लोक-संस्कृति

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अलवार संतों की भक्ति में श्रीराम

ईस्वी सदी के आरम्भ में रचित सिलपट्टीकरम, जो तमिल साहित्य की पांच श्रेष्ठ कृतियों में से है, उसमे भी रामायण के अनेक सन्दर्भ मिलते हैं. लेखक ने इसमें राम को विष्णु से पहचान करते हुए लिखा है कि – भगवन विष्णु के पुण्य-चरण जिनसे उन्होंने त्रिविक्रम के रूप में ब्रह्माण्ड को नापा था, वे आज वन में लक्ष्मण के साथ चलते हुए रक्त-रंजित हो गए हैं.

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बन वसंत बरनत मन फूल्यौ : बसंत पंचमी विशेष

बसंत ऋतु कवियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है। कालिदास से लेकर आधुनिक हिंदी कवियों तक, सभी ने अपने काव्य में इस ऋतु की छटा बिखेरी है। बसंत को प्रेम, सौंदर्य, उल्लास और नवजीवन का प्रतीक माना जाता है, जो काव्य और साहित्य को मधुरता प्रदान करता है। बसंत पंचमी केवल ऋतु परिवर्तन का प्रतीक ही नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा है। इसका संबंध ज्ञान, प्रेम, सौंदर्य और उल्लास से है। यह पर्व पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति की महानता को दर्शाता है।

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सामाजिक समरसता और भारतीय सांस्कृतिक एकता का महोत्सव महाकुंभ

भारत के इतिहास में जहाँ तक दृष्टि जाती है कुंभ के आयोजन का संदर्भ मिलता है। मौर्यकाल में भी और शुंग काल में भी। गुप्तकाल में तो कुंभ का बहुत विस्तार से वर्णन मिलता है। गुप्तकाल के इस विवरण में ग्रहों की स्थिति के अनुसार कुंभ के आयोजन का उल्लेख है।

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आस्था, संस्कृति और आर्थिक विकास का संगम महाकुंभ 2025

हिंदू सनातन संस्कृति के अनुसार कुंभ मेला एक धार्मिक महाआयोजन है जो 12 वर्षों के दौरान चार बार मनाया जाता है। कुंभ मेले का भौगोलिक स्थान भारत में चार स्थानों पर फैला हुआ है और मेला स्थल चार पवित्र नदियों पर स्थित चार तीर्थस्थलों में से एक के बीच घूमता रहता है

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धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण : मकर संक्रांति

हालांकि लोहड़ी मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। जिसमें आग जलाकर उसकी परिक्रमा करते हुए पूजा की जाती है। साथ ही रेवड़ी और मूंगफली बांटे जाते हैं। केरल में मकर विलक्कू के दिन लोग सबरीमाला मंदिर जाकर मकर ज्योति के दर्शन करते हैं।

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छत्तीसगढ़ का छेरछेरा पुन्नी तिहार एवं सामाजिक महत्व

छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृतिक विविधता और लोक परंपराओं के लिए जाना जाता है। पौष पूर्णिमा को सुबह से ही गाँव गाँव में बच्चों की टोली घूमने लगती है और  छेरिक छेरा छेर बरकतीन छेर छेरा। माई कोठी के धान ल हेर हेरा, की पुकार गूंजने लगती है। क्योंकि यहाँ के पर्व-त्यौहार न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का हिस्सा हैं, बल्कि ये समाज को एकजुट करने, प्रकृति का सम्मान करने और सामूहिकता को बढ़ावा देने का माध्यम भी हैं।

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