचार-एजेंसियों के प्रतिनिधि के रूप में काम किया.

पंडित स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी पत्रकार होने के साथ -साथ साहित्यकार भी थे.वे छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संस्थापक अध्यक्ष थे. हिन्दी साहित्य मंडल रायपुर, भारतेन्दु साहित्य समिति, बिलासपुर और मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के कई वर्षों तक सम्मानित सदस्य रहे. उन्हें महात्मा गांधी जन्म शताब्दी समारोह समिति और राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ने सम्मानित किया. रायपुर की साहित्यिक संस्था ‘सृजन सम्मान ‘की ओर से उन्हें पंडित झावरमल शर्मा स्मृति सम्मान प्रदान किया गया था. त्रिवेदी जी अच्छे कवि और कहानीकार भी थे. उनकी कविताएँ छायावादी और राष्ट्रवादी भावनाओं से परिपूर्ण होती थीं. उनकी लिखी कहानियों में ‘तीसरा किनारा ‘भी काफी चर्चित हुई थी.

चंदूलाल चंद्राकर

पंडित स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी
चंदूलाल चंद्राकर

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन को गति देने में चंदूलाल चंद्राकर की यादगार भूमिका थी. वे प्रसिद्ध पत्रकार और राजनेता थे. उनका जन्म एक जनवरी 1921 को छत्तीसगढ़ के ग्राम अछोली (राजनांदगांव)में हुआ था. निधन दुर्ग जिले के ग्राम कोलिहापुरी में 2फरवरी 1995 को हुआ. उनकी प्राथमिक शिक्षा दुर्ग के ग्राम सिरसा कला में, हाई स्कूल की शिक्षा दुर्ग में हुई.जबलपुर के राबर्टसन कॉलेज से उन्होंने बी. ए. किया.उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ महात्मा गांधी के आव्हान पर 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया और विद्यार्थियों के साथ अपनी गिरफ्तारी दी. परीक्षा के समय उन्हें भी रिहा कर दिया गया.

चंद्राकर जी ने राष्ट्रीय स्तर के कई दैनिकों में काम किया. सबसे पहले उनका चयन दैनिक लीडर (दैनिक भारत) के लिए हुआ. वहाँ वे खेल संवाददाता के रूप में कार्यरत रहे. फिर बनारस के दैनिक ‘आज ‘ में तीन माह तक सेवाएँ दीं. वर्ष 1945में वे पटना के दैनिक ‘आर्यावर्त’ के संवाददाता रहे. उन्होंने कांग्रेस के मुम्बई में हुए अधिवेशन का अच्छा कवरेज किया. महात्मा गांधी ने भी उनके कवरेज की प्रशंसा की. हिंदुस्तान टाइम्स के सम्पादक देवदास गांधी ने चंदूलाल जी को अपने अख़बार में काम करने के लिए आमंत्रित किया. चंद्राकर जी ने महात्मा गांधी के सभी प्रमुख कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग की.

वर्ष 1946में वे दैनिक ‘हिन्दुस्तान टाइम्स ‘के सहायक सम्पादक बनाए गए, फिर इसी अख़बार में सिटी रिपोर्टर और रिपोर्टर के रूप में काम किया और पदोन्नत होकर सम्पादक बने. वर्ष 1964 से 1980 तक वे इस दैनिक के प्रमुख सम्पादक रहे. चंद्राकर जी ने पत्रकार की हैसियत से विभिन्न अवसरों पर 126 देशों की यात्रा की. उन्होंने महात्मा गांधी की अंतिम प्रार्थना सभा की रिपोर्टिंग की. इसके अलावा उन्होंने देश के चार प्रधानमंत्रियों -पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई की विदेश यात्राओं का भी समाचार कवरेज किया.खेल पत्रकार की हैसियत से उन्होंने दस ओलम्पिक खेलों की भी रिपोर्टिंग की.

