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समाज का कोई वर्ग नहीं जो राम भक्ति से अछूता हो

प्रभात झा

राम के बिना इस भारतवर्ष की कोई कल्पना नहीं की जा सकती। आज के पंकिल कुहासे को नष्ट करने के लिए भगवान श्रीराम जैसे चन्दन चर्चित चरित्र में अवगाहन की महती आवश्यकता मानवता को है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम समस्त भारतीय साधना और ज्ञान – परम्परा के वागद्वार हैं, जिनका दृढ़चरित्र लोक- मर्यादा के कठोर अंकुश से अनुशासित है और जो जन- जन के मन को आप्लावित कर सकता है, जो संपूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी है। भगवान श्री राम का जन्मोत्सव चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है।

रामायण में वर्णन है-महर्षि वाल्मीकि ने मुनिश्रेष्ठ नारद से पूछा, “भगवन! इस समय इस संसार गुणी, शूरवीर, धर्मयज्ञ, सत्यवादी और दृढ़ – प्रतिज्ञ कौन है? सदाचारी, सब प्राणियों का हित करने वाला, प्रियदर्शन, धैर्ययुक्त तथा काम-क्रोधादि शत्रुओं को जीतनेवाला कौन है? मुझे यह जानने की प्रबल अभिलाषा है। महर्षि ! आप इस प्रकार के श्रेष्ठ पुरुष के जानने में समर्थ हैं, अतः मुझे बताइये।” महर्षि वाल्मीकि के ऐसा पूछने पर मुनिश्रेष्ठ नारद ने कहा, महर्षि ! आपने जिन गुणों का वर्णन किया है वे बहुत, श्रेष्ठ और दुर्लभ हैं तथा उन सबका एक ही व्यक्ति में मिलना कठिन है, फिर भी आप द्वारा पूछे सभी गुणों से युक्त एक व्यक्ति हैं जो इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए हैं और ‘राम’ नाम से जगदविख्यात हैं। वे अति बलवान, धैर्ययुक्त, जितेंद्रिय, बुद्धिमान प्रियवक्ता, शत्रुघ्रों के नाशक, धर्म के जानने वाले, सत्यवादी, प्राणियों के हित में तत्पर, वेदों के ज्ञाता, धनुर्वेद में कुशल, आर्य, प्रियदर्शन, गम्भीरता में समुद्र के समान, धेयं में हिमालय के सदृश, पराक्रम में विष्णु के तुल्य, क्रोध में कालाग्नि जैसे, क्षमा में पृथ्वी म दान करने में कुबेर और सत्य बोलने में दूसरे धर्म के समान हैं।

रामायण में वर्णन के अनुसार, त्रेता युग में सूर्य देव के पुत्र वंशज महाराज इक्ष्वाकु के कुलमें अयोध्यापुरी के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम का जन्म हुआ था। राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी- कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकेयी। अयोध्या के सूर्यवंशी राजा दशरथ को चौथेपन तक तीन रानियां होते हुए भी संतान प्राप्ति नहीं हुई। दुःखी सम्राट दशरथ जब अपनी यह अंतर्वेदना गुरु वशिष्ठ से कही तो उन्होंने श्रृंगी ऋषि को बुलाकर पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। वशिष्ठ जी ने यज्ञ पश्चात खीर दशरथ जी को समर्पित की और राजा ने सभी रानियों को बुलाकर वह खीर वितरित की जिसका सेवन कर सभी रानियां गर्भवती हुईं और राजा दशरथ को चार पुत्रों का सुख प्राप्त हुआ। वाल्मीकि रामायण में ऋषि लिखते हैं, जिस समय महा कान्ति वाले राजा दशरथ जी पुत्रेष्टि यज्ञ करने लगे, उसी समय विष्णु भगवान ने पुत्र बनकर उनके यहां अवतार लेने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार भगवान श्री राम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था।

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भगवान श्री राम जन्म प्रसंग को रामचरितमानस के बालकांड में गोस्वामी तुलसीदासजी ने वर्णन किया है- भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥ अर्थात दीनों पर दया करने वाले, माता कौशल्या के हितकारी प्रगट हुए हैं। मुनियों के मन को हरने वाले भगवान के अदभुत रूप का विचार कर माता कौशल्या हर्ष से भर गई। गोस्वामी जी आगे वर्ण करते हैं-लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी । भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभा सिंधु खरारी ॥ अर्थात प्रभु के दर्शन नेत्रों को आनंद देने वाले हैं, उनका शरीर मेघों के समान श्याम रंग का है तथा उन्होंने अपनी चारों भुजाओं में आयुध धारण किए हैं, दिव्य आभूषण और वन माला धारण की हैं।

