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भारत-अमेरिका संबंधों पर जयशंकर का रुख: तेल, व्यापार और कूटनीति पर दो टूक

नई दिल्ली — विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शनिवार को आर्थिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फोरम 2025 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति पर खुलकर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि ट्रंप एकमात्र ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति रहे हैं जो न केवल विदेश नीति, बल्कि घरेलू मामलों को भी बेहद सार्वजनिक ढंग से संचालित करते हैं।

जयशंकर ने कहा, “हमने ऐसा अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं देखा जो अपनी नीतियों को इतनी सार्वजनिक तौर पर संचालित करता हो। ये सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, पूरी दुनिया इसका सामना कर रही है।”

ट्रंप के टैरिफ फैसले पर भी दी प्रतिक्रिया

जयशंकर ने बताया कि भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने को लेकर ट्रंप प्रशासन द्वारा टैरिफ (शुल्क) बढ़ाने का फैसला अचानक और सार्वजनिक रूप से लिया गया। भारत को इस बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं दी गई थी। उन्होंने कहा कि ट्रंप का टैरिफ को सिर्फ व्यापार नहीं बल्कि अन्य राजनीतिक मुद्दों से जोड़ना एक नई रणनीति है।

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“कई बार पहली घोषणा सार्वजनिक रूप से होती है, बाद में ही संबंधित पक्ष को जानकारी मिलती है। यह एक असामान्य तरीका है,” जयशंकर ने कहा।

भारत-अमेरिका के बीच तीन मुख्य मुद्दों को बताया

जयशंकर ने भारत और अमेरिका के संबंधों में तीन अहम मुद्दों की ओर इशारा किया:

1. व्यापार

जयशंकर ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ताएं जारी हैं, लेकिन भारत अपने किसानों और लघु उत्पादकों के हितों से कोई समझौता नहीं करेगा।

“कुछ बुनियादी मुद्दों पर हमारी ‘रेड लाइन्स’ हैं। बातचीत बंद नहीं हुई है, लोग अब भी संपर्क में हैं,” उन्होंने कहा।

2. तेल आयात

उन्होंने कहा कि भारत पर रूसी तेल खरीद को लेकर जो सवाल उठाए जा रहे हैं, वैसे ही सवाल चीन या यूरोपीय संघ पर क्यों नहीं उठाए जाते, जो दुनिया के सबसे बड़े तेल आयातक हैं।

जयशंकर ने अमेरिकी ट्रेजरी सचिव के बयान का हवाला देते हुए कहा, “अगर बढ़ोत्तरी के प्रतिशत की बात की जा रही है, तो कुछ देश अपने प्रतिशत नहीं बढ़ा रहे क्योंकि वे ईरान से तेल खरीद रहे हैं — जिस पर अमेरिका को भी आपत्ति है।”

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उन्होंने यह भी बताया कि बाइडेन प्रशासन के साथ खुली बातचीत के बाद ही रूस से तेल खरीद पर मूल्य सीमा तय की गई थी।

3. मध्यस्थता

पाकिस्तान के साथ रिश्तों के संदर्भ में जयशंकर ने साफ किया कि भारत किसी भी बाहरी मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता।

“हमारे द्विपक्षीय मामलों में किसी तीसरे पक्ष की भूमिका की कोई आवश्यकता नहीं है,” उन्होंने कहा।

विदेश मंत्री के इस बयान से स्पष्ट है कि भारत अमेरिकी नीतियों की सार्वजनिक शैली और अनिश्चितता से सतर्क है, और अपने राष्ट्रीय हितों के साथ किसी भी समझौते में संतुलन बनाए रखना चाहता है।