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गाय की चर्बी के कारतूस विवाद से शुरू हुआ संतावन का गदर : मंगल पाण्डेय

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में 1857 की क्रान्ति को सब जानते हैं। यह एक ऐसा सशस्त्र संघर्ष था जो पूरे देश में एक साथ हुआ। इसमें सैनिकों और स्वाभिमान सम्पन्न रियासतों ने हिस्सा लिया। असंख्य प्राणों की आहूतियाँ हुईं थी। इस संघर्ष का सूत्रपात करने वाले स्वाभिमानी सिपाही मंगल पाण्डेय थे।

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भारत की आत्मा को जीवंत करने वाला कलाकार: मनोज कुमार

मनोज कुमार की पहचान उनकी देशभक्ति की फ़िल्में बनी, मनोज कुमार ने अपने करियर में देशभक्ति को अपनी फिल्मों का मुख्य आधार बनाया। उनकी फिल्में केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं थीं, बल्कि वे समाज को जागरूक करने और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने का माध्यम भी बनीं। “शहीद” में भगत सिंह की शहादत, “उपकार” में किसान और जवान की एकता, “पूरब और पश्चिम” में भारतीय संस्कृति की महिमा, और “क्रांति” में स्वतंत्रता संग्राम की भावना को उन्होंने पर्दे पर जीवंत किया।

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एक साहसी योद्धा की अमर कहानी : झलकारी बाई

न तो स्वयं के लिये राज्य प्राप्ति की चाह थी और न अपना कोई हित। पर उन्होंने संघर्ष किया और जीवन की अंतिम श्वांस तक किया। वे जानतीं थीं कि उनके संघर्ष का अंत विजय नही है अपितु जीवन का  बलिदान है। फिर भी उन्होंने प्राणपण का संघर्ष किया और रानी लक्ष्मीबाई सुरक्षित कालपी पहुँचाया।

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भारतीय पुरातत्व के अग्रदूत डॉ. हरिभाऊ वाकणकर

डाक्टर हरिभाऊ वाकणकर की गणना संसार के प्रमुख पुरातत्वविदों में होती है । उन्होंने भारत के विभिन्न वनक्षेत्र के पुरातन जीवन और भोपाल के आसपास लाखों वर्ष पुराने मानव सभ्यता के प्रमाण खोजे । भीम बैठका उन्ही की खोज है । उनके शोध के बाद विश्व भर के पुरातत्वविद् भारत आये और डाक्टर वाकणकर से मार्गदर्शन लिया।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा केशव हेडगेवार : विशेष आलेख

1929 में डाॅ हेडगेवार काँग्रेस के लाहौर अधिवेशन में सम्मिलित हुये। इसी अधिवेशन में पहली बार पूर्ण स्वराज्य का संकल्प पारित हुआ था। लाहौर से लौटकर डाॅ हेडगेवार ने सभी स्थानों की यात्रा की और सभी संघ शाखाओं में पूर्ण स्वराज्य का संकल्प पारित कराया। 1930 तक महाराष्ट्र के अधिकांश स्थानों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विस्तार हो गया था।

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मेरा रंग दे बसंती चोला : 23 मार्च शहीद दिवस

क्राँतिकारियों का पूरा जीवन राष्ट्र के स्वत्व, स्वाभिमान और साँस्कृतिक चेतना केलिये समर्पित रहा। जब ये महान क्राँतिकारी बलिदान हुये तब भगतसिंह और सुखदेव की आयु तेइस वर्ष और  राजगुरु की आयु बाईस वर्ष थी। वे इतनी कम आयु में उन्होंने क्राँति का जो उद्घोष किया, उसकी गूँज लंदन तक हुई।

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