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अंग्रेजियत के विरुद्ध संघर्ष और भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पण: माधवहरि अणे

अणे पर लोकमान्य तिलक जी का प्रभाव उनके समाचारपत्र ‘मराठा’ और ‘केसरी’  के कारण पड़ा।  वे इन पत्रों के नियमित पाठक थे। 1914 में जब तिलक जी जेल से छूटकर आये तो अणे जी उनसे मिलने वालों में शामिल थे। इसी भेंट के बाद उनके तिलक जी से संबंध बने और वे तिलक जी के निकट आ गये।

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राष्ट्रीय एवं वैश्विक चुनौतियों का समाधान : कृष्ण और गीता

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए- ‘ धर्मो रक्षति रक्षितः। ‘ हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म भी हमारी रक्षा करेगा। धर्म के अन्तर्गत व्यक्ति का शरीर, परिवार, समाज, राष्ट्र, विश्व, चराचर जगत् और विश्व चेतना का समावेश है। हम शरीर धर्म की पालना करेंगे तो शरीर हमारी रक्षा करेगा। परिवार धर्म के पालन से परिवार हमारी रक्षा करेगा।

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एक विस्मृत क्रांतिकारी की कहानी

जीवन यापन के लिये भिक्षावृत्ति तक करनी पड़ी। स्वतंत्रता के बाद किसी ने उनकी खबर नहीं ली। उन्होंने अपना पूरा जीवन स्वाधीनता संघर्ष को अर्पण कर दिया था। उन्होंने सशस्त्र संघर्ष में भी भाग लिया और अहिंसक आंदोलन में भी। किन्तु स्वतंत्रता के बाद उनके सामने अपने जीवन  जीने के लिये ही नहीं रोटी तक का संकट आ गया था। पेट भरने के लिये भिक्षावृत्ति भी की और अंत में  सड़क के किनारे लावारिश अवस्था में अपने प्राण त्यागे।

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धर्मांतरण विरोधी आंदोलन के नायक स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की कहानी

स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती ने वनवासी क्षेत्रों में सक्रिय ईसाई मिशनरियों और माओवादी तत्वों के खिलाफ कार्य किया, जिससे उनके ऊपर कई बार हमले हुए। 23 अगस्त 2008 को, स्वामी जी और उनके चार शिष्यों की निर्मम हत्या कर दी गई, जिसे ईसाई मिशनरियों और माओवादियों का षड्यंत्र माना गया। स्वामी जी ने लगभग चालीस वर्षों तक वनवासियों के मतान्तरण और माओवादी गतिविधियों के विरुद्ध संघर्ष किया, जिसके कारण उन्हें कई बार धमकियों और हमलों का सामना करना पड़ा।

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छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता का इतिहास और ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ पत्रिका

जनवरी 1900 में प्रारंभ यह छत्तीसगढ़ की पहली मासिक पत्रिका थी, जिसके माध्यम से राज्य में पत्रकारिता की बुनियाद रखी गयी। पंडित वामन बलीराम लाखे जी इस पत्रिका के प्रकाशक थे। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडित माधवराव सप्रे और उनके सहयोगी रामराव चिंचोलकर ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ के सम्पादक थे।

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स्वाधीनता संग्राम से सामाजिक जागरण तक का सफर

काका कालेलकर राष्ट्रीय मराठी डेली के संपादकीय विभाग से जुड़े और यहाँ से उनका पत्रकारीय जीवन आरंभ हुआ । इसके बाद 1910 में वे गंगानाथ विद्यालय में शिक्षक बने । लेकिन 1912 में अंग्रेज सरकार ने स्कूल को बंद करवा दिया । गुजरात से महाराष्ट्र तक की अपनी जीवन यात्रा में उन्होंने भारतीय जनों की दुर्दशा देखी । उन्हें अंग्रेजों पर गुस्सा बहुत आता था ।

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