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भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक अनसुनी वीरगाथा

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सन् 1857 में रानी अवंतीबाई लोधी को प्रथम महिला वीरांगना के रूप में माना जाता है, जिन्होंने स्वदेश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। 20 मार्च 1858 को रानी अवंतीबाई ने अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए।

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डॉक्टरों और नर्सों की प्रेरणास्रोत फ्लोरेन्स नाइटेंगल

आधुनिक अस्पतालों में नर्सिंग यानी मरीज़ों की सेवा -सुश्रुषा को मानवता की सेवा का पर्याय बनाया फ्लोरेन्स नाइटिंगेल ने, जिनकी आज पुण्यतिथि है। उन्हें डॉक्टरों और नर्सों की प्रेरणास्रोत भी कहा जा सकता है।

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क्या कभी आर्यों ने द्वविड़ों पर हमला किया था?

भारत के आजाद होने के बाद देश के नागरिको को अंग्रेजों के षडयंत्र से मुक्त क्यों नहीं किया जा सका..? यह भी एक विडंबना है! बच्चे पाठ्य पुस्तक पढ़ कर यही जानते समझते हैं कि आर्य एक विदेशी आक्रणकारी हैं। इसी कारण देश में जातिगत मतभेद एवं अन्य भेद अभी भी कायम है। नये डीएनए अनुसंधान के परिणामों को पाठ्यपुस्तकों में स्थान देकर भारत नई पीढी को सत्य से अवगत कराना चाहिए।

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सहिष्णुता और राजनीति के द्वंद्व में फंसा हिन्दू समाज

एक के बाद एक लगातार हिन्दुओं को राजनीतिक दाँव-पेंच में कसा जा रहा है। उनके अधिकारों को खत्म करते कानून बनाए गये। अंग्रेजों ने तो ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति पर चलकर हिन्दुओं पर जैसा कहर बरपाया उसकी मिसाल नहीं दी जा सकती। अंग्रेजों ने हिन्दू शब्द को आयातित बतलाकर हमारे इतिहास में उतार दिया।

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सनातन मूल्यों से समृद्ध होता भारत : एक नया युग

भारत जो किसी वक्त में सोने की चिड़िया रहा है जिसका किसी वक्त में वैश्विक अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान

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स्वदेशी और स्त्री शिक्षा की प्रणेता : दुर्गाबाई देशमुख

दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई 1909 को आंध्र प्रदेश के काकीनाड़ा क्षेत्र के अंतर्गत राजामुंद्री में हुआ था। उनके पिता रामाराव भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। जब वे दस वर्ष की थीं, तब पिता का निधन हो गया। उनकी माता कृष्णावेनम्मा भी स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी थीं और कांग्रेस की सचिव बनीं।

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