स्वर्णमृगी सपनों के पाखी – एक समीक्षा
‘स्वर्णमृगी सपनों के पाखी’ नामक यह काव्य संग्रह इसकी रचयिता डॉ शुभदा पाण्डेय के हाथों से भेंट स्वरूप मुझे प्राप्त हुआ। गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में स्थान पाए इस काव्य संग्रह के लिए डॉ शुभदा पाण्डेय बधाई के पात्र हैं।
यह काव्य संग्रह इसलिए अनूठा है कि इसमें विश्व के कोने-कोने के एक सौ ग्यारह पक्षियों के चित्र सहित चित्रात्मक वर्णन और साथ ही अनेक सामाजिक समस्याओं का उल्लेख है।
इन पक्षियों के नाम, प्रवृत्ति, रहन-सहन और आवास स्थान के गहन अध्ययन के पश्चात् ही यह काव्य संग्रह रचा गया है और कवयित्री के अनुसार इसके लिए उन्हें एक वर्ष का समय लगा। लमुनिया, ट्वीट, दहियर, सिकंदर, पेंग्विन, अवाबील, बया, जाजुराना, फ्लैमिंगो, कीवी, किंगफिशर जैसे विश्व के एक सौ ग्यारह पक्षियों की जानकारी प्राप्त कर उनपर काव्य सृजन निश्चय ही एक दुष्कर कार्य है।
इन कविताओं की एक अन्य विशेषता यह है कि कवयित्री ने पक्षियों की जानकारी के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण, भ्रूण हत्या, नारी शोषण, कोरोना संक्रमण, मजदूरों की समस्या जैसे समाज की अनेक ज्वलंत समस्याओं पर प्रकाश डाला है। कहीं-कहीं ये मनोरंजक और बाल कविताओं के समरूप भी बन पड़ी हैं। पर्यावरण प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते हुए अपनी बटेर कविता में कवयित्री ने इसका समाधान ढूंढने का भी प्रयास किया है । यथा
“एक दिन दिल्ली चला बटेर, सूट-बूट टाई बन शेर ।
सोचा सीधा संसद जाएं, अपना जो मंतव्य सुनाएं ।।
नारा पर्यावरण बचाओ पर ज्यादा मत हमें सताओ ।
शौक हो गया जंगल आना, पहुंचे भीड़ हाथ लिए खाना ।।
आवाजाही इतनी ज्यादा तोड़ रही वन की मर्यादा ।
जंगल को मैदान बनाया, दूर कहां जंगल बच पाया?
हमें दे रहे पिज्जा बर्गर, क्या जीएंगे जीवन मरकर ?
मोबाइल से हमें रिझाते…..गंदा मेरा घर कर जाते ।।
हम सब करते रोज मंत्रणा क्यों सह लेंगे इतनी यंत्रणा ?
जंगल है तो जीव दिखे हैं, जो कुछ भी दो-चार बचे हैं ।। ”
कवयित्री अपने अंतर्मन में इसकी सृष्टि की चिंगारी जलाने का श्रेय अपनी प्रोफेसर डॉ चित्रलेखा को देती है, जिन्होंने उन्हें पक्षियों पर रिकार्ड बनाने योग्य कविताएं रचने का निर्देश दिया था। इस पर शुभदा जी कहती हैं: “काम कठिन तो था ही पर आदेश को फौजी की तरह मानने की आदत कारगर हुई और भूत की तरह सवार हो गई।
जाड़े के दिनों में दिन छोटे और बड़े लक्ष्य को लेकर जीना….एक नई अनुभूति थी । मेरे अंदर का जुझारूपन जागा और….मेरी रातों की नींद गायब थी और मैं अपने ध्येय वाक्य ‘राम काज कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम’ के अनुरूप काम करती रही। मुझे कितना आकाश दिया है इन खगेशों ने बता नहीं सकती। यहां से नित्य मेरे मानस के कागभुशुण्डी और गरुड़ जी का पदार्पण होता । श्री मद् भागवत का शुक अभी भी मेरे साथ है ।”
कवयित्री पवनपुत्र हनुमान जी की अनन्य भक्तिन है और अपने संग उनकी मूर्ति हर जगह ले चलती है। पक्षियों पर लिखते-लिखते उन्हें अचानक भ्रम हो उठा कि इसमें अपने इष्टदेव पवनपुत्र का स्थान कहां है! पर इसका उत्तर भी उन्हें स्वतः अपने मानस पटल पर प्राप्त हुआ यथा:
‘जीवजंतु जे गगन उड़ाहीं ।’
जल बिलोकि तिन कर परिछाहीं । ।
यानि पवन पर आधिपत्य जमानेवाले ये जीव सब पवनपुत्र हनुमान के कृपापात्र ही हैं।
अंत में कवयित्री मन ही मन संतुष्ट होती हैं कि उन्होंने अपने स्वर्गीय पतिदेव प्रोफेसर नित्यानंद पाण्डेय जी की एक वैश्विक कार्य करने की मनोकामना की पूर्ति कर दी है और उनकी पक्षीजगत पर इस कृति ने एक वैश्विक कीर्तिमान स्थापित कर एक अनूठा श्रेय प्राप्त किया है।
काव्य कृति : डॉ. शुभदा पाण्डेय, प्रकाशक : सर्वभाषा ट्रस्ट, नई दिल्ली, मूल्य : रु.450/-