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उन्होंने राजनीति में भी प्रवेश किया. पहली बार वर्ष 1970 में छत्तीसगढ़ के दुर्ग लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में सांसद चुने गए. चंद्राकर जी वर्ष 1980, वर्ष 1984 और वर्ष 1991 के आम चुनावों में भी लोकसभा के लिए दुर्ग से सांसद निर्वाचित हुए. उन्होंने वर्ष 1980 से जनवरी 1982 तक भारत सरकार के नागरिक विमानन और पर्यटन राज्य मंत्री का दायित्व निर्वहन किया. वर्ष 1985 में केंद्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री रहे. वर्ष 1992 में उनके नेतृत्व में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए सर्वदलीय मंच बना. इसके बाद तीन अप्रेल 1993 को मंच ने प्रस्ताव रखा कि सभी राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणा पत्रों में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की मांग को प्राथमिकता दें.मंच की ओर से 5अक्टूबर 1993 को राज्य निर्माण की मांग के समर्थन में छत्तीसगढ़ महाबंद का आव्हान किया. वर्ष 1995 की 2जनवरी को छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के लिए रायपुर में सर्वदलीय रैली हुई.चंदूलाल जी श्रमिक नेता के रूप में वर्ष 1975 से 1995 तक इंटुक भिलाई के अध्यक्ष रहे. उन्हें तीन बार प्रेस एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद का भी दायित्व संभाला.

मायाराम सुरजन

मायाराम सुरजन
मायाराम सुरजन

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार के रूप में प्रसिद्ध मायाराम सुरजन का जन्म 29मार्च 1923 को खापर खेड़ा (होशंगाबाद, मध्यप्रदेश)में हुआ था. निधन 31दिसम्बर 1994 को भोपाल में हुआ.उन्होंने बी. कॉम. एल. एल. बी. तक शिक्षा प्राप्त की थी.उनकी पत्रकारिता का सफ़र वर्ष 1945 में नागपुर के दैनिक ‘नवभारत’ से प्रारंभ हुआ. उन्होंने वर्ष 1950 में नवभारत के जबलपुर संस्करण और वर्ष 1952 में भोपाल संस्करण की शुरुआत की.

वर्ष 1959 में उन्होंने रायपुर (छत्तीसगढ़)से स्वयं के दैनिक ‘नई दुनिया ‘का प्रकाशन प्रारंभ किया, जो आगे चलकर दैनिक ‘देशबन्धु ‘के नाम से प्रकाशित होने लगा. उन्होंने ‘देशबन्धु ‘के जबलपुर, भोपाल, सतना और बिलासपुर संस्करण भी शुरु किए. वे वर्ष 1976 में मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष बनाए गए थे, उन्होंने जीवन के अंतिम क्षणों तक इस दायित्व को संभाला. वे मध्यप्रदेश साहित्य परिषद भोपाल के कार्यकारी उपाध्यक्ष, अखिल भारतीय समाचार पत्र सम्पादक सम्मेलन के उपाध्यक्ष और मध्यप्रदेश समाचार पत्र संघ के संस्थापक भी रहे.

इसके अलावा वे कई वर्षों तक राष्ट्रीय एकता एवं शांति परिषद और भारत -सोवियत सांस्कृतिक संघ के अध्यक्ष रहे. मायाराम जी कुशल सम्पादक होने के साथ -साथ एक अच्छे लेखक भी थे. दैनिक ‘देशबन्धु ‘में नियमित रूप से छपे उनके कई महत्वपूर्ण आलेख पुस्तकों के रूप में भी प्रकाशित हुए हैं. इनमें (1) मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश के (2) इन्हीं जीवन घाटियों में (3) धूप छाँह के दिन (4) दरअसल और (5) सबको सन्मति दे भगवान शामिल हैं.वैसे तो उनके सभी आलेख पाठकों द्वारा बहुत चाव से पढ़े जाते थे, लेकिन वर्ष 1982-1983 में ‘देशबन्धु ‘ में ‘सबको सन्मति दे भगवान ‘ शीर्षक से प्रकाशित उनकी लेखमाला ‘काफी लोकप्रिय हुई थी.मायाराम जी को शिमला के बलराज साहनी सार्वजनिक सम्मान और केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा के गणेशशंकर विद्यार्थी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.उन्होंने समय -समय पर कई देशों की यात्राएँ की, जिनमें सोवियत रूस, बल्गरिया, बांग्लादेश, रोमानिया, लाताविया, यूक्रेन, जार्जिया, मोल्दाविया,उजबेकिस्तान, ताज़किस्तान और यूगोस्लाविया शामिल हैं.

