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छत्ता तेरे राज में, धक-धक धरती होय : 20 दिसम्बर पुण्यतिथि विशेष

भारत के इतिहास में बुंदेलखंड के वीर योद्धा राजा छत्रसाल का नाम अमर है। उनकी पुण्यतिथि पर उनके अद्वितीय साहस, संघर्ष और समर्पण को याद करना न केवल उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करना है, बल्कि यह भारतीय स्वाभिमान और संस्कृति को भी सम्मान देना है। राजा छत्रसाल का जन्म 4 मई 1649 को हुआ था और उन्होंने 20 दिसंबर 1731 को अपनी अंतिम सांस ली। उनका जीवन संघर्ष और पराक्रम की गाथा है। उनके पिता चंपतराय बुंदेला ने मुगलों के खिलाफ संघर्ष किया और अंततः अपने जीवन का बलिदान दिया। महाकवि भूषण ने छत्र साल की वीरता का परिचय देते हुए कहा –

छत्ता तेरे राज में, धक-धक धरती होय।

जित-जित घोड़ा मुख करे, तित-तित फत्ते होय।

 

राजा छत्रसाल के जीवन का सबसे बड़ा योगदान बुंदेलखंड क्षेत्र को स्वतंत्रता दिलाना था। उन्होंने मुगल सम्राट औरंगजेब के खिलाफ कई युद्ध लड़े और उनकी सेना को पराजित किया। उनका पराक्रम और साहस ऐसा था कि उन्होंने बुंदेलखंड में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। यह राज्य न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता का प्रतीक था, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक स्वतंत्रता का भी प्रतीक था। उन्होंने अपने राज्य में न्याय और समानता पर आधारित शासन व्यवस्था स्थापित की।

 

छत्रसाल का जीवन न केवल युद्ध कौशल और कूटनीति का प्रतीक है, बल्कि उनके समय के कवियों ने उनके गुणगान में अनेक रचनाएं कीं। महाकवि भूषण, जो स्वयं छत्रसाल के दरबार के रत्न थे, ने उनकी वीरता और पराक्रम का वर्णन अपनी कविताओं में किया है। भूषण ने लिखा था:

“जग में रहत मुकुता को डोरा, तजि मुकुता ज्यों तजै जहाज।

ऐसे कुल के दीपक ज्योति, छत्रसाल को धरनि विराज।”

महाकवि भूषण ने उनकी तुलना महाबली भीम और महाराणा प्रताप से की। उनके शब्दों में छत्रसाल वह नायक थे, जिन्होंने अपनी भूमि को अत्याचार से मुक्त कराया और इसे स्वतंत्रता का स्वर्णिम स्वरूप प्रदान किया।

 

राजा छत्रसाल के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब मुगलों के सहयोगी नजफ़ खां और बंगश ने बुंदेलखंड पर आक्रमण किया। इस कठिन समय में, छत्रसाल ने मराठा सेनापति बाजीराव प्रथम से सहायता मांगी। तब छत्रसाल बुन्देला ने बाजीराव पेशवा को संदेश भेजा –

जो गति ग्राह गजेन्द्र की सो गति भइ है आज।

बाजी जात बुन्देल की राखो बाजी लाज॥

बाजीराव ने उनकी पुकार पर तुरंत प्रतिक्रिया दी और अपनी सेना के साथ बुंदेलखंड पहुंच गए। बाजीराव की कुशल रणनीति और सैन्य शक्ति के कारण मुगल सेना को 30 मार्च 1729 को पराजित कर दिया। इस विजय ने न केवल बुंदेलखंड की स्वतंत्रता को सुरक्षित किया, बल्कि छत्रसाल और बाजीराव के बीच गहरे मित्रता और सहयोग की नींव भी रखी। इस सहायता के प्रतीक के रूप में, छत्रसाल ने अपने राज्य का एक बड़ा हिस्सा मराठों को सौंप दिया और बाजीराव को अपना संरक्षक माना।

 

राजा छत्रसाल ने अपने शासन में बुंदेलखंड के सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने मंदिरों का निर्माण कराया, कला और साहित्य को प्रोत्साहन दिया और अपने प्रजाजनों की भलाई के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं लागू कीं। उनका शासन न केवल एक योद्धा राजा का शासन था, बल्कि वह एक आदर्श प्रशासक भी थे। उनकी यह विशेषता उन्हें एक महान राजा बनाती है।

 

उनकी धर्मनिष्ठा और सांस्कृतिक योगदान भी अद्वितीय थे। वह भगवद्गीता और रामायण से प्रेरणा लेते थे और अपने सैनिकों को भी आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते थे। उनकी धर्मनिष्ठा ने उन्हें अपने लक्ष्य के प्रति अडिग और साहसी बनाए रखा।

बुन्देलखण्ड केसरी के नाम से वि‍ख्‍यात महाराजा छत्रसाल बुन्देला के बारे में ये पंक्तियाँ बहुत प्रभावशाली हैं, जो उनके राज्य की सीमाएं बताती हैं।

इत यमुना, उत नर्मदा, इत चम्बल, उत टोंस।

छत्रसाल सों लरन की, रही न काहू हौंस॥

 

राजा छत्रसाल ने अपनी अंतिम सांस तक अपनी मातृभूमि की सेवा की। उनकी पुण्यतिथि पर हम उनके योगदान को नमन करते हैं। उनका जीवन और कार्य आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उनके द्वारा स्थापित बुंदेलखंड राज्य ने आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वतंत्रता और स्वाभिमान का संदेश दिया। उनका जीवन यह सिखाता है कि साहस, संगठन और दृढ़ संकल्प के साथ किसी भी कठिनाई का सामना किया जा सकता है।

 

आज, जब हम राजा छत्रसाल की पुण्यतिथि पर उनके जीवन और कार्यों को याद करते हैं, तो यह समय उनके आदर्शों और मूल्यों को अपनाने का है। उनका जीवन यह संदेश देता है कि कठिनाइयों और संघर्षों के बावजूद अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहना ही सच्ची सफलता है। बुंदेलखंड केसरी राजा छत्रसाल का जीवन और पराक्रम भारतीय इतिहास में हमेशा गर्व और प्रेरणा का स्रोत रहेगा।

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