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वैदिक पुनर्जागरण के अग्रदूत स्वामी दयानन्द सरस्वती

स्वामी जी भले असमय संसार छोड़ गये पर उनकी शिक्षाएँ, संदेश और संस्था ‘आर्यसमाज’ के माध्यम से वैदिक आन्दोलन भारतीय इतिहास में अमर है।

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वनवासी संघर्ष के नायक : क्रांतिकारी तिलका मांझी

ऐसे ही एक बड़े संघर्ष का विवरण संथाल परगने में मिलता है। जिसके नायक वनवासी तिलका मांझी थे। जिन्हें अंग्रेजों ने चार घोड़ो से बाँध कर जमीन पर घसीटा था। फिर भी वीर विद्रोही तिलका ने समर्पण नहीं किया।

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गीतों की शब्द शक्ति से राष्ट्रभक्ति और स्वाभिमान जगाने वाले कवि

सैनिकों के बलिदान पर उनका गीत “ऐ मेरे वतन के लोगो, जरा आँख में भर लो पानी” की रचना की। जिस भाव से प्रदीप ने इस गीत की रचना की उसी भावना से लता जी ने गाया। इस गीत के बोल आज भी हृदय को छू जाते हैं। यह गीत देश भक्ति के गीतों में अग्रणी माना गया ।

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बाजीराव पेशवा के सामने 70 हजार मुगल सैनिकों का समर्पण

मुगल सेना लगभग सत्तर हजार सैनिकों की एक संयुक्त सेना थी जिसमें मुगल, निजाम, अवध और भोपाल रियासतों के सैनिक थे। सबका समर्पण हुआ। मराठा सेना ने मुगल सेना की तोपें और कुछ हथियार जब्त किये तथा युद्ध व्यय के रूप में पचास लाख रुपया भी वसूल किया।

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धर्म, बलिदान और वीरता के प्रतीक : गुरु गोविंद सिंह

गुरु गोविंद सिंह का जीवन धर्म, न्याय और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए संघर्षों से भरा था। उन्होंने मुगल शासकों और स्थानीय शासकों के अत्याचारों के खिलाफ सिख समुदाय को संगठित किया।

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जिन्हें जिन्दा कोल्हू में पीसा था औरंगजेब के किलेदार ने..

कुछ विद्वानों का मानना है कि बाबा मोतीराम मेहरा और उनके परिवार को 30 दिसम्बर 1704 को पकड़ा गया और एक जनवरी 1705 को कोल्हू में पीसा गया। जबकि कुछ का मानना है कि 30 दिसंबर को वजीर खान को खबर लगी, 31 दिसम्बर को परिवार सहित पकड़ कर लाया गया, एक जनवरी को पेशी हुई और तीन जनवरी 1705 को कोल्हू में पीसा गया।

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