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भारत में विविध परंपराओं का संगम दशहरा पर्व

रेखा पाण्डेय (लिपि)

दशहरा हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार है। आश्विन मास (कुंवार मास) की शुक्लपक्ष की दसमीं तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई  की विजय का उत्सव है। भगवान राम की विजय और दुर्गा पूजा के रूप में या फिर यह शक्ति-पूजा का पर्व है। हर्ष और उल्लास का यह पर्व है। भारतीय संस्कृति सदैव से वीरों और शौर्य की उपासक रही है। अतः जन-जन  वीरता और शौर्यता की भावना जागृत करने के उद्देश्य से दशहरा को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। दशहरा को विजयादशमी, बिजाय, आयुध पूजा के रूप में भी जाना जाता है।

इस दिन श्रीराम ने रावण अर्थात दशानन का वध किया था। दशानन अर्थात दस सिरों वाला राक्षस। रावण के दस सिर दस पापों का प्रतीक हैं। जो समस्त मानव जाति को इन दस पापों काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी का परित्याग कर सत्य का मार्ग अपनाने तथा सद्कर्म करने की प्रेरणा देते हैं।

नवरात्रि में शक्ति की आराधना की जाती है। वाल्मिकी रामायण के अनुसार भगवान राम ने रावण से युद्ध से पहले ऋष्यमूक पर्वत पर आश्विन प्रतिपदा से नवमीं तक आदिशक्ति देवी मां की उपासना  कर मां को प्रसन्न किया था। क्योंकि किसी भी कार्य की सिद्धि या निर्विघ्न पूर्ण होने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है। श्रीराम इसी दिन किष्किंधा से लंका को प्रस्थान किये थे। दशहरा के दिन श्रीराम ने रावण का वध किया था तथा दीपावली पर अपने चौदह वर्ष वनवास को पूर्ण कर अयोध्या पहुंचे थे।

माना जाता है कि आश्विन शुक्ल की दशमी को तारा उदय होने के समय विजय नामक मुहूर्त होता है। यह काल सर्व कार्य सिद्धि दायक होता है। इसलिए इसे विजयादशमी कहते हैं।

‘आश्विनस्य सितेपक्षे दशम्यां तारकोदये,

स कालो विजयोज्ञेयःसर्वकार्यार्थ सिद्धये।’

इसलिए इसी समय शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने हेतु प्रस्थान करना चाहिए। इसी दिन माता कात्यायनी दुर्गा ने देवताओं के अनुरोध पर महिषासुर का वध किया था तब विजय उत्सव मनाया गया था। इस कारण इसे विजयादशमी कहा जाता है। विजया, माता का ही नाम है।

यह भी कहा जाता है कि इसी दिन पाण्डवों को वनवास हुआ और उन्होंने वनवास को प्रस्थान किया था। इसी दिन अज्ञातवास समाप्त कर पांडवों ने शक्तिपूजन कर शमी वृक्ष में रखे अपने शस्त्रों को पुनः प्राप्त किया और विराट की गायों को चुरानेवाली कौरव सेना पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। इसी दिन कौरवों पर विजय भी प्राप्त की।

दशहरा पर्व नवरात्रि में दुर्गापूजा के दसवें दिन और दीपावली से बीस दिन पहले मनाया जाता है। पूरे भारत वर्ष में कोने-कोने में यह  पर्व मनाया जाता है। श्री राम ने रावण वध से पूर्व नीलकंठ को देखा था जो भगवान शिव का रूप माना जाता है। अतः इसदिन नीलकंठ देखना शुभ माना जाता है। साथ ही पान का बीड़ा खाना भी  शुभ माना गया है। पान का बीड़ा उठाकर खाने के पीछे संकेत होता है प्रेरणा का। ‘बीड़ा उठाना ‘अर्थात किसी कार्य को करने की जिम्मेदारी लेना।

असत्य पर सत्य एवं बुराई पर अच्छाई की विजय के लिए आतिशबाजी के साथ रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं। नौ दिनों तक जगह – जगह रामलीलाओं का आयोजन किया जाता है। दशमी को रावणवध के प्रसंग के साथ असत्यपर सत्य की जीत दिखाई जाती है।

