लोक-संस्कृति

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तैलिक से साहू तक विकास यात्रा : राजिम जयंती विशेष

छत्तीसगढ़ के प्रमुख तीर्थ राजिम लेचन मंदिर परिसर में तेलिन मंदिर है जो मूलतः शिवालय है और इसकी भित्ती में एक सती स्तंभ जड़ा हुआ है। इस सती स्तंभ में दो परिचारकों या एक स्त्री एवं पुरूष के मध्य पद्मासनस्थ एक दपंति का उत्कीर्णनन किया गया है। स्तंभ के निचले भाग में कोल्हू  (घानी) का उत्कीर्णनन है इस सती स्तंभ को राजिम नामक तेली व्यवसायी एवं भगवत भक्त से जोड़ा  जाता है।

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ओड़िया भाषा का चलित महानाटक धनु-जात्रा 

स्वर्गीय श्री सुरेन्द्र प्रबुद्ध ने भारतीय नाट्य साहित्य के इतिहास के  तथ्यात्मक अध्ययन के आधार पर अपने आलेख में यह भी बताया था कि ओड़िशा की ‘धनुजात्रा” का इतिहास पांच सौ वर्षों से अधिक पुराना नहीं है। भरत मुनि भारतीय नाट्य साहित्य के आदि पुरुष और प्रवर्तक थे।

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भगवान राम और माता सीता के दिव्य विवाह का पर्व : विवाह पंचमी

विवाह पंचमी का मुख्य उद्देश्य भगवान राम और माता सीता के आदर्श दांपत्य जीवन को प्रस्तुत करना है। यह समाज को यह संदेश देता है कि वैवाहिक जीवन का आधार प्रेम, विश्वास, और आपसी सहयोग होना चाहिए। यह पर्व परिवार और समाज में सामंजस्य बनाए रखने के महत्व को भी रेखांकित करता है।

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पंडित मालिकराम भोगहा का साहित्यिक अवदान

उड़िया कवि सरलादास ने 14 वीं शताब्दी में लिखा था कि भगवान जगन्नाथ को शबरीनारायण से पुरी ले जाया गया है। यहां भगवान नारायण गुप्त रूप से विराजमान हैं और प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को सशरीर विराजते हैं। इस दिन उनका दर्शन मोक्षदायी होता है।

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सूर्योपासना पर्व छठ पूजा का सांस्कृतिक, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

सूर्य को वैदिक साहित्य में ‘सूर्य नारायण’ या ‘सविता’ के रूप में पूजा जाता है। ऋग्वेद में सूर्य को जीवनदायिनी शक्ति का प्रतीक माना गया है, और उसे सभी प्राणियों के अस्तित्व का आधार बताया गया है।

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गोर्वधन पूजा का कारण एवं महत्व

आज गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथाएं है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है।

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