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संविधान में समाया भारत का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन : संविधान दिवस विशेष

भारतीय संविधान संसार में सबसे विशिष्ट और सबसे व्यापक है। यह अपने प्रावधानों के साथ अपने बाईस चित्रों से भी जाना जाता है। इन चित्रों में भारत राष्ट्र के ऐतिहासिक गौरव, सांस्कृतिक विशिष्टता और भविष्य के जीवन की प्रेरणा की झलक भी है।

संविधान सभा का गठन अंग्रेजी काल में ही हो गया था। इसमें भारत की सभी रियासतों, राजनीतिक दलों, कुछ सामाजिक संगठनों, विषय विशेषज्ञों तथा सरकार के मनोनीत प्रतिनिधि शामिल किए गए थे। संविधान सभा के गठन की प्रक्रिया सितंबर 1946 से आरंभ हुई और नवंबर 1946 में पूरी होकर 6 दिसंबर 1946 को विधिवत घोषणा कर दी गई थी। संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई। इसके कुल सदस्य 389 थे। भारत विभाजन के बाद संविधान सभा के कुछ सदस्य पाकिस्तान चले गए। तब सदस्य संख्या घटकर 299 रह गई थी।

संविधान सभा के गठन के साथ पहले डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष बनाया गया। बाद में डॉ. राजेंद्र प्रसाद स्थाई अध्यक्ष चुने गए। संविधान के प्रावधान निश्चित होने के बाद डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में प्रारूप समिति बनी। इस समिति में कुल सात सदस्य थे। 26 नवंबर 1949 को संविधान स्वीकार किया गया और 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ। संविधान तैयार करने में कुल 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिन लगे। भारतीय संविधान में संसार के विभिन्न देशों के सभी आदर्श प्रावधान शामिल किए गए हैं।

संविधान की मूल प्रति टाइपिंग या प्रिंटेड नहीं है। हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हाथ से लिखी गई है। इसे प्रेम बिहारी रायजादा ने लिखा है। भारतीय संविधान कुल बाईस भागों में प्रस्तुत किया गया है। प्रत्येक भाग में एक विशिष्ट चित्र है। पृष्ठ के ऊपर पहले चित्र उकेरा गया, फिर उसके नीचे प्रावधान लिखे गए। इस प्रकार संविधान के बाईस भागों में बाईस चित्र हैं। इन चित्रों में भारत का ऐतिहासिक गौरव, सांस्कृतिक विशिष्टता, कर्तव्य बोध और प्रकृति की विविधता का चित्रण है।

संविधान निर्माता संवैधानिक प्रावधानों के साथ इन चित्रों के माध्यम से शासन और समाज जीवन को आदर्श शैली का संदेश भी देना चाहते थे। इसी भाव की झलक इन चित्रों में है। इसीलिए भारतीय वाङ्मय के ऐसे प्रतीकों और नायकों के चित्रों का चयन किया गया, जो आदर्श, कर्त्तव्यपरायणता और उच्चतम चरित्र के लिए कालजयी हैं। शौर्य, सामर्थ्य, दूरदृष्टि, संकल्पशीलता, समृद्धि आदर्श, विश्व शांति और विश्व बंधुत्व का संदेश देने वाले हैं।

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इन चित्रों का आरंभ संविधान के आवरण पृष्ठ से ही होता है। आवरण पृष्ठ पर एक राजचिन्ह और एक घोषवाक्य है। राजचिह्न के रूप में सम्राट अशोक के सिंह स्तंभ का चयन किया गया। इस सिंह स्तंभ के ऊपर धर्मचक्र और नीचे घंटे के आकार का पद्म बना है। स्तंभ के ऊपर चित्र वल्लरी में हाथी, घोड़ा, सांड और सिंह की मूर्तियां तथा उनके बीच में चक्र है। राजचिन्ह में हाथी विशालता का, सिंह शौर्य का, घोड़ा गति का और सांड सामर्थ्य का प्रतीक है। प्रगति के लिए विशालता, शौर्य, बल और गतिशीलता आवश्यक होती है। इस राजचिन्ह के साथ घोषवाक्य “सत्यमेव जयते” अंकित है। यह मुंडकोपनिषद से लिया गया है। इससे उपनिषदों की महत्ता और सत्य के प्रति निष्ठा का संदेश मिलता है। सफलता वही प्राप्त कर सकता है, जो सत्य पर अडिग रहता हो।

अंग्रेजी प्रति के आवरण को सुनहरे रंग के शतदल कमल और अन्य फूलों से सजाया गया है। यह अजंता की भित्ति चित्र शैली है। इसके बाद संविधान के प्रत्येक भाग का आरंभ चित्र से ही होता है। संविधान के पहले भाग में सिंधु घाटी सभ्यता के चर्चित प्रतीक जेबू बैल का चित्र अंकित है। इस भाग में भारतीय संघ का नाम और उसका राज्यक्षेत्र है। जेबू बैल मोहनजोदड़ो और हड़प्पा संस्कृति का प्रतीक है। यह माना जाता है कि हड़प्पा काल में जेबू बैल सदैव सक्रिय रहता था और हिंसक प्राणियों से रक्षा करता था। प्रथम भाग पर जेबू बैल का चित्र देकर संविधान सभा ने एक ऐसे राष्ट्र तंत्र की कल्पना की, जो हिंसक और अपराधी प्रवृत्ति की शक्तियों से समाज को सुरक्षित रख सके।