दशहरा के समय नई फसल तैयार हो जाती है। जब यहां के किसान अपने खेतों में फसल उगाकर अनाज रूपी सोना अपने घर लाते हैं तब आनन्द व उल्लास से भर जाते हैं और ईश्वर का वरदान मानकर इसका पूजन करते हैं तथा नवाखाई नवान्नग्रहण का कार्य सम्पन्न करते हैं। दशहरा त्यौहार पूरे भारतवर्ष में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। लोग बहुत श्रद्धा से पूजन-अर्चन करते हैं रावण वध के बाद एक दूसरे को शमी पत्ता जिसे सोन पत्ता भी कहते हैं को देकर शुभकामनाएं देते हैं।

छतीसगढ़ के बस्तर जिले का दशहरा उत्सव 75 दिनों तक चलता है। परंतु इसे राम की रावण पर विजय न मानकर बस्तर के निवासियों की आराध्य देवी माँ दंतेश्वरी को समर्पित है। इनकी आराधना और पूजन किया जाता है। यह पर्व श्रावण मास की अमावस्या से आश्विन मास की शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तक चलता है। प्रथम दिन काछिन गाछी जिसमें मां कांटों की सेज पर विराजती हैं।अंतिम दिन ओहाड़ी पर्व से समापन होता है।

बंगाल, ओडिशा, असम में दुर्गा पूजा के रूप में पांच दिनों तक मनाया जाने वाला त्यौहार है। दुर्गा माँ पंडालों में विराजती है, षष्ठी के दिन देवी आमन्त्रण और प्राणप्रतिष्ठा के साथ पूजन -अर्चन होता है। अष्टमी को महापुजा दशमी को विशेष पूजा होती है। स्त्रियां देवी को सिंदूर चढ़ाती हैं और मिठाई का भोग से उनकी विदाई करती हैं। इसके बाद दुर्गा प्रतिमाओं का नदियों में विसर्जन कर दिया जाता है।

उत्तरप्रदेश के सहारनपुर में शाकम्भरी देवी की पूजा अर्चना की जाती है यहां मेले लगते हैं। तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा की जाती है। प्रथम तीन दिवस धन-वैभव की देवी लक्ष्मी की पूजा होती है। इसके बाद तीन दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा और अंतिम दो दिन शक्ति की देवी दुर्गा की आराधना की जाती है। कर्नाटक में मैसूर का दशहरा प्रसिद्ध है। पूरे मैसूर को रोशनी से सजाया जाता है। हाथियों को सुसज्जित कर भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है। मैसूर महल को दीपों से सजाया जाता है। द्रविड़ प्रदेशों में रावण दहन नहीं किया जाता।

महाराष्ट्र में दुर्गा जी की आराधना बड़ी धूमधाम से की जाती है। दसवें दिन ज्ञान की देवी सरस्वती  को समर्पित करते हुए पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन से नवीन कार्य आरंभ किये जाते हैं। गुजरात में मिट्टी के रंगीन घड़ों को जिसे देवी का प्रतीक माना जाता है कुंवारी कन्याएं सर पर रख कर गरबा करती हैं। साथ ही लड़के, लड़कियां, महिलाएं, पुरुषों के द्वारा डांडिया नृत्य गीत संगीत और ढोल के साथ लयबद्ध नृत्य करते हैं।

जम्मू कश्मीर में नौ दिन देवी की आराधना की जाती है। यहाँ खीर भवानी माता के दर्शन नौ दिनों तक करने जाते हैं। यह मंदिर एक झील में बना हुआ है। मान्यता है कि कोई अनहोनी होने  के समय इसका पानी काला हो जाता है। भारत के लगभग सभी प्रान्तों, नगरों, गांवों में यह त्यौहार अपने-अपने तरीकों से मनाए जाने की परंपरा है। साथ ही विदेशों में बसे भारतीयों द्वारा बड़े हर्षोउल्लास के साथ धूमधाम से मनाया जाता है।

लेखिका वरिष्ठ साहित्यकार एवं संस्कृति की जानकार हैं।

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