भारत ने सिंधु जल संधि के तहत गठित मध्यस्थ न्यायाधिकरण को बताया अवैध, पाकिस्तान पर फिर साधा निशाना
भारत सरकार ने शुक्रवार को सिंधु जल संधि के अंतर्गत गठित एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थ न्यायाधिकरण (Court of Arbitration) को पूरी तरह से खारिज कर दिया। यह विवाद उस समय और गहरा गया जब इस न्यायाधिकरण ने जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रैटल जलविद्युत परियोजनाओं से संबंधित मामले पर अपने अधिकार क्षेत्र की पुष्टि करते हुए एक “पूरक फैसला” (Supplemental Award) जारी किया।
विदेश मंत्रालय (MEA) ने इस कदम को “पाकिस्तान के इशारे पर किया गया एक और ढकोसला” बताते हुए कड़े शब्दों में विरोध जताया। मंत्रालय ने कहा कि भारत इस तथाकथित न्यायाधिकरण को वैध नहीं मानता और यह खुद सिंधु जल संधि का उल्लंघन है।
भारत का रुख: ‘न्यायाधिकरण की कोई वैधानिक मान्यता नहीं’
विदेश मंत्रालय ने अपने आधिकारिक बयान में स्पष्ट किया,
“भारत इस कथित न्यायाधिकरण के गठन को ही संधि का गंभीर उल्लंघन मानता है, और उसके तहत चल रही कार्यवाही व निर्णय स्वाभाविक रूप से अवैध व शून्य हैं। भारत इस मंच को किसी भी रूप में मान्यता नहीं देता।”
न्यायाधिकरण ने बृहस्पतिवार को कहा था कि भारत द्वारा संधि को “अस्थायी रूप से निलंबित करना” उसके अधिकार क्षेत्र को समाप्त नहीं करता। इस पर भारत ने तीखी प्रतिक्रिया दी।
पृष्ठभूमि: परियोजनाओं पर पाकिस्तान की आपत्तियाँ
भारत किशनगंगा परियोजना को झेलम की सहायक नदी पर और रैटल परियोजना को चिनाब नदी पर बना रहा है। पाकिस्तान ने इन परियोजनाओं के डिजाइन पर आपत्ति जताते हुए 2015 में वर्ल्ड बैंक से हस्तक्षेप की मांग की थी।
हालांकि, एक वर्ष बाद पाकिस्तान ने ‘न्यूट्रल एक्सपर्ट’ की प्रक्रिया छोड़कर सीधे मध्यस्थ न्यायाधिकरण की मांग कर दी। भारत इस निर्णय से सहमत नहीं था और उसने केवल “संधि-संगत निष्पक्ष विशेषज्ञ प्रक्रिया” में भाग लेने की बात कही।
भारत का सख्त संदेश: संधि निलंबन में कोई दखल नहीं
विदेश मंत्रालय ने कहा कि 23 अप्रैल 2024 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपने संप्रभु अधिकारों का प्रयोग करते हुए सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है।
“जब तक पाकिस्तान आतंकवाद के समर्थन को विश्वसनीय रूप से समाप्त नहीं करता, भारत इस संधि के किसी भी दायित्व को निभाने के लिए बाध्य नहीं है। और इस अवैध रूप से गठित न्यायाधिकरण को भारत की इन कार्यवाहियों की वैधता पर कोई निर्णय देने का अधिकार नहीं है।”
संधि का इतिहास और वर्तमान स्थिति
19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच यह संधि तब हस्ताक्षरित हुई थी, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में समझौते पर दस्तखत किए थे। इसके तहत पूर्वी नदियों (सतलुज, ब्यास, रावी) का जल भारत को और पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का जल पाकिस्तान को मिलने की व्यवस्था की गई थी।
जनवरी 2023 में भारत ने पाकिस्तान को संधि में संशोधन के लिए पहली बार औपचारिक नोटिस जारी किया था। इसके बाद सितंबर 2024 में भारत ने एक और नोटिस देकर इस बार “समीक्षा और संशोधन” की मांग की। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत की यह भाषा संधि को नए सिरे से पुनः वार्ता के लिए खोलने की मंशा दर्शाती है।