प्रभु के नेत्र बहुत ही सुंदर और विशाल है। इस प्रकार शोभा के समुद्र और खर नामक राक्षक का वध करने वाले भगवान प्रकट हुए हैं। राम शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है वह जो रोम रोम में बसे। श्रीरामस्रोत्र में वर्णन है- लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम। कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये अर्थात लोकों के आकर्षक, युद्ध में साहसी, राजीव (कमल) नेत्र वाले, रघुवंश के नाथ, कारुण्य स्वरूप, दयामयी हृदय वाले, ऐसे श्री राम चंद्र की शरण में हम आश्रय लेते हैं। यदि हम सामाजिक, ऐतिहासिक आदि रूपों से देखेंगे तब भी यह परिभाषा सर्वथा उपयुक्त बैठती है।

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इतिहास का कोई पृष्ठ नहीं जहां राम का प्रभाव न हो, समाज का कोई वर्ग नहीं जो राम भक्ति से अछूता हो। मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम भारतीय जनमानस में बसते हैं। यहां पिछले सहस्त्रों वर्षों से आजतक जनता यदि किसी आदर्श शासनतंत्र को जानती है तो वो है रामराज्य । यदि कोई जिज्ञासावश जानना चाहे कि रामराज्य के इतने सहस्राब्दियों के बाद भी क्यों सब के इतने सहस्राब्दियों के बाद भी क्यों सब रामराज्य चाहते हैं तो उत्तर आता है करुणानिधान भगवान श्री राम की महानता।

भगवान श्री राम अपने गुणों की वजह से ही मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। उन्होंने दया, सत्य, सदाचार, मर्यादा, करुणा और धर्म का पालन किया। भगवान राम ने समाज के लोगों के सामने सेवा का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया था। इसी कारण से उनको मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है।

भगवान श्रीराम की महानता अथाह है। उनके अद्वितीय शौर्य एवं पराक्रम से उन्होंने यज्ञरक्षा कर ऋषियों को भयहीन किया, उनका अनुपम बल ही खर दूषण आदि का काल बना, वे ही शील के मूर्त स्वरूप है। धनुष भंग करने का सामर्थ्य होनेपर भी वा सभा मे शांति से बैठे थे और गुरुआज्ञा मिलने पर ही गए, पितृभक्ति ऐसी की पिता का वचन कभी मिथ्या न होने दिए भले स्वयं कष्ट सहे, त्याग ऐसा कि जब कुछ ही समय मे राजतिलक होना था तब भी वल्कल पहनकर वनगमन करने मे संकोच नहीं किया, ज्ञान वेद शास्त्रादि अनेक ग्रंथों का, मातृभूमि के प्रति प्रेम इतना कि अपनी जन्मभूमि अयोध्या नगरी के बारे मे कभी बुरे शब्द सुनना तक नहीं सहा, धर्म परायण ऐसे जो साधुओं का दुःख सुनकर बोल उठे “निशिचर हीन करहु महि, भुज उठाए पन कीन्ह।”

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भारत के संविधान की मूल प्रति मे दीनदयाल भगवान के चित्र हैं। गांधी जी भी भगवान श्रीराम से ही प्रेरणा पाते थे और भारत मे रामराज्य चाहते थे। स्वामी रामानंद जैसे महान समाज सुधारक संत ने भी समाजिक पतन को रोकने के लिए रामनाम की महिमा का ही प्रयोग किया था। भगवान राम से प्रेरणा पाकर लोग समाजसेवा मे अत्यधिक योगदान करते हैं। आज भी भगवान राम की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है। हिंदू जनमानस के लिए भगवान राम की प्रासंगिकता उतनी ही है जितनी सागर में जल की, वनों में वृक्ष की अथवा ज्ञानी पुरुषों में विनम्रता की होती है। राम सबके लिए इस भारतवर्ष के पवित्र भूमि के हर कण में व्याप्त है।

राम के बिना इस भारतवर्ष की कोई कल्पना नहीं की जा सकती। आज के पंकिल कुहासे को नष्ट करने के लिए भगवान श्रीराम जैसे चन्दन चर्चित चरित्र में अवगाहन की महती आवश्यकता मानवता को है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम समस्त भारतीय साधना और ज्ञान- परम्परा के वागद्वार हैं, जिनका दृढ़चरित्र लोक-मर्यादा के कठोर अंकुश से अनुशासित है और जो जन-जन के मन को ‘रस विशेष से आप्लावित कर सकता है, जो संपूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी है। भगवान श्री राम का जन्मोत्सव चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। उनके जन्मोत्सव को संपूर्ण भारतवर्ष में राम नवमी के रूप में मनाई जाती है। इस वर्ष की राम नवमी विशेष है। 500 साल के बाद ऐसी रामनवमी आएगी जब भगवान श्रीराम का जन्मोत्स्व अयोध्या के नव निर्मित दिव्य एवं भव्य मंदिर में मनाया जाएगा।

लेखक भाजपा नेता हैं, ये उनके अपने विचार हैं।