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छत्तीसगढ़ में शिक्षा व्यवस्था का ऐतिहासिक कायाकल्प: शिक्षक विहीन स्कूल अब अतीत की बात

छत्तीसगढ़ की शिक्षा प्रणाली में सुधार की दिशा में एक बड़े और साहसिक कदम के तहत राज्य सरकार ने विद्यालयों और शिक्षकों के व्यापक युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में किए गए इस परिवर्तनकारी प्रयास का उद्देश्य है – हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण और समान शैक्षणिक अवसर उपलब्ध कराना।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुरूप इस योजना के तहत राज्य भर के हजारों स्कूलों को आपस में समायोजित कर शिक्षा व्यवस्था को अधिक सशक्त और व्यवस्थित बनाया गया है।

शिक्षक विहीन स्कूल अब नहीं

शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक, पहले राज्य में 212 प्राथमिक और 48 पूर्व माध्यमिक शालाएं ऐसी थीं, जहां एक भी शिक्षक पदस्थ नहीं था। इसके अलावा करीब 6,872 स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहे थे। अब युक्तियुक्तकरण के बाद ऐसे सभी विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति हो चुकी है, और राज्य में शिक्षक विहीन कोई भी स्कूल नहीं बचा है।

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80% की कमी एकल शिक्षकीय शालाओं में

सरकार द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, अब एकल शिक्षकीय स्कूलों की संख्या में 80 प्रतिशत की उल्लेखनीय गिरावट आई है और यह संख्या घटकर लगभग 1,200 रह गई है। इससे न केवल शिक्षकों का बोझ कम हुआ है बल्कि बच्चों को भी बेहतर सीखने का वातावरण मिला है।

10,372 विद्यालयों का सफल एकीकरण

इस अभियान की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि राज्य के 10,372 स्कूलों — जिनमें प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक, हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी शालाएं शामिल हैं — को एक ही परिसर में मिलाकर एकीकृत किया गया। इससे बच्चों को बार-बार स्कूल बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी और शिक्षा की निरंतरता बनी रहेगी। बच्चों को अब बड़ी कक्षाओं के विद्यार्थियों से मार्गदर्शन मिलेगा, साथ ही प्रयोगशाला, खेल, कंप्यूटर और सांस्कृतिक गतिविधियों जैसी सुविधाएं भी साझा होंगी।

शिक्षकों का समुचित पुनर्विन्यास

जिला, संभाग और राज्य स्तर पर शिक्षकों के स्थानांतरण और समायोजन की एक योजनाबद्ध प्रक्रिया अपनाई गई।

  • जिला स्तर पर: 13,793 शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण
  • संभाग स्तर पर: 863 शिक्षक
  • राज्य स्तर पर: 105 शिक्षक पुनः नियुक्त किए गए
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इस पुनर्विन्यास से उन विद्यालयों को विशेष लाभ हुआ, जहां पहले पर्याप्त संख्या में शिक्षक नहीं थे।

संसाधनों का संतुलन और बेहतर पीटीआर

छत्तीसगढ़ का पुत्र-शिक्षक अनुपात (PTR) पहले से ही राष्ट्रीय औसत से बेहतर रहा है — प्राथमिक स्कूलों में 20 और पूर्व माध्यमिक स्कूलों में 18, जबकि राष्ट्रीय औसत क्रमशः 29 और 38 है। इसके बावजूद, राज्य में ऐसे कई विद्यालय थे जहां शिक्षक अत्यधिक संख्या में पदस्थ थे, जबकि कई स्कूलों में एक भी नहीं। इस पहल से अब संसाधनों का न्यायसंगत वितरण संभव हुआ है।

शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद

शिक्षा विभाग का कहना है कि किसी भी स्कूल को बंद नहीं किया गया है और न ही कोई शिक्षक पद समाप्त किया गया है। इसके विपरीत, हर विद्यालय को बेहतर अधोसंरचना और स्टाफ मुहैया कराया गया है। सरकार का जोर अब ऐसे विद्यालयों के विकास पर है, जो संसाधन सम्पन्न हों और छात्रों के सर्वांगीण विकास में सहायक बनें।

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भविष्य की ओर सकारात्मक कदम

इस अभूतपूर्व सुधार से लगभग 89 प्रतिशत छात्रों को बार-बार प्रवेश लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। समय-सारिणी में एकरूपता आएगी, और छात्रों को अब अतिरिक्त शिक्षकों का लाभ मिलेगा। उपचारात्मक शिक्षण पर भी विशेष ध्यान दिया जाएगा जिससे कमजोर छात्रों की समझ और प्रदर्शन बेहतर हो सके।

छत्तीसगढ़ का यह कदम न केवल शिक्षा प्रणाली को अधिक व्यवस्थित बना रहा है, बल्कि यह एक ऐसी नींव रख रहा है, जिस पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का मजबूत भवन खड़ा होगा। यह युक्तियुक्तकरण अभियान राज्य की उस दूरदर्शिता को दर्शाता है, जो शिक्षा को सिर्फ सुविधा नहीं, बल्कि अधिकार और अवसर के रूप में देखती है।

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