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छत्तीसगढ़: स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने पर माओवादी हिंसा, युवक की हत्या

स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराना एक ग्रामीण युवक को भारी पड़ गया। छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िले के बिनागुंडा गांव में माओवादियों ने एक युवक की हत्या कर दी। मृतक की पहचान मनीष नुरेटी के रूप में हुई है, जिसे माओवादी संगठन ने पुलिस का मुखबिर करार दिया था।

पुलिस के अनुसार, मनीष ने 15 अगस्त को गांव में स्थित माओवादी स्मारक स्थल पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया था और देशभक्ति के नारे लगाए थे। इसी ‘अपराध’ के चलते उसे उसके घर से जबरन खींचकर गांव के सामने लाया गया और तथाकथित “जन अदालत” (जनता की अदालत) में सजा सुनाकर हत्या कर दी गई।

घटनास्थल पर एक अन्य व्यक्ति की भी पिटाई की गई। बताया जा रहा है कि इस पूरी घटना का एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें मनीष को स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग लेते हुए देखा जा सकता है। बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी ने बताया कि पूरे मामले की जांच की जा रही है और तथ्यों की पुष्टि के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी।

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इस बीच, परतापुर क्षेत्रीय माओवादी समिति ने इस हत्या की जिम्मेदारी लेते हुए बैनर लगाए हैं और पुलिस पर आदिवासियों को मुखबिर के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है। साथ ही, उन्होंने पंखाजूर थाने के प्रभारी लक्ष्मण केवट, सरपंच रामजी धुर्वा और जिला रिजर्व गार्ड (DRG) के सदस्यों को धमकाया है।

सरकार द्वारा माओवादी उग्रवाद को 2026 तक पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है। बीते एक वर्ष में माओवादी संगठनों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। माओवादी केंद्रीय समिति के 23 जून को जारी एक दस्तावेज के अनुसार, पिछले साल भर में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ों में 357 माओवादी मारे गए हैं।

सबसे बड़ी कामयाबी मई 2025 में मिली, जब माओवादी महासचिव और केंद्रीय भारत में उग्रवाद का मुख्य चेहरा रहे नामबाला केसव राव उर्फ़ बसवराजू को सुरक्षा बलों ने मार गिराया। बसवराजू पर कई बड़े हमलों की साजिश रचने का आरोप था, जिनमें 2010 में हुए उस घातक हमले की अगुवाई भी शामिल थी, जिसमें 76 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे।

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ज्ञात हो कि भारत में माओवादी आंदोलन की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से हुई थी, जो बाद में छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र तक फैल गया। हालांकि बीते वर्षों में आंदोलन को कई झटके लगे हैं, लेकिन अभी भी यह आतंरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है।