कौन हैं वे लोग जिन्होंने मनुष्य के जीवन की धारा बदल दी?
आदि मानव ने सभ्यता के सफ़र में कई क्रांतिकारी अन्वेन्षण किए, कुछ तो ऐसे हैं जिन्होने जीवन की धारा ही बदल दी। प्रथम अग्नि का अविष्कार था। उसके बाद मिट्टी में से धातूओं को पहचान कर उसका शोधन कर अलग करने की विधि की खोज हुई, लोगों ने आश्चर्य से मिट्टी को तांबा, लोहा, सोना, चांदी, जस्ता बनते देखा।
मिश्रित धातुएं भी बनाई गई, फ़िर इन धातुओं से उपयोग के अनुसार औजार एवं उपस्कर बनाए गए। लोहा मानव जीवन में सर्वाधिक काम आया, दैनिक जीवन में इसकी उपयोगिता प्राचीन से लेकर अर्वाचीन तक जारी है।
लौहा का कार्य करने वाले लोहार कहलाए, तब से लेकर आज तक न इनकी लौहा गलाने की विधि में परिवर्तन हुआ है, न निर्माण विधि में। वही भट्टी, वही धोंकनी, वही एरन, वही हथौड़ा संसी लगातार लोहे को रुप देने में लगे हुए हैं।
मशीनीकरण के इस दौर में बड़े उद्योगों ने लोहारों के परम्परागत कुटीर उद्योंगों को तो छीन लिया और इन्हें मजदूरी (मिट्टी खोदने) करने पर विवश कर दिया, वरना यह समाज का तकनीकि अंग था। जो सामान्य किसान के हल की फ़ाल से लेकर राजवाड़ों के युद्ध के औजार बनाता था। समाज के सभी तबकों के लिए समान सेवा देता था।
आज भी कुछ परम्परागत मिस्त्री पीढी दर पीढी निर्माण के काम में लगे हैं, दिन भर भट्टी में लोहे को तपाते हुए खुद भी तपते हैं और सतत निर्माण कार्य जारी है। बस्तर सम्भाग के कोण्डागाँव जिले के लोहार लोहे से कलाकृतियों का निर्माण करते हैं, यह इनका परम्परागत पेशा है।
अक्षर ज्ञान के नाम पर काला अक्षर भैंस बराबर, पर अपने कार्य में कुशल एवं प्रवीण। इन्हें काम करते देख कर लगा कि वर्तमान मशीनी युग में भी अभावों से लड़ते हुए अपनी विरासत को आगे बढाने का प्रयास कर रहे हैं और इनके हथोड़ों की चोट पूर्वजों से सीखे ज्ञान को आगे बढा रही है, दूनिया के सामने ला रही है। आज इनका कार्य “बस्तर आर्ट” के नाम से प्रसिद्ध हो रहा है।