मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की तैयारी में विपक्ष, संसद में ला सकते हैं प्रस्ताव
नई दिल्ली, 19 अगस्त — देश के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा हाल ही में चुनावी धांधली के आरोपों को “बेबुनियाद और असंगत” करार देने के बाद, विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ ने मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाने की संभावना जताई है।
कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने सोमवार को विपक्ष के संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, “हमने कानूनी और संवैधानिक दोनों तरह की कार्रवाई पर चर्चा की है। उचित समय पर सही कदम उठाया जाएगा।”
यह बयान ऐसे समय में आया है जब विपक्ष लगातार चुनाव आयोग पर निष्पक्षता न बरतने और सत्ता पक्ष के पक्ष में काम करने के आरोप लगा रहा है।
CEC की नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया क्या है?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने की जिम्मेदारी देता है। 2023 में बनाए गए कानून के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और केंद्रीय मंत्रिपरिषद के एक सदस्य वाली समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
इन पदों के लिए उन्हीं व्यक्तियों की नियुक्ति हो सकती है जो पहले सचिव स्तर पर कार्य कर चुके हों और जिन्हें चुनाव प्रबंधन का अनुभव हो। CEC का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो।
CEC को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के समकक्ष सेवाएं और लाभ प्राप्त होते हैं।
हटाने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 324(5) और अनुच्छेद 124(4) के तहत होती है। इसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से ‘दुराचार’ या ‘अक्षमता’ के आधार पर प्रस्ताव पारित किया जाना आवश्यक है। यह प्रक्रिया बेहद कठिन और जटिल मानी जाती है ताकि संवैधानिक पदों की गरिमा बनी रहे और राजनीतिक हस्तक्षेप से सुरक्षा मिल सके।
विवाद की पृष्ठभूमि
7 अगस्त को संसद में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने दावा किया था कि बेंगलुरु के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में लगभग एक लाख “फर्जी मतदाता” पाए गए हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इसी तरह के पैटर्न का इस्तेमाल कर देशभर में चुनाव परिणामों को प्रभावित किया गया।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वे निराधार हैं और राहुल गांधी से मांग की कि वे इन दावों पर शपथपत्र प्रस्तुत करें या फिर सार्वजनिक रूप से माफी मांगें।
विपक्ष ने CEC ज्ञानेश कुमार की प्रतिक्रिया को न केवल अपर्याप्त बताया बल्कि यह भी आरोप लगाया कि आयोग “वास्तविक जांच” से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहा है।
रविवार को विपक्षी दलों द्वारा जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया, “चुनाव आयोग अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को निभाने में पूरी तरह असफल रहा है… यह अब स्पष्ट हो चुका है कि आयोग का नेतृत्व किसी भी प्रकार की स्वतंत्र जांच को रोकने और सत्ता पक्ष के हित में काम करने में लगा है।”
क्या होगा आगे?
अब सबकी निगाहें संसद पर टिकी हैं जहां यदि विपक्ष प्रस्ताव लाता है और उसे पर्याप्त समर्थन मिलता है, तो यह भारत के संवैधानिक इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना हो सकती है। हालांकि, मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए यह देखना होगा कि विपक्ष अपने इस प्रयास में कितना सफल होता है।