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संविधान के तृतीय भाग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी का चित्र अंकित है। इस भाग में मौलिक अधिकार और कर्त्तव्य का प्रावधान है। रामजी के जीवन से कुटुंब बोध, कर्त्तव्य बोध और संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने की सीख मिलती है। चित्र में रामजी, सीताजी और लक्ष्मणजी पुष्पक विमान से अयोध्या लौट रहे हैं। रामजी की लंका पर विजय शक्ति, वीरता और युद्ध कौशल का अद्भुत संदेश है। यह चित्र सफलता प्राप्त करके लौटने का प्रतीक भी है। स्वतंत्रता संग्राम में जनजागरण के लिए रामराज्य की कल्पना की गई थी। स्वतंत्रता के बाद शासन व्यवस्था रामराज्य के आदर्शों के अनुरूप चले, संभवतः यह स्मरण कराने संविधान सभा ने यह चित्र जोड़ा।

एक चित्र वैदिक काल के गुरुकुल का है। यह संविधान के भाग दो में है। इस भाग का नाम नागरिकता है। इसमें अग्नि, इंद्र और सूर्य का पूजन दिखाई देता है। इसमें दो संदेश हैं। श्रेष्ठ नागरिक वही होगा, जो शिक्षा और आदर्श सिद्धांतों का पालन करता है। विद्यार्थी जीवन में जो सरलता, संकल्पशीलता और एकाग्र चित्त से आगे बढ़ता है, वही श्रेष्ठ नागरिक बनता है।

संविधान निर्माताओं ने यदि “सत्यमेव जयते” घोषवाक्य लिया, तो सत्य की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश देते हुए चित्र भी उकेरा। यह संविधान के भाग चार में है, जिसमें राज्य की नीति के निदेशक तत्व बताए गए हैं। चित्र का संदेश है कि सत्य शाश्वत होता है, लेकिन उसकी रक्षा के लिए संघर्ष भी आवश्यक है। यदि संघर्ष न किया जाए, तो असत्य और आसुरी शक्तियां प्रभावी हो जाती हैं। सत्य की रक्षा के लिए शक्ति, शास्त्र, शौर्य और रणनीति का संतुलन आवश्यक है। यही गीता का सार है।

संविधान के भाग पांच में भगवान बुद्ध का चित्र है। इस भाग का नाम संघ है। इसमें बुद्ध लोगों को ज्ञान देते दिखाई देते हैं। बुद्ध की संपूर्ण शिक्षा पूर्णता का संदेश देती है, और यह पूर्णता बाह्य साधनों से नहीं, बल्कि आत्मचेतना से आती है।

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राज्यों को संविधान में तीन अनुसूचियों में रखा गया है—क, ख और ग। पहली अनुसूची “क” संविधान के भाग छह में है, जिसमें भगवान महावीर ध्यानस्थ मुद्रा में चित्रित हैं। दूसरी अनुसूची “ख” के अधिकार एवं कर्त्तव्य संविधान के भाग सात में हैं, जिसमें सम्राट अशोक भिक्षुओं के साथ बौद्ध धर्म का प्रसार करते दिखते हैं। भाग आठ में हनुमानजी का चित्र है। इसमें वे माता सीता की खोज में लंका जाते दिखते हैं। जैसे बुद्ध ने आत्मचेतना से सत्य को पाया, अशोक ने भीतर से चेतना जगाई और हनुमान ने विवेक से मार्ग बनाकर लक्ष्य पाया। राज्यों को भी आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनने का यही संदेश दिया गया है।

संविधान में भागीरथ की तपस्या और गंगा अवतरण का एक चित्र है, जो संकल्प और जल संरक्षण का संदेश देता है। भगवान शिव की नटराज छवि मोह रहित जीवन का संदेश देती है। इसके अलावा मौर्य काल, गुप्त काल, विक्रमादित्य दरबार, नालंदा विश्वविद्यालय, ओड़िया मूर्तिकला, शिवाजी महाराज, गुरु गोविंद सिंह, रानी लक्ष्मीबाई, दांडी यात्रा, नोआखली में गांधीजी, हिमालय, रेगिस्तान, महासागर, अकबर दरबार और टीपू सुल्तान के चित्र भी शामिल हैं।

इन चित्रों में संपूर्ण भारत का भौगोलिक और ऐतिहासिक स्वरूप समाया है। यह एक आदर्श, सशक्त और समृद्ध राष्ट्रीय जीवन का संदेश देता है। संसार के किसी संविधान में इतने चित्र नहीं हैं। सभी चित्र शांति निकेतन, कलकत्ता की कला संकाय के विद्यार्थियों ने आचार्य नंदलाल बोस के मार्गदर्शन में उकेरे। संविधान की यह चित्र-श्रृंखला भारत राष्ट्र को सनातन परंपराओं के अनुरूप राष्ट्र जीवन का संदेश देती है।

समय के साथ संविधान में अब तक 127 संशोधन हो चुके हैं। कुछ संशोधनों ने सनातन परंपरा की बजाय अन्य पंथों और परंपराओं को प्रभावित किया, लेकिन संविधान की मूल रचना, उसके प्रावधान और उसके प्रेरक चित्र एक सशक्त, समृद्ध और सनातनी राष्ट्र के स्वरूप का संदेश देते हैं।