नींव हूँ बुनियाद हूं
नींव हूँ बुनियाद हूं
हां मैं ही विकास हूं।
बाग में उद्यान में
संसद के हर मुकाम में
श्रमित धरोहर हूँ।
हां मैं मजदूर हूं।
नींव हूँ बुनियाद हूं
हां मैं ही विकास हूं।
बाग में उद्यान में
संसद के हर मुकाम में
श्रमित धरोहर हूँ।
हां मैं मजदूर हूं।
बात उस समय की है जब हम नागपुर आए थे। नई जगह, नए लोग और अलग भाषा। सबकुछ अलग सा
Read moreपांव के नीचे धरती जलती, सिर ऊपर आकाश,
जब जब आता है यह मौसम करने यहां प्रवास
“भाषा संस्कृति है और संस्कृति खेती है,जिसकी फसल साहित्य है। लेकिन साहित्य संदेश देता है, उपदेश नहीं।” ये शब्द प्रसिद्ध भाषाविद और विद्वान साहित्यकार डा.चित्तरंजन कर के हैं ,जो वे विगत दिनों तिल्दा-नेवरा में आयोजित समन्वय साहित्य परिवार छत्तीसगढ़ के 29 वें वार्षिक महोत्सव में मुख्य अभ्यागत की आसंदी से बोल रहे थे।
Read moreछत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया। एमन सरल सुभाव के होथे उन मिलनसार होथे, बासी खाके खेत म अन्न उगाथे,अपन घर पहुना ल बासी खवाके प्रेम से बिदा करथे, खुदे उघरा रइथे , आने ल तन ढंके बर ओन्हा देथें। छलकपट कभू नइ जानै फेर सच कहे बर फुर बोलिक होथे , देस भक्ति के रूप म उन तिरंगा झंडा के गुणगान करथें
Read moreसंकेत साहित्य समिति द्वारा वृंदावन हॉल रायपुर में कल शनिवार को भाषाविद् ,संगीतज्ञ एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.चित्तरंजन कर के मुख्य आतिथ्य, वरिष्ठ व्यंग्यकार गिरीश पंकज की अध्यक्षता और रामेश्वर शर्मा ,सुरेंद्र रावल ,लतिका भावे तथा संजीव ठाकुर के विशिष्ट आतिथ्य में वासंती काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।
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