लोक-संस्कृति

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शक्ति, संरक्षण और संस्कृति का प्रतीक : रक्षा सूत्र

भविष्य पुराण में बताया गया है कि रक्षा कवच बांधने की प्रथा की शुरूवात महाराज इंद्र की पत्नी शचि ने किया था। जब देव और दानवों के बीच युद्ध चल रहा था तब इंद्राणी ने अपने पति की विजय कामना के लिए उसके दाहिने हाथ में रक्षा सूत्र और चांवल-सरसों को बांधकर उनकी सुरक्षा और विजय की कामना की थी जिससे वे असुरों पर विजय प्राप्त कर सके थे।

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छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर भोजली तिहार

भोजली पर्व सावन महीने में मनाया जाता है। यह पर्व उस प्रकृति के प्रारंभिक सौंदर्य की सुखानुभूति की अभिव्यक्ति है, जिसमें कोई बीज अंकुरित होकर अपने अलौकिक स्वरूप से सृष्टि का श्रृंगार करता है। श्रावण के शुक्ल पक्ष में सप्तमी या अष्टमी के दिन किशोरियों द्वारा गेहूं के दाने पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ बोए जाते हैं। ये उगे हुए पौधे ही भोजली देवी के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं।

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विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में नाग एवं जैव विविधता संरक्षण

नागों की उपस्थिति एवं उनकी पूजा प्राचीन सभ्यताओं एवं संस्कृतियों महत्व स्थान रखती है। भले ही उनकों अलग-अलग रुपों या कारणों से पूजा जाता हो परन्तु वे मानव सभ्यताओं में विशेष स्थान रखते हुए वर्तमान में भी विशिष्ट बने हुए हैं।

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श्रावणी तीज की परम्परा एवं महत्व

हरियाली तीज के दिन महिलाएं हरे रंग के कपड़े और चूड़ियां पहनती हैं और विशेष श्रृंगार करती हैं। इसे महिलाओं का दिन कहा जाता है और इस दिन भाई अपनी बहन के ससुराल जाकर उसका सिंधारा लेकर आते हैं और बहन को मायके लेकर आते हैं। इस दिन का इंतजार हर महिला पूरे साल करती हैं और सुहागिनें खास शॉपिंग करती हैं ताकि वे तैयार होकर और भी खूबसूरत नजर आएं।

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