बलूच राष्ट्र का नरेंद्र मोदी को खुला पत्र : पाकिस्तानी सेना के खिलाफ भारत से स्वतंत्रता के लिए समर्थन की अपील
नई दिल्ली, 28 मई 2025/ बलूचिस्तान के लोगों ने आज, 28 मई 2025 को, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखकर पाकिस्तान द्वारा 1998 में बलूचिस्तान के रास कोह पहाड़ों में किए गए छह परमाणु परीक्षणों की कड़ी निंदा की।28 मई 2025 को मीर यार बलोच ने एक्स पर एक ट्वीट किया है, जिसमें उन्होंने पीएम मोदी के लिए लेटर लिखा है. फ्री बलूचिस्तान मूवमेंट के बैनर तले लिखे गए इस पत्र में बलूच राष्ट्र ने पाकिस्तान की सेना पर उनकी सहमति के बिना परमाणु विस्फोट करने, क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता और पर्यावरण को नष्ट करने, तथा स्थानीय आबादी को दीर्घकालिक स्वास्थ्य संकट में धकेलने का आरोप लगाया।
पत्र में कहा गया कि 27 साल पहले किए गए इन परीक्षणों के परिणामस्वरूप, चघाई और रास कोह के पहाड़ों में आज भी विस्फोटकों की गंध बनी हुई है। क्षेत्र में झाड़ियाँ तक नहीं उगतीं, लाखों एकड़ कृषि भूमि बंजर हो चुकी है, और पशुधन व वन्यजीवों को भारी नुकसान हुआ है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि बलूचिस्तान की माताएँ आज भी शारीरिक और मानसिक अक्षमताओं वाले बच्चों को जन्म दे रही हैं, जिसे पत्र में परमाणु विकिरण का प्रत्यक्ष परिणाम बताया गया है।
पाकिस्तान की जिहादी मानसिकता और आतंकवाद पर सवाल
पत्र में पाकिस्तान की सेना और आईएसआई पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। बलूच राष्ट्र ने दावा किया कि पाकिस्तान की सेना एक “चरमपंथी, जिहादी मानसिकता” से प्रेरित है, जो इस्लाम का उपयोग अपने निजी लाभ के लिए करती है। पत्र में कहा गया कि पाकिस्तान ने डॉ. अब्दुल कादिर खान के माध्यम से यूरोप से परमाणु रहस्य चुराए और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह झूठ बोलकर गुमराह किया कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल नागरिक उपयोग के लिए है। इसके अलावा, पाकिस्तान पर ओसामा बिन लादेन को शरण देने और पहलगाम जैसे आतंकी हमलों में शामिल होने का भी आरोप लगाया गया।
पत्र में हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की ईरान यात्रा पर चिंता जताई गई, जिसमें उन्होंने ईरान की परमाणु हथियार नीति का समर्थन किया। बलूच राष्ट्र ने आशंका व्यक्त की कि यदि ईरान भी परमाणु हथियार प्राप्त कर लेता है, तो यह वैश्विक शांति के लिए बड़ा खतरा होगा।
बलूचिस्तान में मानवाधिकारों का हनन
पत्र में बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना द्वारा किए जा रहे कथित अत्याचारों का भी जिक्र है। इसमें दावा किया गया कि पिछले सात दशकों से बलूच लोगों पर व्यवस्थित नरसंहार चल रहा है, जिसमें लाखों लोग शहीद हुए हैं और वर्तमान में लगभग 50,000 बलूच लोग गुप्त यातना कक्षों में बंद हैं। 2017 में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सीनेटर फरहतुल्लाह बाबर के हवाले से कहा गया कि बलूचिस्तान में 45 ग्वांतानामो बे और बागराम-शैली के यातना कक्ष थे, जिनकी संख्या अब हजारों में पहुँच चुकी है।
चीन की भूमिका और भारत से अपील
पत्र में चीन पर भी बलूचिस्तान के संसाधनों के शोषण में पाकिस्तान का साथ देने का आरोप लगाया गया। ग्वादर, ओरमारा और जीवानी में चीनी नौसेना की मौजूदगी और ग्वादर में एशिया के सबसे बड़े हवाई अड्डे के निर्माण को बलूच लोगों की इच्छा के खिलाफ बताया गया। पत्र में कहा गया कि बलूचिस्तान के लोग चीन के प्रति कोई स्नेह नहीं रखते, क्योंकि यह पाकिस्तान की सेना को आर्थिक और कूटनीतिक समर्थन देता है।
बलूच राष्ट्र ने भारत से बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के लिए समर्थन की अपील की है। पत्र में कहा गया कि यदि बलूचिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र बनता है, तो पाकिस्तान की आतंकवाद को बढ़ावा देने की क्षमता खत्म हो जाएगी। इसके साथ ही, पत्र में ऑपरेशन सिंदूर की प्रशंसा की गई, जिसे भारत द्वारा पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के लिए शुरू किया गया था। बलूच राष्ट्र ने इसे और बड़े पैमाने पर फिर से शुरू करने की माँग की, ताकि बलूचिस्तान, सिंधुदेश, गिलगित, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और पश्तूनिस्तान के लोगों के साथ मिलकर पाकिस्तान के अत्याचारों का अंत किया जा सके।
भारत को दी गई 2016 की बधाई
पत्र में 15 अगस्त, 2016 को प्रधानमंत्री मोदी के लाल किले से दिए गए भाषण की सराहना की गई, जिसमें उन्होंने बलूचिस्तान के मुद्दे को उठाया था। इस भाषण ने छह करोड़ बलूच लोगों का दिल जीता, और अब वे भारत से इस समर्थन को ठोस कार्रवाइयों में बदलने की अपील कर रहे हैं। पत्र पर हस्ताक्षर मीर यार बलोच ने किए हैं, जो स्वयं को मानवाधिकार रक्षक, पत्रकार और बलूच देशभक्त बताते हैं।