हरि ठाकुर

हरि ठाकुर
हरि ठाकुर

साहित्य, पत्रकारिता और जन सरोकारों के लिए आजीवन समर्पित रहे हरि ठाकुर के नाम से प्रसिद्ध हरि नारायण सिंह का जन्म 16 अगस्त 1927 को रायपुर में हुआ था.निधन तीन दिसम्बर 2001को हुआ.उनके पिता ठाकुर प्यारेलाल सिंह अपने समय के लोकप्रिय श्रमिक नेता, पत्रकार और नगर पालिका परिषद रायपुर के तीन बार निर्वाचित अध्यक्ष रहे.
इस प्रकार आम जनता से जुड़कर रहने की आदत हरि ठाकुर को विरासत में मिली. वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे. उन्होंने वर्ष 1942 में अंग्रेज सरकार के खिलाफ़ हुए भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया था. देश की आज़ादी के बाद वे 1950 में गोवा मुक्ति आंदोलन में और आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से भी जुड़े.वर्ष 1950 में ही वे छत्तीसगढ़ कॉलेज रायपुर के छात्रसंघ अध्यक्ष बने.हरि ठाकुर वकील भी थे.वे वर्ष 1990 के दशक में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के लिए गठित सर्व दलीय मंच के संयोजक भी रहे.
पत्रकार के रूप में हरि ठाकुर ने कई पत्रिकाओं का सम्पादन किया. सहयोगी सम्पादक के रूप में उन्होंने वर्ष 1948 में मासिक ‘नवज्योति’, 1949 में छत्तीसगढ़ केसरी, 1965 में मासिक ‘संज्ञा’ को अपनी सेवाएँ दी. वर्ष 1966 से 1980 तक उन्होंने रायपुर में अपने पिता स्वर्गीय ठाकुर प्यारेलाल सिंह द्वारा वर्ष 1950 में अर्ध – साप्ताहिक के रूप में रायपुर में शुरु किए गए ‘राष्ट्रबंधु’ का साप्ताहिक के रूप में सम्पादन किया. ठाकुर प्यारेलाल सिंह वर्ष 1952 के प्रथम आम चुनाव में रायपुर से विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे और उन्हें विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष भी बनाया गया था. इस वजह से अत्यधिक व्यस्तता के कारण उन्हें अपने अर्ध साप्ताहिक का प्रकाशन स्थगित करना पड़ गया था.

हरि ठाकुर वर्ष 1954 में नागपुर की भूदान पत्रिका ‘साम्य योग ‘ में सहयोगी सम्पादक, वर्ष 1997 में दैनिक ‘राष्ट्रीय हिन्दी मेल ‘के सम्पादक और कई वर्षों तक दैनिक ‘भास्कर ‘रायपुर के सलाहकार मंडल के भी सदस्य रहे. साक्षरता आंदोलन सहित कुष्ठ मुक्ति जन जागरण अभियान में भी उनकी सक्रिय भागीदारी थी. हरि ठाकुर हिन्दी और छत्तीसगढ़ी भाषाओं के सुप्रसिद्ध कवि और लेखक भी थे. उनके प्रकाशित कविता संग्रहों में (1) लोहे का नगर (2) गीतों के शिलालेख (3)नये विश्वास के बादल (4) पौरुष ;नये संदर्भ (5) छत्तीसगढ़ी गीत अउ कविता (6)जय छत्तीसगढ़ (7)मुक्ति गीत (8) धान के कटोरा आदि शामिल हैं.उनके 75 हिन्दी गीतों का संकलन ‘हँसी एक नाव – सी’ चेतन भारती के सम्पादन में प्रकाशित हुआ.

छत्तीसगढ़ के इतिहास और इस राज्य की महान विभूतियों पर केंद्रित हरि ठाकुर का शोधपरक विशाल ग्रंथ ‘छत्तीसगढ़ गौरव गाथा ‘ उनके मरणोपरांत वर्ष 2003 में प्रकाशित हुआ.इसमें उनके कई आलेख संकलित हैं. वर्ष 1972 में बनी छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘घर -द्वार ‘ में उनके लिखे गीत शामिल हैं. उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य का प्रारंभिक इतिहास भी लिखा.हरि ठाकुर वर्ष 1960 में छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य सम्मेलन, वर्ष 1979 में समता सोसायटी, वर्ष 1987में छत्तीसगढ़ लोक कला समिति और वर्ष 1995 में सृजन -सम्मान संस्था के अध्यक्ष रहे. उन्हें विभिन्न अवसरों पर कई संगठनों द्वारा सम्मानित किया गया. वर्ष 1999 में प्रथम दाऊ रामचंद्र देशमुख सम्मान और मरणोपरांत वर्ष 2002में पंडित सुन्दर लाल शर्मा विभूति अलंकरण से भी हरि ठाकुर नवाजे गए थे.उनका निधन तीन दिसम्बर 2001को हुआ. अगले दिन छत्तीसगढ़ विधानसभा के शीतकालीन सत्र की बैठक के प्रारंभ में उनके निधन का उल्लेख करते हुए उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की गई.