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सूर्योपासना पर्व छठ पूजा का सांस्कृतिक, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

भारत में सूर्योपासना का इतिहास बहुत पुराना और समृद्ध है। वैदिक काल से ही सूर्य को ऊर्जा, जीवन और स्वास्थ्य का स्रोत माना गया है। सूर्य को वैदिक साहित्य में ‘सूर्य नारायण’ या ‘सविता’ के रूप में पूजा जाता है। ऋग्वेद में सूर्य को जीवनदायिनी शक्ति का प्रतीक माना गया है, और उसे सभी प्राणियों के अस्तित्व का आधार बताया गया है। योग और आयुर्वेद में भी सूर्य को स्वस्थ जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। ‘सूर्य नमस्कार’ योग का एक प्रसिद्ध आसन है जो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बल्कि मानसिक शांति के लिए भी लाभकारी है। भारतीय उपमहाद्वीप में सूर्य को आंतरिक शक्ति, आत्मबल और संतुलन का प्रतीक माना गया है, जिससे उसकी उपासना विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं में स्थायी रूप से समाहित हो गई है।

सूर्य उपासना का विशेष महत्व छठ पूजा, मकर संक्रांति, और रथ सप्तमी जैसे पर्वों में देखा जा सकता है। छठ पूजा सूर्य देवता और छठी मैया (प्रकृति) को समर्पित एक प्राचीन और विशिष्ट पर्व है, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। छठ पूजा की प्रमुखता इसके कठोर नियमों और नियमित अनुष्ठानों के कारण है, जो इसे अन्य हिंदू पर्वों से अलग बनाते हैं। इसमें व्रती (उपासक) सूर्य को अर्घ्य देकर और छठी मैया की पूजा कर अपने परिवार की समृद्धि, सुख-शांति और संतान प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।

छठ पर्व सूर्य देवता को समर्पित एकमात्र ऐसा हिंदू पर्व है जिसमें सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है। सूर्य को ऊर्जा, जीवन शक्ति और स्वास्थ्य का स्रोत माना जाता है, और इस दिन सूर्य को अर्घ्य देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन किया गया व्रत स्वास्थ्य, समृद्धि और संतति सुख प्रदान करता है। छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व भी है; इसके दौरान सूर्य की किरणें शरीर को ऊर्जा प्रदान करती हैं और यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानी जाती हैं।

छठ पूजा चार दिनों तक मनाया जाने वाला पर्व है, जिसमें खास रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है पहला दिन (नहाय-खाय) – इस दिन व्रती गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं और शुद्ध भोजन करते हैं। इससे शुद्धता और आंतरिक शुद्धिकरण की प्रक्रिया शुरू होती है। दूसरा दिन (खरना) – इस दिन उपवासी दिनभर उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ से बनी खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद वे पुनः निर्जला व्रत रखते हैं। तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य) – इस दिन सूर्यास्त के समय घाट पर जाकर व्रती सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस अर्घ्य में विशेष पूजा सामग्री जैसे ठेकुआ, फल, गन्ना, आदि चढ़ाए जाते हैं। इस दिन का संध्या अर्घ्य अत्यंत महत्वपूर्ण होता है और घाट पर विशेष पूजा का आयोजन होता है। चौथा दिन (उषा अर्घ्य) – अंतिम दिन, उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा का समापन किया जाता है। इसके बाद व्रती अपना उपवास तोड़ते हैं और प्रसाद का वितरण किया जाता है।

छठ पूजा की कथा छठ पूजा से संबंधित कई कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:

रामायण कथा – मान्यता है कि रामायण काल में भगवान श्रीराम और माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद राज्याभिषेक के दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की थी। उनके द्वारा किए गए इस व्रत को ही बाद में छठ पूजा के रूप में मनाया जाने लगा।

महाभारत कथा – एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत काल में पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने संतान और समृद्धि के लिए इस व्रत का पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से पांडवों की कष्टमय स्थिति समाप्त हुई और उन्हें उनका राज्य प्राप्त हुआ।

छठी मैया का वरदान – प्रचलित मान्यता के अनुसार, छठी मैया भगवान सूर्य की बहन मानी जाती हैं, जो जीवन, स्वास्थ्य और संतान के लिए पूजा से प्रसन्न होती हैं। ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन और नियम से इस व्रत को करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

वैज्ञानिक महत्व

छठ पूजा के दौरान, भक्त सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य की ओर मुंह करके अर्घ्य अर्पित करते हैं। इन समयों पर सूर्य की किरणें हल्की होती हैं और त्वचा को सुरक्षित रूप से प्रभावित करती हैं। इन किरणों से त्वचा में विटामिन D का निर्माण होता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाने, प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने, और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए आवश्यक है। पूजा के दौरान भक्त नदी या जलाशय के पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। पानी में खड़े रहने से शरीर का तापमान नियंत्रित होता है और रक्त संचार में सुधार होता है। यह ऊर्जा संतुलन में सहायता करता है और शरीर को तरोताजा महसूस कराता है।

पूजा में विशेष ध्यान और तपस्या की भूमिका है। चार दिनों तक उपवास और ध्यान के साथ अर्घ्य देने की प्रक्रिया से मानसिक शांति मिलती है। इससे मन और मस्तिष्क का संतुलन बनता है, तनाव घटता है, और मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है। इस पर्व के दौरान भक्त जलाशयों को साफ-सुथरा रखने का विशेष ध्यान रखते हैं। यह पर्यावरण और जल संसाधनों के लिए चेतना जागृत करता है, जिससे जल के स्रोतो एवं जलाशयों को स्वच्छ रखा जा सके।

हाल के वर्षों में इस पर्व की लोकप्रियता भारत के अन्य राज्यों और विदेशों में भी बढ़ी है। मुंबई, दिल्ली, गुजरात, पंजाब और अन्य राज्यों में बिहार, यूपी के प्रवासी लोग भी यह पर्व धूमधाम से मनाते हैं। विदेशों में भी, विशेषकर अमेरिका, यूके, मॉरिशस, फिजी और कनाडा में भारतीय समुदाय इसे अपनी संस्कृति से जुड़े रहने के रूप में मनाता है।

छठ पूजा एक ऐसा पर्व है जो सामाजिक एकता और सामूहिक भावना को बढ़ावा देता है। इसमें विभिन्न वर्गों और जातियों के लोग एक साथ आकर घाट पर पूजा करते हैं। यह पर्व हमें पर्यावरण संरक्षण और जल संरक्षण का भी संदेश देता है क्योंकि इस पूजा में साफ-सफाई का बहुत ध्यान रखा जाता है और पवित्र नदियों का संरक्षण भी इसका अभिन्न अंग है।

छठ पूजा एक महान पर्व है, जिसमें आस्था, श्रद्धा, अनुशासन और प्रकृति के प्रति प्रेम समाहित है। इस पर्व के माध्यम से लोग अपने कर्तव्यों, अनुशासन और परिवार के प्रति जिम्मेदारियों का पालन करते हैं। इसमें निहित कथाएँ और संदेश हमें सिखाते हैं कि जीवन में धैर्य, संयम और नियमों का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है। छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक ऐसा प्रतीक है जो लोगों को आस्था और संस्कृति से जोड़ता है और हमें प्रकृति का सम्मान करना सिखाता है।

One thought on “सूर्योपासना पर्व छठ पूजा का सांस्कृतिक, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

  • November 6, 2024 at 15:46
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    बहुत सुंदर आलेख भईया
    💐💐💐💐💐💐💐

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